'रूढ़िवादी समाज' से निकलीं भारत की पहली महिला सूमो पहलवान हेतल दवे
हेतल बचपन से ही कुछ अलग करना चाहती थीं। उनके पिता ने उन्हें कराटे की क्लास में शिक्षा के लिए भेजा। आज हेतल दवे भारत की पहली महिला सूमो पहलवान हैं।
हेतल का कहना है कि 'मैंने कई बार हार का सामना किया है। मेरी जगह अगर कोई और होता तो वो कब का खेल छोड़ चुका होता। लेकिन मैंने कड़ी मेहनत की और करियर को आगे बढ़ाने का फैसला किया।'
हेतल ने अपना ध्यान बाकी चीजों से हटाकर अपने खेल पर लगाया। उन्होंने सात साल की उम्र में अपना पहला टूर्नामेंट खेला था।
उनके उम्र की लड़कियां जब कार्टून देखने में व्यस्त थीं तब हेतल दवे जैकी चैन फिल्में देखा करती थीं। हेतल का कहना है कि 'बचपन से ही मैं कुछ अलग करना चाहती थी।' हेतल के पिता ने उन्हें कराटे की क्लास में शिक्षा के लिए भेजा। आज हेतल दवे भारत की पहली महिला सूमो पहलवान हैं। हेतल बचपन से ही बाकियों से अलग थीं। उनकी खेल के प्रति गहरी रुचि थी।
जब लड़कियां और लड़के इधर-उधर की चीजों में अपने जीवन और करियर को बर्बाद करने में लगे हुए थे तब हेतल कड़ी मेहनत के साथ आगे बढ़ रही थीं। उसने अपना ध्यान बाकी चीजों से हटाकर अपने खेल पर लगाया। उन्होंने सात साल की उम्र में अपना पहला टूर्नामेंट खेला था। हेतल का कहना है कि 'मैंने कई बार हार का सामना किया है। मेरी जगह अगर कोई और होता तो वो कब का खेल छोड़ चुका होता। लेकिन मैंने कड़ी मेहनत की और करियर को आगे बढ़ाने का फैसला किया।'
लोगों का तो काम है कहना
हेतल राजस्थान के एक रूढ़िवादी ब्राह्मण समुदाय से है। वहां पर अभी भी लड़कियों को घर से बाहर जाने की इजाजत नहीं होती है। हेतल के मुताबिक,'लड़कियों की पढ़ाई-लिखाई पर ही बड़ी हाय-तौबा मचती है, खेल की तो बात ही छोड़ दो। आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि वहां पर एक लड़की जब खेलने की इच्छा जाहिर करती है तो लोग क्या क्या ताने मारते हैं। ऊपर से सूमो पहलवानी वो खेल है जिसमें पुरुष का आधिपत्य है। पुरुष ही खेलते हैं वो भी आधा नग्न होकर। इस खेल को हमारे समुदाय में बहुत अपमानजनक माना जाता है। लेकिन लोग क्या कहते हैं, अगर मैं यही सोचने लग जाती तो कभी भी इस मुकाम पर न पहुंच पाती।'
हेतल बताती हैं कि इस खेल को हमारे समुदाय में बहुत अपमानजनक माना जाता है। लेकिन लोग क्या कहते हैं, अगर मैं यही सोचने लग जाती तो कभी भी इस मुकाम पर न पहुंच पाती।
नाम बड़ा, काम बड़ा
हेतल ने वैश्विक सूमो प्रतियोगिताओं में भारत का प्रतिनिधित्व किया है और ताइवान में 2009 के विश्व खेलों में महिलाओं की मिडिलवेट श्रेणी में पांचवां स्थान पाया। उनके माता-पिता और भाई अक्षय हर कदम पर साथ खड़े रहे। हेतल बताती हैं, 'मेरे परिवार ने मेरा बहुत साथ दिया। जब अन्य बच्चे बेहतर अंक प्राप्त करने के लिए अध्ययन कर रहे थे, मैं केवल पास होने के लिए मशक्कत करती थी। लेकिन मेरे माता-पिता इससे नाराज नहीं होते थे, उन्हें मालूम था कि मेरा हित किस बात से था।' उन्होंने मुझे हमेशा मेरे सपनों का पीछा करने के लिए प्रोत्साहित किया। मेरा लक्ष्य दाएं बाएं देखने का नहीं था, मैं सीधा अपने लक्ष्य बनाए हुए थी और मेरे लिए यही मायने रखता था। मुझे एक ओलंपियन कहा जाना चाहिए और मैं अब भी खेल रही हूं। यही है लक्ष्य।'
टीचर के सहयोग से भरी ऊंची उड़ान
हेतल नौवीं कक्षा में पूरी तरह से फेल हो गई थीं जिस कारण उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया था। दूसरे स्कूल में जाते-जाते वह अपने करियर के विकल्पों को समझ गई थीं और उन्होंने बदलते समय के साथ अपना कदम उठाया। नए स्कूल में शिक्षकों ने उसे पूरी तरह से समर्थन दिया और स्कूल एक सुखद अनुभव बन गया। हेतल बताती हैं, 'कॉलेज में मेरी पीई (शारीरिक शिक्षा) के जो टीचर थे वह हमेशा मुझे प्रोत्साहित किया करते थे। उन्होंने मुझे एक पिता के रूप में समर्थन दिया है। इसलिए आप कह सकते है कि मेरे दो पिता थे।'
बहुत सारे ऐसे बच्चे हैं जो सूमो पहलवानी में अपना करियर बनाना चाहते हैं लेकिन किसी अच्छे ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट और सहयोग के न होने से उनके सपने वहीं मर जाते हैं।
खुद एक शिक्षक के तौर पर हेतल
हेतल लोगों को ट्रेनिंग भी देती हैं। वो चाहती हैं कि सूमो पहलवानी के बारे में ज्यादा से ज्यादा लोग जागरूक हों, इसके बारे में फैलीं गलत अवधारणाएं दूर हों। बहुत सारे ऐसे बच्चे हैं जो सूमो पहलवानी में अपना करियर बनाना चाहते हैं लेकिन किसी अच्छे ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट और सहयोग के न होने से उनके सपने वहीं मर जाते हैं। हेतल का उद्देश्य है, ऐसी प्रतिभाओं तक मदद पहुंचे। और देश को सूमो पहलवानी में ज्यादा से ज्यादा पदक मिले। उनके छात्रों में से एक ने अभी राष्ट्रीय स्तर पर खेला है। हेतल गर्व से बताती हैं कि मुझे एक राष्ट्रीय चैंपियन के शिक्षक के रूप में बुलाया जाता है और मैं सिखाना जारी रखूंगी।
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