एक 'बूंद', जिसने बदल दी गांव वालों की ज़मीन, आसमान और ज़िंदगी...
- रुस्तम सेनगुप्ता ने रखी 'बूंद' की नीव।- ग्रामीण इलाकों के लोगों की जिंदगी सरल बनाने के प्रयास में लगा है 'बूंद'- मुनाफा कमाना नहीं सही मायने में ग्रामीणों की मदद करना है रुस्तम सेनगुप्ता का लक्ष्य
अपने लिए तो हर कोई जीता है लेकिन जो व्यक्ति दूसरों की पीड़ा को समझे और उनकी जिंदगी में बदलाव लाने की दिशा में काम करे असली विजेता वही होता है। ऐसा व्यक्ति समाज के लिए एक ऐसा उदाहरण पेश करता है कि जिससे प्रेरित होकर कई लोग उसके पदचिन्हों पर चलने की कोशिश करते हैं। और एक ऐसे ही विजेता हैं रुस्तम सेनगुप्ता।
रुस्तम सिंगापुर में एक मल्टीनेशन्ल बैंक में ऊंचे पद पर थे, बहुत अच्छा कमा रहे थे लेकिन मन में हमेशा से ही गरीब और पिछड़े लोगों के लिए काम करने की चाहत ने जिसने उन्हें एक अच्छी खासी नौकरी छोड़़कर भारत आने पर विवश कर दिया और वे सबकुछ छोड़कर भारत आ गए और यहां पर उन्होंने एक सोशल एन्टर्प्राइज़ 'बूंद' की शुरूआत की। भारत आकर सबसे पहले रुस्तम ने भारत के गांव देहातों का दौरा किया और पाया कि यहां पर ग्रामीणों को बेसिक चीज जैसे बिजली, साफ पानी, नहीं मिल रहा था साथ हीं यहां पर काफी गंदगी थी। उन्होंने देखा कि शहरों में कई चीजें हैं जो वहां तो मिलती हैं लेकिन वो चीजें गावों तक नहीं पहुंच पा रही और यदि वे चीजें गांवो तक पहुंच जाएं तो यहां रह रहे लोगों की जिंदगी में काफी बदलाव लाया जा सकता है। उन्होंने इस गैप को भरने का प्रयास करने की सोची उसके बाद वे विभिन्न एनजीओ के साथ मिलकर काम करने लगे ताकि वे अपने प्रयासों से गांव के लोगों की जिंदगी में कुछ सकारात्मक परिवर्तन ला पाएं।
गांव के लोगों को बेसिक चीजें नहीं मिल रही थी जिसके कारण उनकी जिंदगी काफी कष्टदायी हो गई थी। स्वच्छता न होने के कारण गांवों के बच्चे बीमार पढ़ रहे थे ये सब चीजें रुस्तम को बहुत पीड़ा दे रहीं थी। रुस्तम ने तय किया कि उनकों अब अपने प्रयासों में काफी तेजी लानी होगी उन्होंन विभन्न उत्पादों की सूचि तैयार करनी शुरू की वो इस बात का भी खास खयाल रख रहे थे कि वो उत्पाद महंगा न हो क्योंकि गांव के लोग काफी गरीब थे। उन्होंने अपने अभियान की शुरूआत झारखंड और पश्चिम बंगाल से की।
सेनगुप्ता ने सौर लालटेन, वॉटर फिल्टर, चूल्हे, डॉयनामो लैंप और मच्छरदानी जैसे उत्पादों को जुटाने, बेचने और उनका रखरखाव करने का एक मॉडल विकसित किया. यह इस तरह से काम करता हैः जब कोई दानदाता कोई उत्पाद खरीद लेता है, तो उसे स्थानीय उद्यमियों अथवा गैर सरकारी संगठनों के जरिए वांछित ठिकाने को भेज दिया जाता है।
फिर ग्रामीण इन उत्पादों को खरीदते हैं और उसका भुगतान किश्तों में करते हैं। सौदा कराने वाले स्थानीय एजेंट को उनकी सेवा के लिए कमीशन मिलता है। दान की रकम, जो आम तौर पर ऋण का काम करती है, दानदाता को लौटाई जा सकती है अथवा उसका पुनर्निवेश किसी और सौदे में किया जा सकता है।
लद्दाख में जब प्राकृतिक आपदा आई थी तब बूंद ने मुफ्त में उत्पाद वहां भेजे दानदाताओं से पैसा जुटाने की बूंद को एक मुहिम भी चलानी पड़ी. सेनगुप्ता ने अब वित्तीय भागीदारों को शामिल कर लिया है, जो उस अवधि के लिए पैसों की व्यवस्था करेंगे, जब तक दानदाता उत्पादों का हिसाब चुकता नहीं कर देते।
एक परिवार का केरोसिन की लालटेन के बजाए सौर लैंप की रोशनी में भोजन करने का आनंद रुस्तम को यह दिलासा दिलाता है कि उनका प्रयास बढ़िया चल रहा है। जब भी वे गांव देहात में जाते हैं और बच्चों को सोलर लैंप से पढ़ते हुए देखते हैं तो उन्हें सुकून मिलता है। सन 2010 से शुरू हुआ ये सफर आज सफलता की सीढ़ियां लगातार चढ़ रहा है आज उनकी टीम में 17 लोग हैं इसके अलावा 31 पार्टनर व कमीशन एजेंट्स हैं और बूंद के माध्याम से वे 50 हजार लोगों की जिंदगी में बदलाव ला चुके हैं।