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कैंसर फैलाने वाले कीटनाशकों के खिलाफ पंजाब की महिलाएं उतरीं मैदान में

कैंसर फैलाने वाले कीटनाशकों के खिलाफ पंजाब की महिलाएं उतरीं मैदान में

Sunday August 26, 2018 , 7 min Read

कृषि वैज्ञानिकों के शोध से पता चला है कि फसलों में बार-बार कीटनाशकों, रासायनिक खादों के इस्तेमाल से कैंसर पीड़ित मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। इसके खिलाफ बरनाला (पंजाब) के दर्जनों गांवों की हजारों महिलाएं उठ खड़ी हुई हैं। फिलहाल, इस दिशा में अपनी शुरुआती पहल उन्होंने ऑर्गेनिक खेती से की है।

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हरियाणा विधानसभा में इसी साल मार्च में कैंसर पर पेश की गई जानकारी भी काफी चौंकाने वाली है। इससे लोग बेखबर हैं। हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री ने सदन को बताया है कि कैंसर से पिछले साल राज्य में सबसे ज्यादा 771 मौतें फरीदाबाद में हुईं।

कृषि वैज्ञानिकों के शोध से पता चला है कि फसलों में बार-बार कीटनाशकों, रासायनिक खादों के इस्तेमाल से कैंसर पीड़ित मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (इंडियन काउंसिल मेडिकल रिसर्च) ने अपने अध्ययन में बताया है कि वर्ष 2020 में देश में कैंसर मरीजों की संख्या में 17 लाख 20 हजार इजाफा हो जाएगा, जिसका कारण फसलों में कीटनाशकों का भारी मात्रा में इस्तेमाल है। डॉक्टर बता रहे हैं कि उनके पास पहुंचने वाले कैंसर पीड़ितों में ऐसे लोगों की सबसे ज्यादा संख्या होती है, जो कीटनाशक प्रयुक्त अनाज का सेवन कर रहे हैं। कीटनाशकों के कारण उनको प्रोस्टेट कैंसर हो रहा है। इससे खासकर फेफड़े, किडनी, लिवर और गले को नुकसान पहुंच रहा है। यह कैंसर ब्लड में भी घुल जा रहा है। इसका नर्व सिस्टम पर भी गंभीर असर देखा गया है। ऐसे कैंसर से सर्वाधिक पीड़ित राज्य पंजाब की किसान औरतें रासायनिक खादों के इस्तेमाल के खिलाफ मैदान में उतर पड़ी हैं। बरनाला (पंजाब) के गांव भोतना की लगभग दो हजार महिला किसानों ने कैंसर की बीमारी फैलाने वाली कृषि के खिलाफ अभियान छेड़ दिया है। पंजाब का मालवा क्षेत्र वैसे भी हमारे देश में 'कैंसर की राजधानी' कहा जाता है।

पंजाब की महिलाओं का यह कदम अनायास नहीं। इसके पीछे कीटनाशक से फैल रही बीमारियों की दुखद दास्तान है। हमारे देश में सिर्फ पंजाब ही नहीं, लगभग सभी राज्यों में खेती में भारी मात्रा में कीटनाशकों का इस्तेमाल दिनोदिन बढ़ता जा रहा है। आज से साठ सत्तर वर्ष पहले देश में जहां मात्र दो हजार टन कीटनाशक की खपत थी, आज बढ़कर 90 हजार टन तक पहुंच चुकी है। पहले मात्र 6.4 लाख हेक्टेयर में कीटनाशकों का छिड़काव होता था, अब डेढ़ करोड़ हेक्टेयर तक पहुंच गया है। अधिक उपज लेने चक्कर में कीटनाशकों के धड़ल्ले से इस्तेमाल से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में कैंसर मरीजों संख्या तेजी से बढ़ रही है।

हाल ही मे हरियाण सरकार की ओर से उस राज्य में कीटनाशकों के प्रयोग सम्बंधी एक अध्ययन में पता चला कि सेंट्रल इंसेक्टीसाइड बोर्ड एंड रजिस्ट्रेशन कमेटी की गाइडलाइंस का बिना पालन किए देश में कीटनाशक बिक रहे हैं। इन कीटनाशकों की चपेट में सबसे ज्यादा किसान हैं। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर प्रिवेंशन एंड रिसर्च, नोएडा के अनुसार प्रदेश में खाद्ध पदार्थों के माध्यम से लोगों के शरीर में रोजाना 0.5 मिलीग्राम कीटनाशक जा रहा है। राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर का कहना है कि तंबाकू के बाद देश में कीटनाशक कैंसर का दूसरा बड़ा कारण बन रहा है। लगभग 30 प्रतिशत लोग कीटनाशकों के कारण कैंसर पीड़ित हो जा रहे हैं।

हरियाणा विधानसभा में इसी साल मार्च में कैंसर पर पेश की गई जानकारी भी काफी चौंकाने वाली है। इससे लोग बेखबर हैं। हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री ने सदन को बताया है कि कैंसर से पिछले साल राज्य में सबसे ज्यादा 771 मौतें फरीदाबाद में हुईं। हिसार कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने करीब 14 साल पहले ही इस तरह के हालात से अवगत करा दिया था। उनकी सर्वे रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। सरकार सोती रही। हजारों लोग कैंसर की महामारी की गिरफ्त में आ गए। हिसार कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने वर्ष 2003-04 में राज्य के सभी जिलों में एक सर्वे किया था, जिससे पता चला कि अनाजों, सब्जियों, दूध आदि में रासायनिक प्रदूषण की मात्रा खतरनाक स्तर तक पहुंच चुकी है। रिपोर्ट में बताया गया है कि सब्जियों में 61 पर्सेंट, फलों में 53 पर्सेंट, मक्खन में 67.4 पर्सेंट, दूध में 52 पर्सेंट, पशुओं के चारे में 81 पर्सेंट और कृषि के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले भूजल में 73 पर्सेंट प्रदूषण घुल चुका है।

बरनाला (पंजाब) के गांव भोतना की महिलाओं का मानना है कि कीटनाशकों से महामारी बन रहे कैंसर से निपटने का एकमात्र उपाय अब ऑर्गेनिक खेती है। आंकड़ों के मुताबिक, पिछले एक दशक में कैंसर के बयालीस हजार मामले सामने आ चुके हैं। हरित क्रांति का चेहरा कीटनाशक के व्यापारियों ने काला कर दिया है। मालवा की खेती में पचहत्तर फीसदी तक कीटनाशक दवाएं घुल चुकी हैं। हरे-भरे खेतों में जहरीली फसलें लहलहा रही हैं। हालात इतने खराब हैं कि इस इलाके से गुजरने वाली जोधपुर-भटिंडा पैसेंजर ट्रेन को 'कैंसर ट्रेन' कहा जाने लगा है, जिससे यहां के कैंसर पीड़ित इलाज के लिए बीकानेर (राजस्थान) जाते हैं। अपने कैंसर विरोधी अभियान में जुटीं ये महिलाएं ऑर्गेनिक कृषि के जरिए भूजल स्तर और पर्यावरण दोनो बेहतर बनाना चाहती हैं।

भोतना की अमरजीत, कमलजीत कौर आदि महिलाएं कीटनाशक दवाओं के इस्तेमाल के बिना खेती कर रही हैं। ऐसा आसपास के दो दर्जन गांवों में हो रहा है। ऑर्गेनिक खेती करने वाली इन महिलाओं का दावा है कि कीटनाशकों, रासायनिक खाद और फसलों का उत्पादन बढ़ाने के अन्य पारंपरिक तौर-तरीकों को छोड़ देने के बावजूद उन्हे करोड़ों रुपए सालाना की बचत हो रही है। वह बताती हैं कि पंजाब में कीटनाशकों और रासायनिक खादों के बेतहासा इस्तेमाल से खेती वाले भटिंडा, मुक्तसर, फिरोजपुर, फरीदकोट, मनसा, मोगा, बरनाला आदि जिलों के एक बड़े क्षेत्रफल में मिट्टी की गुणवत्ता में भारी गिरावट आई है। भूजल प्रदूषित हो चुका है।

रिसर्च से पता चला है कि मालवा क्षेत्र में हर साल प्रति 10 लाख लोगों पर 1,089 कैंसर के मामले मिल रहे हैं। मालवा के 11 में से 4 जिले विभिन्न तरह की घातक बीमारियों से घिर गए हैं। हालात भयावह होते देख अब पंजाब कृषि विश्वविद्यालय भी राज्य सरकार के साथ मिलकर रासायनिक खादों के के कारण बढ़ते कैंसर के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाने लगा है। हमारे देश के अन्य इलाकों से अब तो चावल से भी कैंसर होने की खबरें हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की खाद्य सुरक्षा संयोजक अंगेलिका ट्रिशर के मुताबिक आर्सेनिक एक पर्यावरण प्रदूषक है। यह प्राकृतिक रूप से पैदा होता है। चावल के पौधों में यह पानी और मिट्टी से आता है। इसकी सबसे ज्यादा मात्रा एशियाई देशों में पाई जा रही है, जहां चावल का उत्पादन सबसे ज्यादा हो रहा है। चावल में आर्सेनिक की ज्यादा मात्रा कैंसर का सबब बन रही है। इससे सर्वाधिक प्रभावित देशों में भारत भी है। आर्सेनिक का असर फौरन पता नहीं चलता है क्योंकि इसका शरीर पर असर लंबे समय में दिखता है।

कीटनाशकों और रासायनिक खादों से उत्पन्न खतरों को भांप चुके अमेरिका तथा यूरोप के देशों में जैविक कृषि 20 प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ रही है, जबकि हमारा देश अमेरिका या यूरोप के देशों को जो चाय, अंगूर, आम या लीची निर्यात करता है वह जैविक तरीके से उत्पादित होती है। जहरीले रसायनों के प्रयोग से उत्पादित खाद्य पदार्थों को वे वापस लौटा देते हैं। फिर हम रासायनिक खादों, जहरीले कीटनाशकों तथा निर्वंश बीजों को छूट देकर अपनी खेती और मानव स्वास्थ्य को खतरे में डालते जा रहे हैं? खेती में जहरीले रसायनों के प्रयोग से पंजाब में कैंसर तथा अन्य घातक बीमारियों को तेजी से प्रसार हुआ है। वहां की खेती ऊसर होती जा रही है। अनाज का कटोरा कहे जाने वाले इस प्रदेश में किसानों की हालत बिगड़ती जा रही है और वे आत्महत्या के लिए विवश हो रहे हैं। कीटनाशकों और रासायनिक खादों के बेतहासा इस्तेमाल के खिलाफ पंजाब की महिलाओं का एकजुट प्रयास आने वाले दिनो में कैंसर रोगियों की संख्या थाम सकता है।

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