बिजनेस के लिए पैसे चाहिए? तो मिलिये “अंकुर कैपिटल” से
“अंकुर कैपिटल” ने दिए उम्मीदों को पंख 40 करोड़ रुपये से हुई “अंकुर कैपिटल” की शुरूआतअब तक 3 कंपनियों में “अंकुर कैपिटल” का निवेश
कुछ लोगों के रास्ते भले अलग अलग होते हैं, लेकिन उनकी मंजिल एक होती है। रीमा सुब्रह्रमण्यम और ऋतु वर्मा की पृष्ठभूमि भी अलग-अलग थी। रीमा जहां उद्यमी हैं वहीं ऋतु फिज़िसिस्ट। बावजूद वो दोनों कुछ ऐसा करना चाहती थी जिसका ना सिर्फ उन दोनों पर सकारात्मक प्रभाव पड़े बल्कि दूसरे उद्यमियों के लिए भी वो मददगार साबित हो।
कुछ अलग करने की दोनों की धुन उनको एक साथ ले आई। इन दोनों महिलाओं ने मिलकर अंकुर कैपिटल की शुरूआत की। अंकुर कैपिटल 40 करोड़ रुपये का एक सामाजिक उद्यम है। जो कम आय वाले कोरबारियों को अपना उद्यम खड़ा करने में मदद करता है। क्रोपिन टेक्नॉलजी के सह-संस्थापक कृष्णा कुमार के मुताबिक अंकुर कैपिटल ने उनके उद्यम में ना सिर्फ निवेश किया है बल्कि वो उनके बड़े समर्थक और संरक्षक भी हैं।
ऋतु वर्मा ने 15 साल कॉरपरेट सेक्टर में निवेशक के तौर पर नौकरी की इस दौरान वो ज्यादातर समय देश से बाहर रहीं। लेकिन वो भारत को बदलते हुए देखना चाहती थी। इसके लिए वो कारोबार को जरिया बनाकर विकास की राह में आगे बढ़ना चाहती थी। उनका मानना है कि बाजार में हर वक्त नई सोच की जरूरत होती है ऐसे में जब वो भारत लौटी तो उन्होने सामाजिक उद्यमियों के लिए संरक्षक की भूमिका निभा कर उनको प्रेरित करने का काम शुरू किया। इस दौरान उनको एहसास हुआ कि भारत में मौजूद उद्यमी अपना असर छोड़ने में ज्यादा सफल नहीं हो पाते और इसकी बड़ी वजह है पैसे की कमी। इसके अलावा लंबी अवधि और उचित सलाह भी दूसरे प्रमुख कारण हैं।
ऋतु और रीमा सुब्रह्रमण्यम की जब मुलाकात हुई तो सामाजिक उद्यमियता को लेकर दोनों के विचार एक समान थे। इस दौरान दोनों की एक राय थी कि ज्यादातर उद्यमी अपना असर छोड़ने में नाकामयाब रहते हैं। रीमा पिछले 30 सालों के दौरान विभिन्न कंपनियों में काम कर चुकी थी। इस वजह से जहां वो समाज को नये विचार दे सकती थी तो वहीं संरक्षक की भूमिका निभाने में भी सक्षम थी। दोनों में कारोबार को लेकर जुनून था, जिसे वो अपने उद्यम के माध्यम से प्रभावी तरीके से हकीकत में बदल सकती थीं। दोनों के मिलते जुलते विचार एक दूसरे को करीब ले आए जबकि दोनों की पृष्ठभूमि काफी अलग थी। एक साथ काम करने के बाद दोनों एक दूसरे से ना सिर्फ काफी कुछ सीखते हैं बल्कि दोनों की साझेदारी उनको तरक्की की नई राह पर ले जा रही है।
किसी भी कंपनी को लंबे वक्त तक चलाने के लिए निवेश की जरूरत होती है इसी बात को ध्यान में रखकर अंकुर कैपिटल की स्थापना हुई। इन लोगों का मुख्य उद्देश्य भी यही है कि सामाजिक कार्यों में जुटे उद्यमों को प्रभावी तरीके से बढ़ाने और देश के विकास में ऐसे उद्यमियों की ज्यादा से ज्यादा मदद करना है। इन लोगों की योजना करीब 200 से ज्यादा कारोबारियों की मदद करना है जो देश में बदलाव ला कर 100 मिलियन लोगों को गरीबी के दलदल से बाहर निकाल सकें।
अंकुर कैपिटल की शुरूआत 40 करोड़ रुपये से हुई है। कंपनी ने फैसला लिया है कि वो शुरूआत में हर कंपनी में 50 लाख रुपये तक निवेश करेगी और शुरूआत में वो 20 कंपनियों को अपना कारोबार बढ़ाने में मदद करेगी। कंपनी संस्थापकों का मानना है कि देश में कई ऐसी कंपनियां और उनके विचार हैं जो देश के सामाजिक सरोकार से जुड़े हुए हैं। इनमें से कई उद्यमी ऐसे हैं जो समय के साथ ये जान चुके हैं कि उनको लंबे वक्त तक काम करना होगा। बावजूद इस क्षेत्र में नये उत्पाद और सेवाओं का दौर जारी है और ये दूर दराज में बैठे लोगों के लिए काफी मददगार तो साबित होगा ही साथ ही उद्यमियों को भी नए मौके मिलेंगे।
अंकुर कैपिटल अब तक तीन कंपनियों में निवेश कर चुकी है और ये हैं ईआरसी आईकेयर, क्रॉप इन टेक्नॉलिजी और पीबीके वेस्ट सोल्यूशन। इनसे अंकुर कैपिटल को सकारात्मक अनुभव हासिल हुआ है। जिसके बाद इन कंपनियों का ना सिर्फ कारोबार बढ़ा है बल्कि निवेश के मौके भी बढ़े हैं और नई साझेदार बनने से इन कंपनियों को लंबे वक्त में काफी फायदा मिलने की उम्मीद है। उद्यमियों में कारोबार में निवेश को लेकर अंकुर कैपिटल काफी सावधानी बरतता है। इनके मुताबिक कोई भी उद्यम का सामाजिक प्रभाव होना जरूरी होता है। कंपनी ये देखती है की कोई उद्यम कम आय वाले लोगों की किस प्रकार मदद कर रहा है और क्या वो अपने विकास के साथ आगे भी इसे जारी रखेगा। साथ ही कारोबार का मॉडल और बाजार जैसी दूसरी चीजों पर भी अंकुर कैपिटल खासी छानबीन करता है।
इस काम को करने में दोनों महिला निवेशकों को काफी मजा आ रहा है। दोनों मिलकर ना सिर्फ चुनौतियों को हल कर रही हैं बल्कि कारोबार का मूल्यांकन, जमीनी हकीकत से जुड़ी कहानियों से भी परिचित हो रही हैं। साथ ही उद्यमी के तौर पर इनको रोज कुछ ना कुछ सीखने को मिल रहा है। दूसरे निवेशक जहां सिर्फ नए सौदों को लेकर खुश होते हैं और वो निवेश करने वाले कारोबार के साथ जुड़ नहीं पाते वहीं इन उद्यमी महिलाओं को अपने काम को लेकर संतोष मिलता है। आज के दौर में देश के भीतर ज्यादातर निवेशक महिलाएं ही हैं और इसकी ताजा मिसाल है भारतीय बैंकिंग क्षेत्र। जहां पर इनके कारोबार की कमान महिलाओं ने संभाल रखी है। रीमा सुब्रह्रमण्यम और ऋतु वर्मा अपने को महिला निवेशक के तौर पर नहीं मानती। इन लोगों का कहना है कि उनकी टीम में कई पुरुष साथी भी हैं जो उनकी ही तरह सोच रखते हैं। ऋतु का कहना है कि जो भी युवा उद्यमी हैं उनको अपने काम को लेकर जुनून होना चाहिए। हालांकि ये लंबी और मुश्किल यात्रा भले ही हो, लेकिन अंत में मंजिल उनको नसीब हो ही जाती है।