बजट में बजट से रेलवे को फायदा कम, नुकसान ज्यादा
केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली 01 फरवरी 2018 को आम बजट के साथ रेल बजट भी पेश करेंगे। उल्लेखनीय है कि पहले रेल बजट और आम बजट अलग अलग संसद में पेश किए जाते थे लेकिन फरवरी 2017 से इसे एक साथ पेश किया जाने लगा है। जानकार इसे भारतीय रेलवे के लिए ही मुकसानदेह बता रहे हैं। आगामी बजट को लेकर रेल यात्रियों को वित्तमंत्री से कई उम्मीदें हैं, खास तौर से सुरक्षा, ट्रेनों के समय से परिचालन और जरूरी सुविधाओं को लेकर। यात्रियों के तल्खी भरे विचार हैं कि वित्तमंत्री और रेलमंत्री नई ट्रेनें चलाएं, न चलाएं, पहले चलती ट्रेनों का समय से चलना सुनिश्चित करें।
21 सितम्बर 2016 को भारत सरकार ने निर्णय लिया कि अब रेल बजट को आम बजट में शामिल कर पेश किया जाएगा। इस प्रकार पिछले 92 वर्षों से चली आ रही रेल बजट की प्रथा समाप्त कर दी गयी।
हमारे देश में सबसे पहला बजट सन् 1860 में बना था, जिसे भारत आजाद होने के ठीक पहले उस समय के वित्तमंत्री रहे लियाकत अली खां ने पेश किया था। यह बजट 9 अक्टूबर और 1946 से लेकर 14 अगस्त 1947 तक की अवधि तक के लिए पेश किया गया था लेकिन आजाद भारत का सबसे पहला बजट 26 नवंबर 1947 में उस समय के वित्तमंत्री आर के षणमुखम चेट्टी ने 26 नवंबर, 1947 को पेश किया था। भारत में पहली बार बजट पेश करने का काम जेम्स विल्सन ने किया था, जो की वाइसराय की सभा में पहली बार पेश हुआ था। विल्सन को उस समय पहली बार एक वित्त विशेषज्ञ के रूप में वाइसराय की सभा का वित्त सदस्य चुना गया था। इसी के चलते उन्हे भारतीय बजट के संस्थापक के नाम से जाना जाता है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 में भारत के केन्द्रीय बजट को वार्षिक वित्तीय विवरण के रूप में निर्दिष्ट किया गया है, जो कि भारतीय गणराज्य का वार्षिक बजट होता है, जिसे प्रत्येक वर्ष फरवरी के अंतिम कार्य-दिवस में भारत के वित्त मंत्री द्वारा संसद में पेश किया जाता है। भारत के वित्तीय वर्ष की शुरूआत, अर्थात 1 अप्रैल से इसे लागू करने से पहले बजट को सदन द्वारा इसे पारित करना आवश्यक होता है। तत्कालीन वित्तमंत्री मोरारजी देसाई ने सबसे ज्यादा आठ बार आम बजट प्रस्तुत किया था। पहले भारतीय रेल का वित्तीय प्रतिवेदन प्रतिवर्ष दिया जाता था, जिसे रेल बजट कहते हैं। इसे भारत के रेल मंत्री संसद में प्रस्तुत करते थे जो मुख्य बजट के कुछ दिन पूर्व किया जाता था।
21 सितम्बर 2016 को भारत सरकार ने निर्णय लिया कि अब रेल बजट को आम बजट में शामिल कर पेश किया जाएगा। इस प्रकार पिछले 92 वर्षों से चली आ रही रेल बजट की प्रथा समाप्त कर दी गयी। पिछले साल फरवरी में ऐसा पहली बार हुआ, जब पहली तारीख को ही बजट की पेशकश की गई । भारत के वित्त वर्ष की शुरुआत 01 अप्रैल से होती है। संविधान के अनुसार ये जरूरी है कि बजट को लागू करने से पूर्व उसे संसद द्वारा पास किया गया हो। रेल बजट को आम बजट से अलग पेश करने का प्रस्ताव ईस्ट इंडिया रेलवे कमेटी के चेयरमैन सर विलियम एम एक्वर्थ ने 1924 में किया था। इसके बाद पहला रेल बजट पेश किया गया था। आमतौर पर 'रेल बजट' को फरवरी के आखिरी हफ्ते में आम बजट से दो दिन पूर्व पेश किया जाता रहा है।
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वित्तमंत्री अरुण जेटली का कहना है कि विकास के मसले पर रेलवे की भूमिका अलग नहीं है। नीति आयोग का मानना है कि रेल बजट का आकार अब छोटा हो चुका है और आम बजट बड़ा होता गया है। रेल बजट को आम बजट में मिला तो दिया जा रहा है लेकिन जानकार इसके कई बड़े नुकसान भी गिनाते हैं। वह याद दिलाते हैं कि जब रेल बजट में रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने ऐलान किया था कि वह रेलवे के सालभर के कामकाज का रिपोर्ट कार्ड पेश करेंगे, अरुण जेटली ने पहले शामिल बजट में रेलवे की प्रोग्रेस रिपोर्ट का दूर-दूर तक जिक्र नहीं किया। सबसे पहले बीते साल में रेलवे की वित्तीय हालत कैसी रही और आने वाले साल के लिए रेलवे के खर्च का कोई विस्तृत विवरण नहीं दिया गया।
वित्त वर्ष 2015-16 में रेलवे ने जिन नई ट्रेनों को चलाने की बात की थी उनकी क्या प्रगति रही इसका उत्तर नहीं दिया गया। रेल मंत्री ने जिन नई ट्रेनों को लाने का ऐलान किया था, वे ट्रेनें चलनी शुरू हुई या नहीं, पिछले शामिल बजट में इसका भी कोई जवाब नहीं था। रेलवे का ऑपरेटिंग रेश्यो बढ़ाने की बात हुई लेकिन वित्तीय वर्ष 2015-2016 में रेलवे का ऑपरेटिंग रेश्यो कितना और कैसा रहा इसका ऐलान न किया जाना आश्चर्यजनक माना गया।
इससे मुश्किल हो गया है कि रेलवे की आर्थिक, कामकाजी ऑपरेशनल स्थिति कैसी है, जिसके चलते रेलवे के ऊपर टार्गेट पूरे करने या सही रिपोर्ट पेश करने का दबाव ही खत्म हो गया है, जो कुल मिलाकर भारतीय रेलवे के लिए ही मुकसानदेह साबित हो रहा है। 01 फरवरी 2018 को दूसरी बार आम बजट के साथ रेल बजट भी वित्तमंत्री अरुण जेटली संसद पटल पर पेश करने जा रहे हैं। ऐसे में आम जन को सबसे बड़ी उम्मीद हैं कि किसी तरह से ट्रेनों की लेटलतीफी कम हो। ट्रेनें समय से चलें तो उनका कीमती समय बर्बाद होने बचे। रेल मुसाफिरों का कहना है कि नई ट्रेनें तो चलें, लेकिन इसके साथ पहले से संचालित ट्रेनों के निर्धारित समय का वित्तमंत्री अनुपालन सुनिश्चित कराएं अन्यथा कितनी भी नई ट्रेनें चला दी जाएं, इसका कोई बड़ा लाभ नहीं होगा।
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यात्रियों की मांग है कि प्लेटफार्म नंबर दो से तीन, चार, पांच तक जाने के लिए स्वचालित सीढ़ियां बनें। दिव्यांगों के लिए प्लेटफार्म नंबर दो और जीटी रोड साइड पर लिफ्ट लगाई जाए। सुरक्षा के लिए लगेज स्कैनर, सीसीटीवी कैमरों का आधुनिक सिस्टम लगाया जाए। सिटी साइड पर नये प्लेटफार्मों और पार्किंग का सुंदरीकरण किया जाए। सिटी साइड पर पार्किंग स्थल बनाने के साथ सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जाएं। दिव्यांगों के लिए स्टेशनों पर बैठने, पेयजल की सुविधाएं बढ़ें। रेलवे प्रशासन अब कोहरे में ट्रेनें रद्द करने का आदती हो चला है। इस पर नियंत्रण लगाया जाए। ये गुहार केंद्र सरकार के कानों तक भी पहुंच चुकी है।
इसे ही ध्यान में रखते हुए बताया जा रहा है कि एक फरवरी को प्रस्तुत होने वाले शामिल रेल बजट में देश के सभी प्रमुख रेलवे स्टेशनों पर एस्केलेटर्स्स और लिफ्ट लगाने का प्रावधान की घोषणा भी होगी। पूरे देश के रेलवे नेटवर्क में कुल 2589 एस्केलेटर्स लगाए जाएंगे, जिनमें कांदिवली, मटुंगा, बांद्रा, चर्चगेट, दादर, एफिफिंस्टन रोड, महालक्ष्मी और योगेश्वरी समेत पूरे मुंबई में 372 स्टकेलेटर लगाने की योजना है। बड़े पैमाने पर एस्केलेटर्स और लिफ्ट लगाने से प्रति यूनिट लागत में कमी आएगी। वर्तमान में एक एस्केलेटर्स पर एक करोड़ रुपये की लागत आती है जबकि एक लिफ्ट पर 40 लाख रुपये खर्च होते हैं।
शहरी और सब-अर्बन इलाकों के रेलवे स्टेशनों पर एस्केलेटर्स लगाने के लिए वहां की आमदनी की जगह रेल यात्रियों की संख्या को मानक बनाया गया है। नए मानक के मुताबिक, जिन रेलवे स्टेशनों पर 25,000 या उससे ज्यादा यात्री नियमित तौर पर पहुंचते हैं, वहां लिफ्ट और एस्केलेटर्स की सुविधा प्रदान की जाएगी। पहले लिफ्ट और एस्केलेटर्स की सुविधा के लिए रेलवे स्टेशन की सालाना आय आठ करोड़ रुपये से 60 करोड़ रुपये होना आवश्यक थी। इस बार बजट में सुरक्षा और यात्रियों की सुविधा पर विशेष घोषणाएं हो सकती हैं। शहरी और उपनगरीय इलाकों के सभी प्रमुख स्टेशनों पर सुविधाएं बढ़ाई जाएंगी।
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