वकालत छोड़कर नया उद्यम शुरू करने वाली विभा माने
पहले परीक्षाओं का दबाव, फिर प्रवेश प्रक्रिया के लिए भागदौड़ और अंत में मनचाहे कोर्स और कॉलेज में प्रवेश मिलना आसान नहीं होता। इसके बाद नौकरी करने की जगह, जिस क्षेत्र में आपने पढ़ाई की होती है, उस क्षेत्र में कुछ ओर करने का विचार आपको कैसा लगता है? ये कहानी है एक वकील की, जो नौकरी करने की जगह उद्यमी बन गई।
वकील से उद्यमी बनने वाली विभा माने के परिवार में हर कोई या तो काले कपड़े पहनता था या फिर खाकी। इसकी वजह थी कि उनके परिवार के ज्यादातर लोग वकील थे या पुलिस विभाग में थे। बचपन से ही कानून और व्यवस्था उनकी जिंदगी का हिस्सा रहे हैं। वो हमेशा अपने पिता की आभा से आकर्षित रहती थीं, क्योंकि अक्सर उनके पिता अपनी वर्दी में रहते थे। वो भारतीय पुलिस सेवा के लिए काम करते थे और कई बार विभा को ऑफिस जाने से पहले स्कूल छोड़ते थे। 33 साल की विभा बताती हैं कि “उनके ऑफिस डेस्क के पीछे बड़ा-सा पुलिस का लोगो था। जिसमें संरक्षण का संकेत देता हुआ एक हाथ था जो एक स्टार के अंदर बने गोले में था। इस लोगो में ‘सद्रक्षणाय खलनिग्रहणाय’ लिखा होता था। जिसका मतलब था अच्छे की रक्षा और बुराई को नष्ट करना।” लेकिन उन्होंने अपना करियर पुलिस की जगह कानून का क्षेत्र क्यों चुना? तो इसके जवाब में उनका कहना है कि “दोस्त और परिचित अक्सर करियर के मार्गदर्शन के लिए मेरे पिता से सलाह लेते थे। एक बार मैंने भी उनसे पूछा कि वो किसी को पुलिस फोर्स में आने को क्यों नहीं कहते? तो उन्होंने बताया कि पुलिस बल कानून से बंधा होता है और वकील जानते हैं कि कानून की सीमाएँ क्या होती हैं, वो जानते हैं कि नियमों की कैसे व्याख्या की जाती है और वो भी दोनों तरफ से।”
अपने पिता के इस नज़रिये से उनका झुकाव कानून की ओर हुआ इस तरह उन्होंने पाया कि ये प्रभावशाली, कारगर, सक्षम और सशक्त बना सकता है। इस तरह वो 14 साल की उम्र से ही वकील बनने के ख़्वाब देखने लगी थीं। हालांकि उनके आसपास मौजूद लोग उनकी इस पसंद से इत्तेफ़ाक नहीं रखते थे। इसकी वजह थी कि उनके लेखनी में दम था, वो डांस और एक्टिंग काफी अच्छा करती थी। इसलिये लोगों का मानना था कि वो कला के क्षेत्र में कुछ नाम करेंगी। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि वो लोग गलत थे क्योंकि आज विभा कई अलग-अलग जगहों पर अलग अलग मंचों में कानून के छात्रों को विभिन्न मुद्दों पर सम्बोधित और प्रशिक्षण देते हुए मिल जाएंगी।
विभा जब पुणे के सिम्बायोसिस लॉ स्कूल से कानून की पढ़ाई कर रही थीं तो उस वक्त वो दूसरे छात्रों की तरह औसत छात्र थी। वो सोचती थी कि वो पांच साल बाद बॉम्बे हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करेंगी। हालांकि कॉलेज के दिनों में वो काफी लो प्रोफ़ाइल रहती थी और उनके काफी कम दोस्त थे। वो कोर्ट की बहस और वाद विवाद में ज्यादा रूची नहीं दिखाती थी। इस तरह पांच साल की पढ़ाई के बाद जहाँ विभा के दोस्त बड़ी लॉ फर्म के साथ जुड़ने की कोशिश करते थे, वहीं विभा ने लोअर कोर्ट की ओर रूख किया। क्योंकि उनके परिवार में मौजूद वरिष्ठ वकील मानते थे कि उनको ज़मीनी हालात का पता होना चाहिए। इसलिये उनको अपने काम की शुरूआत ज़िला अदालत से करनी चाहिए। उनके लिए ऐसी दिखावे की इंटर्नशिप करने का कोई मतलब नहीं था। विभा भी इस फैसले से ज्यादा खुश नहीं थी, लेकिन वो विवश थी और उससे जो कहा गया उसने वो किया।
विभा के करियर का अहम मोड़ भी नज़दीक ही था। वो पुरानी याद ताज़ा करते हुए बताती हैं कि “निचली अदालतों में काम करना काफी उदासी वाला था। इस वजह से मैं टूट जाती थी और मुझे ऐसी कोई चीज नहीं दिखाई देती जो मेरी ऊर्जा को बढ़ाने में मदद करती। मैं उस वक्त पूरी तरह निराशा के दौर से गुज़र रही थी।”
विभा ने बॉम्बे हाईकोर्ट में काम करने के दौरान काफी मेहनत की, लेकिन भारतीय दंड संहिता, भूमि कानून और बिजली से जुड़े कानून को समझने के लिए उनको काफी संघर्ष करना पड़ा और अंत में वो इस बात को लेकर आश्वस्त हो गई कि अदालत उनके लिए सही जगह नहीं है। परिवार को उनके इस फैसले से हैरानी महसूस हुई। अब बड़ा प्रश्न ये था कि “अब तुम क्या करोगी?” और “अगर ये नहीं करना था तो कानून की पढ़ाई क्यों की?”
इस तरह के प्रश्न उनसे अक्सर पूछे जाने लगे। हालांकि उनके आसपास के लोग ये समझने को तैयार नहीं थे कि वकील कोई दूसरा काम भी कर सकता है। तब विभा ने अपने लिए थोड़ा वक्त लिया और ये सोचने लगी वो अब क्या करना चाहती हैं। विभा के मुताबिक “मुझे अपने आप को लेकर काफी दुख होता था, लेकिन मैं एक बात को लेकर आश्वस्त थी कि कानून की पढ़ाई करना मेरी कोई भूल नहीं थी, क्योंकि मेरा पक्का विश्वास था कि मैं इसमें अपना करियर बना सकती हूं। तब मैंने सोचा कि इस डिग्री के साथ कुछ और भी होना चाहिए।” इस तरह विभा ने ब्रिटेन में विभिन्न विश्वविद्यालयों में आवेदन किया और अंत में उन्होने स्कॉटलैंड के ग्लासगो विश्वविद्यालय में दाखिला ले लिया। दरअसल वो स्कॉटलैंड की प्राकृतिक छवि की ओर काफी आकर्षित थीं। ये वो दौर था जब वो खुद कुछ करना चाहती थीं। विभा को महसूस हुआ कि शिक्षा के प्रति उनका झुकाव तो है, लेकिन कानून का पाठ पढ़ाना काफी उबाऊ होता है।
विभा ने महसूस किया कि उनका शिक्षा को लेकर काफी झुकाव है हालांकि वो जानती थीं कि कानून जैसे विषय को पढ़ाना काफी उबाऊ काम है। बावजूद इसके उन्होंने अपने सभी तरह के डर को एक तरफ रख वो उन चीजों पर ध्यान देने लगी जो उनके हाथ में थीं। वो एक कॉल सेंटर में नौकरी करने लगीं ताकि वो अपना एजुकेशन लोन को चुका सकें। हालांकि उस काम के लिए उनको अच्छा पैसा मिला, लेकिन इस वजह से वो अपनी पढ़ाई के लिए वक्त नहीं निकाल पा रही थी, इसलिये उन्होने कुछ समय बाद वो नौकरी छोड़ दी। इसके बाद वो विश्वविद्यालय के कैफे में नौकरी करने लगीं। इस तरह उनको अतिरिक्त आमदनी के साथ-साथ खाना भी मुफ्त मिलता था इस तरह वो अपने लिये कुछ पैसे बचाने में भी सफल हो सकीं। विभा अब पढ़ाई में औसत छात्र नहीं रही थीं वो भारतीय समाज के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा भी लेने लगीं।
जब कॉलेज के दीक्षांत समारोह के दिन नज़दीक थे तो विभा ने भारत में नौकरियों के लिए आवेदन करने शुरू कर दिये। वो जानती थी कि एजुकेशन लोन चुकाने के लिये सिर्फ कानून के स्कूल में नौकरी करना ही काफी नहीं होगा। तभी उनको ‘रेनमेकर’ से नौकरी का प्रस्ताव मिला। इस लॉ फर्म को बेंगलुरु स्थित नेशनल लॉ स्कूल के चार पूर्व युवा और ऊर्जावान छात्रों ने शुरू किया। इसके कुछ समय बाद उन्होने थोड़े वक्त के लिये महाराष्ट्र राज्य विद्युत आयोग के साथ किया, लेकिन सरकारी काम की शैली से वो प्रभावित नहीं हुई। उनके करियर में मोड़ तब आया जब साल 2009 में वो ओपी जिंदल ग्लोबल विश्वविद्यालय में रिसर्च एसोसिएट के तौर पर नियुक्त हो गई।
साल 2011 में विभा की शादी हो गई। इसके बाद वो टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस के साथ अनुबंध के तौर पर काम करने लगीं। इस तरह उनको संस्थान के लिए पहले एलएलएम कोर्स तैयार करने का मौका मिला। इसके बाद वो साल भर के लिए मेटर्निटी ब्रेक पर चली गईं और इस अवसर का इस्तेमाल उन्होंने विभिन्न नौकरियों के दौरान मिले अनुभवों के अधार पर रिसर्च के तौर पर इस्तेमाल किया। जिसे उन्होंने जून, 2014 में तुर्की में हुए जेंडर एंड लॉ क्रांफ्रेस में फेस किया। इसके बाद उन्होंने पूरे तरीके से नौकरी पर लौटने का फैसला किया और वो मुंबई के विभिन्न लॉ स्कूल में आवेदन का विचार करने लगीं। हालांकि उनके पति चाहते थे कि वो उद्यमशीलता पर ध्यान दें, लेकिन विभा इस विचार के अनिच्छुक थी। विभा का कहना है कि “वो एक कारोबारी हैं इसलिये उनके मन में ऐसे विचार आना स्वभाविक है। वहीं मैं एक हार्ड कोर सर्विस क्लास इंसान हूं। मेरे लिये रोज़ ऑफिस जाना, काम करना और बदले में तनख्वाह मिलना काफी था।”
विभा ने दोस्तों, सहयोगियों के साथ विभिन्न प्रिसिंपल और कई विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के साथ काफी विचार विमर्श के बाद फरवरी, 2015 में ‘लॉ मैटर’ की शुरूआत की। ‘लॉ मैटर’ की शुरूआत दो लोगों से हुई और इसमें शुरूआती पूंजी उनके ससुर ने लगाई। इसके बाद विभा की ये फर्म लॉ स्कूलों, विश्वविद्यालयों, मैनेजमेंट स्कूलों और दूसरे शैक्षिक संस्थानों के लिए कोर्स बनाने का काम करने लगी। इसके अलावा उनकी फर्म लॉ के छात्रों के लिये विभिन्न सेमिनार, वर्कशॉप और ट्रेनिंग सत्र का आयोजन करने लगी। आज उनकी टीम में 10 सदस्य है और इनमें से ज्यादातर वकिल हैं। ‘लॉ मैटर’प्रमुख सरकारी परियोजनाओं जैसे महाराष्ट्र में बीफ बैन और मुंबई में मोटर लांच मालिकों के नीतिगत मुद्दों पर काम कर रही हैं। इसके अलावा ये फर्म दिल्ली, हरियाणा, पुणे, सतारा और बेंगलुरु जैसे शहरों में प्रशिक्षण और कंटेंट निर्माण का काम भी कर रही है। हालांकि ये सब इतना आसान नहीं था।
शुरूआत में विभा को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा उनको विभिन्न कॉलेज और विश्वविद्यालयों को ये समझाने में काफी दिक्कत आई कि उनको अपने पाठ्यक्रम में इनोवोटिव लॉ कोर्स को शामिल करना चाहिए। इसके अलावा महिला उद्यमी होने के कारण उनके साथ लोग अलग व्यवहार करते थे। विभा के लिए ये नई चुनौती थी क्योंकि वकील होने के नाते उन्होंने कभी भी इस तरह के भेदभाव को महसूस नहीं किया था। विभा का कहना है, “मैं लोगों के साथ कड़ाई से बातें करती थी, दिखने में मैं लंबी थी और साड़ी पहनती थी। ये एकदम हास्यास्पद लग सकता है, लेकिन कई महिला वकील दोस्त और सहयोगियों को भी इसी तरह का अनुभव हुआ।साड़ी को भारतीय संस्कृति में कानूनी शिक्षा के लिये सही माना जाता था।”
इस समय ‘लॉ मैटर’ नोएडा के सिम्बायोसिस लॉ स्कूल, पुणे का भारतीय विद्यापीठ, सतारा का इस्माइलसाहेब मुल्ला लॉ कॉलेज, दिल्ली स्थित कानून और प्रबंधन अकादमी के अलावा दिल्ली, पुणे और बेंगलुरु में ये काम कर रहे हैं। भविष्य की योजनाओं के बारे में विभा का कहना है कि वो लॉ मैकर के जरिये विभिन्न विषयों पर पाठ्यक्रम से जुड़ा डाटा बैंक तैयार करना चाहती हैं। इसके अलावा उनकी टीम अपनी सेवाओं से जुड़े ऑनलाइन प्लेटफॉर्म को तैयार कर रही है। साथ ही इनकी कोशिश ऐसे संगठनों को अपने साथ जोड़ने की है जो ज़मीनी स्तर पर काम कर रहे हैं, ताकि ये उनको सभी तरह की कानूनी सहायता प्रदान कर सकें। इन सबके बीच वो कैसे सफलतापूर्वक मातृत्व और उद्यमशीलता के बीच तालमेल बैठा लेती हैं? इस सवाल के जवाब में उनका कहना है, “मैं इस बात को लेकर सुखी हूं कि हमारा काफी बड़ा संयुक्त परिवार है, जो हर काम में मेरी मदद करता है। इस वजह से मैं हर काम जल्दी समाप्त करने में सफल रहती हूं। साथ ही हफ्ते में एक दिन छुट्टी ज़रूर लेती हूं।”
मूल- प्रतीक्षा नायक
अऩुवाद-गीता बिष्ट