देश की हर महिला को सुंदर बनाने के मकसद में जुटा, ‘नेचुरल्स’
वर्ष 2000 में सीके कुमारवेल ने अपनी पत्नी के साथ मिलकर की थी ‘नेचुरल्स’ सैलून की स्थापनावर्तमान में देश के 16 शहरों में 220 से भी अधिक फ्रेंचाइजी का फैला है जाल जिसमें से 190 की संचालक है महिलाएंकाम शुरू करने के लिये 50 से अधिक बैंकों की न सुनने के बाद 54वें बैंक प्रबंधक ने लोन देने के लिये भरी हामीअधिक से अधिक महिलाओं को अपने साथ जोड़कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का कर रहे हैं प्रयास
सैंकड़ों भारतीय महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने और उन्हें एक नया करियर खोजने में मदद करने का काम करता ‘नेचुरल्स सैलून’ भारतीय महिलाओं को सस्ती दरों पर सौदर्य सुविधाएं उपलब्ध करवाने वाली सैलून की एक सफल श्रृंखला है। नेचुरल्स की सफलता की कहानी के बारे में बताते हुए इसके सहसंस्थापक सीके कुमारवेल बताते हैं कि देशभर में उनकी कंपनी के 300 से भी अधिक फ्रेंचाइजी आउटलेट हैं जिनमें से अधिकतर महिलाओं के द्वारा संचालित हैं।
योरस्टोरी से बातचीत में कुमारवेल कहते हैं, ‘‘हाथ में लिये गए काम को समयबद्ध तरीके से निबटाने में महिलाएं अधिक सक्षम होती हैं। सिर्फ नेचुरल्स की ही बात नहीं बल्कि फ्रेंचाइजी से जुड़े किसी भी व्यवसाय की तरफ अगर नजर डालें तो महिलाएं अधिक बेहतर तरीके से काम कर पाती हैं क्योंकि वे एक निश्चित योजना के तहत काम करने के अलावा लालच से कोसों दूर होती हैं और हर काम की बारीकी में जाती हैं।’’ अपनी इस बात को साबित करने के लिये वे बताते हें कि नैचुरल्स की 220 फ्रेंचाइजी में से 190 का संचालन महिलाओं द्वारा हो रहा है।
कुमारवेल इन ‘सम्मानित भागीदारों’ के साथ व्यवसाय में हाथ मिलाने को तरजीह देते हैं और इसके अलावा उनके 6 मापदंड हैं जिनपर उनके साथ भागीदारी करने के इच्छुक व्यक्ति को रख पड़ता है। पूर्ण निष्ठा, मालिक-मैनेजर बनने की इच्छाशक्ति, एक टीम का नेतृत्व करने की क्षमता, उपभोक्ता प्रबंधन में कुशल, पैसे का निवेश करने की ललक और अंत में सौदर्य उद्योग के बारे में बिल्कुल अज्ञानी होना, ये वे 6 शर्तें हैं जो उनके साथ हाथ मिलाने वालों को पूरी करनी पड़ती हैं। जी हां, आपने सभी शर्तें बिल्कुल ठीक पढ़ी हैं।
इस पूर्ण रूप से महिला केंद्रित व्यवसाय को शुरू करने की प्रेरणा कुमारवेल को अपनी माता से मिली। कुमारवेल कहते हैं, ‘‘मेरी माँ मेरे लिये प्रेरणा का सबसे बड़ा स्त्रोत थीं। मेरे पिता के जल्द स्वर्ग सिधारने के बाद उन्होंने ही हम 4 भाइयों और 2 बहनों को बड़ा करने में माता-पिता की दोहरी भूमिका निभाने के अलावा कई अन्य भूमिकाएं भी निभाईं। इसी वजह से मुझे हमेशा से लगता है कि महिलाएं पुरुषों के मुकाबले अधिक सक्षम होती हैं। बस उन्हें एक रूपरेखा प्रारंभिक दौर में आगे बढ़ने के लिये थोड़ी सी प्रेरणा की आवश्यकता होती है।’’
कुमारवेल और उनकी पत्नी वीणा ने ‘नेचुरल्स’ की नींव वर्ष 2000 में रखी थी और देखते ही देखते ये 16 राज्यों में 300 से भी अधिक फ्रेंचाइजी आउटलेट वाले एक उपक्रम में तब्दील हो गए हैं। बच्चों के बड़े होने और स्कूल जाने के बाद वीणा के पास काफी खाली समय होता था और ऐसे में वे एक सार्थक कार्य की तलाश में थीं।
उन्होंने महसूस किया कि उस समय महिला के लिये अच्छे प्रसाधनालय या ब्यूटी सैलून सिर्फ कुछ बड़े और महंगे होटलों में ही मौजूद थे जो एक औसत परिवार की महिला के लिये बहुत महंगे होने के अलावा उसकी पहुंच से बहुत दूर होते थे। हालांकि इसके अलावा स्थानीय स्तर पर गली-मोहल्लों में बहुत से ब्यूटी सैलून खुले हुए थे लेकिन वे गुणवत्ता के मानकों पर खरे नहीं उतरते थे। मध्यम वर्ग की अधिकांश महिलाएं उनकी इस बात से सहमत थीं।
कुमारवेल कहते हैं, ‘‘चिड़चिड़ापन ऊर्जा का सबसे बड़ा स्त्रोत होता है। अगर आप किसी भी चीज से चिढ़ महसूस करते हैं तो बहुत ध्यान लगाने पर आप उसमें अपने लिये छिपे हुए एक अवसर को तलाशने में सफल होंगे।’’
वे आगे कहते हैं, ‘‘हमने महसूस किया कि सस्ते और अच्छी गुणवत्ता वाले ब्यूटी सैलून समय की जरूरत हैं। और हमने इसी विचार को आगे बढ़ाने का फैसला किया।’’ हालांकि दोनों पति-पत्नी को इस क्षेत्र की न के बराबर जानकारी थी और वीणा के पास न तो इससे संबंधित कोई योग्यता थी और न ही कोई अनुभव, लेकिन कोई भी चुनौती इस युगल को इस क्षेत्र में आने से रोक नहीं सकी। इन दोनों के अंदर कुछ करने की गजब की इच्छाशक्ति थी और उसी की बदौलत ये सफल हुए।
अनुभव और जानकारी की कमी की पूर्ति के लिये इन्होंने प्रतिष्ठित ‘ताज’ ब्यूटी सेलून के मुख्य संचालक को अपने लिये एक टीम तैयार करने और सेलून स्थापित करने के लिये अपने साथ जोड़ लिया। लेकिन उनके लिये आगे की राह इतनी आसान नहीं थी। पहले वर्ष में उनकी कंपनी ने 2 मिलियन का व्यवसाय करते हुए 1 मिलियन का घाटा उठाया। समय के साथ कारोबार में वृद्धि होती गई और चैथे वर्ष में जाकर होने वाले नुकसान में कमी आई। इसके बाद तो ‘नेचुरल्स’ एक मुनाफा कमाने वाले उद्यम में बदल गया और समय के साथ इनके सेलूनों की संख्या भी बढ़ती गई।
अब काम को बड़े पैमाने पर ले जाने का समय था और उसके लिये अधिक पैसों की आवश्यकता थी और अब उन्हें नई चुनौतियों से निबटने के लिये खुद को तैयार करना था। बैंक भी सौंदर्य-प्रसाधनों से जुड़े इस व्यवसाय को लेकर बहुत आशावादी नहीं थे और वे ऐसे किसी उद्यम के लिये लोन देने के इच्छुक नहीं थे।
‘‘इसके अलावा यह एक निषिद्ध क्षेत्र था,’’ कुमारवेल कहते हैं। ‘‘लेकिन हम भी अपनी जिद पर कायम रहे और हमनें 50 से भी अधिक बैंकों के प्रबंधकों से इस प्रोजेक्ट के बारे में मुलाकात की। मुझे अब भी अच्छी तरह याद है कि कैसे आखिरकार हमसे मिलने वाले 54वें बैंक प्रबंधक ने हमारा विचार सुनते ही हमें लोन देने के लिये हामी भर दी। उसने भी हामी सिर्फ इसलिये भरी क्योंकि उसे पति-पत्नी के एक साथ व्यापार करने का विचार बेहद पसंद आया।’’
‘नेचुरल्स’ की सफलता के दो मूल मंत्र हैं जो हैं अच्छा क्रियान्वयन और इनकी मार्केटिंग की नीति। कुमारवेल बताते हैं, ‘‘जब भी हमारे पास कुछ अतिरिक्त पैसा होता है मैं उसे मार्केटिंग में लगा देता हूँ। ये सब ऐसी बातें हैं जो बाद में आपके बहुत काम आती हैं। इन्हीं सब चीजों में हमारे इस ब्रांड को जीवन से भी बड़ा बना दिया और हमारे विस्तार के दूसरे चरण में इसी वजह से अधिकतर लोग हमारे साथ जुड़े।’’
यॉरस्टोरी ने ‘नेचुरल्स’ के साथ हाथ मिलाकर व्यवसाय की दुनिया में कदम रखने वाली कुछ उल्लेखनीय महिलाओं से मुलाकात की।
एक फ्रेंचाइजी की मालकिन सुष्मिता कहती हैं, ‘‘इसमें मुझे सबसे अच्छा यह लगता है कि यह महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिये है। इसके अलावा अब मैं अपना व्यवसाय करते हुए अपने पति की राय भी लेने में सक्षम हूँ।’’ दूसरी तरफ बैंगलोर की एक और फ्रेंचाइजी मालकिन मनीषा का कहना है, ‘‘नेचुरल्स’ के साथ काम करते हुए आपको कभी नहीं लगता कि आप एक व्यवसाय का संचालन कर रही हैं। इस काम को करते हुए आप लगातार एक इंसान और एक व्यक्ति के रूप में विकसित होते हैं।’’
कुमारवेल को अपने इस काम से बहुत गहरा संतोष मिलता है और उन्हें लगता है कि इस काम के जरिये वे कई अपने आसपास की कई महिलाओं के जीवन को एक अर्थ दे पाने में सफल रहे हैं। वे कहते हैं, ‘‘हम नारायण मूर्ति, अजीम प्रेमजी और उनके जैसे अन्य कई उद्यमियों द्वारा भारतीय उद्यमिता के क्षेत्र में लाई गई क्रांति के ही एक उपोत्पाद हैं।’’
अंत में वे कहते हैं, ‘‘सौंदर्य पर सिर्फ रईसों और प्रसिद्ध लोगों का ही विशेषाधिकार नहीं है। हमारा लक्ष्य सौंदर्य-प्रसाधन को देश के अंतिम नागरिक तक पहुंचाना है।’’ और हम उनकी बातों से बिल्कुल सहमत हैं।
आप भी कुमारवेल की ‘नेचुरल्स’ की बेहतरीन यात्रा के साक्षी बनिये और उनसे प्रेरित होने के लिये तैयार रहियेः