‘स्टू आर्ट’ चलो और कई किस्म के स्टू खाकर मजा लो...
पुणे में नौजवान व्यवसाई हेमंत थीटे ने खोला है अपने आप में अनोखा रेस्टोरेंट जहां सिर्फ स्टू परोसा जाता हैफिलहाल अपने उपभोक्ताओं को 4 भारतीय व 5 अंतर्राष्ट्रीय किस्म के स्टू परोस रहे हैंप्रतिदिन 100 के करीब उपभोक्ताअ चख रहे हैं स्टू का स्वादआने वाले दिनों में पुणे में अपने फ्रेंचाइजी खोलने पर कर रहे हैं विचार
स्टू में आखिरकार क्या होता है? सबिज्यों या मांस को या फिर दोनों मिलाकर को जब धीमी आंच पर पकाते हुए जब विभिन्न प्रकार के मसालों और जड़ी-बूटियों के साथ लंबे समय तक उबाला जाता है और आखिर में जब सब चीजें आपस में मिलकर एक गाढ़े से खाद्य पदार्थ में परिवर्तित हो जाती हैं तो उसे स्टू कहा जाता है। तैयार होने के बाद स्टू को उस स्थान के खाने की प्रथा के अनुसार रोटी, उप्पम या चावल या अन्य वस्तुओं के साथ परोसा जाता है।
स्टू का इतिहास करीब 8 हजार वर्षों पुराना है और माना तो यह जाता है कि उस समय अमेजन के घने वर्षावनों से लेकर यूरोप और मध्य एशिया के जंगलों में निवास करने वाली जनजातियों के लोगों ने पहले पहल कछुओं के कवच या बड़े घोंघों को खाना पकाने के लिये बर्तनों के रूप में इस्तेमाल करना शुरू किया। भारतीयों के रूप में हम भी बचपन से ही दालों और सांभर के रूप में स्टू को अपने भोजन का हिस्सा बनाते रहे हैं हालांकि अभी तक इन्हें आधिकारिक तौर पर स्टू की श्रेणी में वर्गीकृत नहीं किया गया है। ‘‘स्टू एक किस्म के सूप और तरकारी (करी) के मध्य का खाद्य पदार्थ है। न तो यह सूप की तरह सादा और नीरस है और न ही करी की तरह इसका स्वाद तैलीय और मसालेदार है।’’ यह कहना है पुणे स्थित, सिर्फ स्टू परोसने वाले, ‘स्टू आर्ट’ के संस्थापक हेमंत थीटे का। स्टू आर्ट एक ऐसी जगह है जहां खाने के शौकीन स्टू के रूप में मिलने वाले विविध स्वादों का आनंद ले सकते हैं।
दो बच्चों के पिता के रूप में हेमंत के सामने प्रमुख चुनौती और चिंता यह करने की थी कि उनमें बच्चे भोजन के रूप जो वस्तुएं खा रहे हैं वे स्वास्थ्यवर्धक हों। उन्होंने सबसे पहले एक मशहूर आईसक्रीम और मिल्कशेक ब्रांड की फ्रेचाइजी ली और तीन वर्षों तक उसका सफल संचालन किया। तीन वर्षों बाद उनके मन में अपना कुछ व्यवसाय करने का विचार आया और उनके सामने एक पिज्जा आउटलेट शुरू करने का प्रस्ताव था। लेकिन वे कुछ अलग करना चाहते थे और उन्होंने इसे ठुकराते हुए कुछ अद्भुत, संतुष्ट करने वाला, अपराधबोध से मुक्त और स्वस्थ भोजन का अनुभव करवाने वाला’ रास्ता चुना।
जल्द ही 2014 में प्रेम का प्रतीक माने जाने वाले वेलेंटाइन डे के दिन इन्होंने ‘स्वास्थ्य स्वाद के साथ प्रेम में पड़ जाता है’ की टैगलाइन के साथ स्टू आर्ट की नींव रखी। हेमंत बताते हैं, ‘‘हमारा ध्येय मध्य अमरीका, इटली, सिंगापुर, मलेशिया के अलावा भारतीय सभ्यता से प्रेरित भोजन परोसने का था। व्यंजनो के बारे में शोध करते समय मैंने पाया कि स्टू एक ऐसा व्यंजन है जो समूचे विश्व में लोकप्रिय तो है ही बल्कि आप इसे जितना चाहें पौष्टिक बना सकते हैं। बस आपको जरूरत है इसमें डाले जाने वाली सामग्रियों की मात्रा में बदलाव करने की।’’ अपने इस स्टू आर्ट का सफल संचालन करने के अलावा हेमंत पुणे के एक प्रतिष्ठित काॅलेज में रचनात्मकता और नवोत्पाद विषयों के विजिटिंग प्रोफेसर भी हैं।
हममें से अधिकतर अपने भोजन के एक प्रमुख कारक दाल या सांभर को स्टू के रूप में नहीं मानते हैं तो ऐसे में हेमंत के मन में यह विचार आया कि एक संकल्पना के रूप में यह भारत के लिये बिल्कुल नया होगा। हेमंत कहते हैं, ‘‘स्टू आर्ट भारत का पहला स्टू रेस्टोरेंट है। प्रारंभिक दिनों में हमारे पास कोई मानक या रोल माॅडल नहीं था जिससे हम कुछ सीखने में सफल होते। उन दिनों में तो हमें अपने रेस्टोरेंट के बाहर अपना एक कर्मचारी तैनात करना पड़ता था और वह रेस्टोरेंट की तरफ देखने वाले प्रत्येक व्यक्ति को हमारा पर्चा थमा देता था।’’
फिलहाल इनके मेन्यू में 9 प्रकार के स्टू शामिल हैं जिनमें 4 भारतीय स्टू (मालाबारी काजू स्टू, घुग्घनी, मसालेदार भूरा स्टू और मंगलोरियन नारियल स्टू) और पांच अंतर्राष्ट्रीय स्तर के स्टू जिनमें हंगेरियन गोलाश, मोरक्कन स्टू, मैक्सिकन बीन स्टू, अमरीकन गम्बो और काॅर्न चाॅउडर शामिल हैं। हेमंत मुस्कुराते हुए कहते हैं, ‘‘हमारे परोसे हुए हर व्यंजन को पकाने में 4 मिलीलीटर से भी कम तेल या मक्खन का प्रयोग किया जाता है।’’
स्टू आर्ट का मुख्य काम अपने उपभोक्ताओं को अपने यहां परोसे जाने व्यंजनों से रूबरू करवाना होता है। रेस्टोरेंट की दीवारों पर चिपके पोस्टर और बनी हुई कलाकृतियां यहां आने वालों को स्टू के इतिहास, उन्हें पकाने और परोसने के तरीकों और स्टू को खाने के तरीकों के अलावा अन्य कई चीजों से रूबरू करवाती हैं। इनके यहां काम करने वाले कर्मचारियों को उपभोक्ताओं को उनके द्वारा खाये जा रहे स्टू के बारे में बातचीत करते हुए उसके बारे में हर जानकारी देने के लिये विशेष रूप से प्रशिक्षित किया गया है। हेमंत कहते हैं, ‘‘हमारा कोई विशिष्ट ग्राहक आधार नहीं है। हमारे यहां स्टू का स्वाद लेने आने वालों में काॅलेज जाने वाले युवा, परिवार, बच्चे और वरिष्ठ नोगरिकों तक सभी शामिल हैं। हमारे स्टू न सिर्फ आपकी सेहत के लिये अच्छे हैं बल्कि ये आपकी जेब के लिये भी बहुत अच्छे हैं।’’ इन्होंने लोगों के बीच स्टू को लेकर जागरुकता फैलाने के उद्देश्य से प्रिंट (पर्चे, अखबारों में विज्ञापन आदि) और सोशल मीडिया (फेसबुक और खाद्य वेबसाइटों पर उपस्थिति इत्यादि) के माध्यमों का भी प्रयोग किया है। इसके अलावा इन्होंने पुणे के कुछ काॅलेजों में ‘स्टू आर्ट स्टोरी’ के शीर्षक से कुछ विशेष सत्रों का भी आयोजन किया है।
हेमंत कहते हैं, ‘‘हमारे पास रोजाना 60 से 100 लोग स्टू का आनंद लेने आते हैं। हालांकि यह संख्या हमारी उम्मीद से कम तो है लेकिन उपभोक्ताओं की संख्या में लगातार हो रही वृद्धि एक सकारात्मक संकेत है। मेरे विचार से हमारे पास आने वाले उपभोक्ताओं की कम संख्या के पीछे एक प्रमुख कारण हमारी बेहद सरल और सामान्य सी माकेंर्टिंग की रणनीति है। इसके अलावा उपभोक्ताओं को स्टू के बारे में अभी जानकारी ही नहीं है ओर न ही उन्हें यह मालूम है कि उन्हें एक स्टू से क्या उम्मीद होनी चाहिये।’’
ताजगी, गुणवत्ता और पैसे का पूरा मूल्य सुनिश्चित करने के लिये स्टू को पकाने में प्रयुक्त होने वाली सब्जियों और मांस को रोजा सुबह-सवेरे शहर के मुख्य बाजार से खरीदा जाता है। मसालों को उनके उद्गम के स्थान से सीधे साबुत अवस्था में मंगवाया जाता है और रेस्टोरेंट में ही कूटा जाता है। इसके अलावा गेहूँ के आटे की रोटी को हम अपने हिसाब से तैयार करवाते हैं। हेमंत आगे बताते हैं, ‘‘कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव से खुद को बचाने के लिये हम इन चीजों को उनके स्त्रोत से ही ताजा खरीद लेते हैं जहां से वे हमें सस्ती भी पड़ती हैं। इसके अलावा इस तरह से हम कुछ मात्रा में कच्चे माल को अपने पास विशेष परिस्थितियों के लिये भंडार करके सुरक्षित भी रखने में कामयाब होते हैं।’’ वे आगे कहते हैं, ‘‘इसके अलावा अपव्यय को काबू में रखने और हमारी उत्पादन लागत को एक सीमा में रखने के लिये इन्वेंटरी प्रबंधन भी बेहद महत्वपूर्ण है।’’
स्टू आर्ट आने वाले तीन महीनों में स्टू की आठ नई किस्में लेकर आने वाला है। बाजार के हवाले करने से पहले हर प्रकार के स्टू को कई चरणों के स्वाद संबंधी परीक्षणों के दौर से गुजारा जाता है। हेमंत इस परीक्षण के लिये पुणे के कुछ फूडी क्लबों के सदस्यों के अलावा ब्लाग्रों, दोस्तों, रिश्तेदारों और अपने कुछ नियमित उपभोक्ताओं की मदद लेते हैं। हेमंत कहते हैं, ‘‘आखिरकार उपभोक्ता ही हमारे लिये भगवान है। हमें किसी भी नए स्टू को अपने व्यंजनों में शामिल करने से पहले उनकी मंजूरी लेने की आवश्यकता है।’’ इसके अलावा भविष्य में वे कुछ प्रसिद्ध खानसामों को अपने साथ जोड़ते हुए उत्पाद विकास और मार्केटिंग की योजना का खाका तैयार कर रहे हैं।
अपनी बात समाप्त करते हुए हेमंत कहते हैं, ‘‘हमारे वर्तमान आउटलेट में बहुत खाली स्थान मौजूद है और हम इस स्थान को एक केंद्रीयकृत रसोई के रूप में परिवर्तित करते हुए आने वाले दिनों में पुणे में स्टू आर्ट की फ्रेंचाइजी देने पर भी विचार कर रहे हैं। इस तरह से हम अपने उत्पाद की गुणवत्ता के साथ भी कोई समझौता नहीं होने देंगे और अपना विस्तार करने में कामयाब रहेंगे।’’