पेड़ों को नई जिंदगी देने के लिए चेन्नई को मिली 'ट्री एंबुलेंस'
आज जलवायु परिवर्तन बेहद गंभीर विषय है, इसकी वजह से हमारे पर्यावरण को इतना नुकसान पहुंच रहा है कि सभी जीव जंतुओं और वनस्पतियों के अस्तित्व पर ही संकट आ गया है। अगर हमने इस पर ध्यान नहीं दिया तो मौसम के पैटर्न में बदलाव से प्राकृतिक आपदाएं होंगी जिनसे इस पृथ्वी का सर्वनाश होते देर नहीं लगेगी। इस क्षेत्र में की गई हर एक पहल काफी मायने रखती है, चाहे वह कितनी ही छोटी क्यों न हो। चेन्नई में एक ऐसे ही कदम की शुरुआत हुई है। जिसका नाम है ट्री एंबुलेंस।
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने बीते सप्ताह अंतर्राष्ट्रीय विविधता दिवस के अवसर पर इस ट्री एम्बुलेंस को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। यह पहल पेड़ों को बचाने के लिए की गई है। ‘ट्री-एम्बुलेंस’ का उद्देश्य पेड़ों को प्रथम चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराना, पौधरोपण में सहायता देना, पेड़ों को एक जगह से हटाकर दूसरे जगह लगाने में सहायता देना और सीड बॉल वितरण करना है। ‘ट्री-एम्बुलेंस’ की स्थापना के लिए उन्होंने के. अब्दुल गनी और सुरेश के प्रयासों की सराहना की।
यह एंबुलेंस पूरे शहर में विशेषज्ञों को लेकर घूमेगी और जमीन से उखड़ चुके पेड़ों को फिर से स्थापित करेगी। बीते साल में आए गज तूफान की वजह से कई पेड़ जमीन से उखड़ गए थे। उन्हें फिर से लगाने का काम यह एंबुलेंस करेगी। इस पहल को सासा ग्रुप के सहयोग से शुरू किया जा रहा है।
अप्रत्याशित रूप से वनों की कटाई, शहरीकरण, औद्योगीकरण तथा प्रदूषण के कारण पेड़ों की कमी पर चिंता व्यक्त करते हुए नायडू ने कहा कि भारत में वन क्षेत्र 21 प्रतिशत है जबकि वैश्विक मानक 33.3 प्रतिशत है। उन्होंने बताया कि विश्व संसाधन संस्थान (डब्ल्यूआरआई) द्वारा जारी नए अध्ययन के अनुसार भारत में 2001 और 2018 के बीच 1.6 मिलियन हेक्टेयर पेड़ क्षेत्र में कमी आई है।
उन्होंने कहा कि समाज के विकास के साथ मानव और प्रकृति के संबंध पर प्रहार हो रहा है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण को किसी तरह का नुकसान से आने वाली पीढ़ियों का भविष्य खतरे में आ जाएगा। उन्होंने कहा कि वर्तमान उपभोग के तौर-तरीके विशेषकर औद्योगिक विश्व में सतत नहीं रह सकते, क्योंकि ऐसे तौर-तरीके प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव डालते हैं।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत विश्व की पुरानी सभ्यताओं में से एक है। प्रत्येक भारतीय में पर्यावरण के प्रति चिंता रहती है। ऐसा धार्मिक व्यवहारों, लोक कथाओं, कला तथा संस्कृति और दैनिक जीवन के सभी पहलुओं में दिखता है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत की प्राचीन सांस्कृतिक परम्परा, मितव्ययिता और प्रकृति के साथ साधारण रहन-सहन की रही है और हमारे देश के सभी धर्मों ने प्रकृति के साथ मानव जाति की एकता की शिक्षा दी है। उन्होंने समावेशी विकास तथा स्थानीय खाद्य सुरक्षा लक्ष्य हासिल करने पर बल दिया।
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