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अमेरिका में लाखों का पैकेज छोड़ अपने देश के गरीब मासूमों को लिखा-पढ़ा रहीं डॉ. भारती

अमेरिका में लाखों का पैकेज छोड़ अपने देश के गरीब मासूमों को लिखा-पढ़ा रहीं डॉ. भारती

Saturday November 30, 2019 , 4 min Read

अमेरिका में 25 लाख का सैलरी पैकेज ठुकरा कर गाजियाबाद में घरों में काम करने वाली मेड के बच्चों, झुग्गी-झोपड़ियों की महिलाओं की जिंदगी संवार रही डॉ भारती गर्ग उनके लिए एक मिसाल हैं, जो उच्च शिक्षा के बाद सिर्फ अपने लिए जीना जानते हैं। अब तो डॉ गर्ग ने वंचित बच्चों के लिए एक स्कूल भी खोल दिया है। 

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बच्चों के साथ डॉ. भारती (फोटो: सोशल मीडिया)

सालाना 25 लाख रुपए का सैलरी पैकेज, वह भी अमेरिका में, भला कौन नहीं चाहेगा, लेकिन आज भीषण बेरोजगारी के दौर में इस कामयाबी को ठोकर मारकर गाजियाबाद (उ.प्र.) के इंदिरापुरम इलाके में मेड और उनके बच्चों की जिंदगी संवार रहीं असमी फाउंडेशन (Asmee Foundation), असमी शिक्षा केंद्र की फॉउंडर एवं बायोटेक में पीएचडी डॉ भारती गर्ग लिखती हैं, '


"मैं कभी डॉयरी नहीं लिखती हूं लेकिन जब भी मुझे मौका मिला तो मैंने अपनी जिंदगी की कुछ बातें उसमें लिखीं। शादी के बाद हर महिला की तरह मैं भी अपने परिवार में व्यस्त हो गई थी लेकिन कुछ समय बाद मैंने आसपास काम कर रही मेड को पढ़ाना शुरू किया। इसमें मेरे साथ बाकी महिलाएं भी शामिल हुईं। अब हम उन्हे रहन-सहन का तरीका भी बताती हैं। जैसे ही घर के काम से निपट जाती हूं तो मेड के साथ वक़्त बिताती हूं। उन्हे पढ़ाने पर बहुत खुशी मिलती है। मेरा बचपन से सपना था कि घर में काम करने वाली मेड की मदद करनी है, और वह अब पूरा हो रहा है।"  


गाजियाबाद के अहिंसा खंड-2 में प्रिंसेस पार्क सोसायटी में पति के साथ रह रहीं डॉ. भारती गर्ग 2010 में अच्छे-खासे सैलरी पैकेज पर अमेरिका में नौकरी कर रही थीं। उसी साल वह एक दिन फैमिली फंक्शन के लिए भारत आईं।


उन्ही दिनो उन्होंने देखा कि उनके घर पर काम करने वाली मेड अपने बच्चे को साथ लेकर झाड़ू-पोछा करती है। एक दिन उन्होंने उससे पूछा कि क्या तुम्हारा बच्चा स्कूल नहीं जाता है, तो मेड ने उन्हे बताया कि बच्चे को पढ़ाने के लिए उसके पास पैसे नहीं हैं। वह किसी तरह घरों में काम कर सिर्फ उसका पेट भर पाती है।

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इसके बाद भारती ने तय किया कि अब वह वापस यूएस नहीं जाएंगी बल्कि अपने देश में रहकर सिर्फ ऐसे जरूरतमंद लोगों के लिए काम करेंगी।


इसके बाद आसपास की झुग्गियों के बच्चों को उन्होंने पढ़ाना शुरू कर दिया। उसके बाद वर्ष 2016 में वह कनावनी में तीन कमरों का एक स्कूल चलाने लगीं, जहां प्ले से लेकर पहली क्लास तक पढ़ाई होने लगी।


सिर्फ पांच बच्चों से शुरू हुए स्कूल में आज बच्चों की संख्या पचास तक पहुंच चुकी है। यहां प्ले से लेकर 5वीं क्लास तक की पढ़ाई होती है।


गरीबों और अशिक्षित लोगों को राह दिखाने, उनका भविष्य संवारने का बीड़ा उठाए डॉ गर्ग पहली क्लास के बाद बच्चों का प्राइवेट स्कूल में पढ़ने के लिए भेज देती हैं।


उनका खर्च उठाने के लिए उन्होंने इंदिरापुरम, वैशाली और वसुंधरा में सक्षम लोगों से बातचीत कर एक-एक बच्चों के स्कूल का खर्च उठाने के लिए राजी किया है। उनके स्कूल से निकले करीब 30 बच्चों को अब अच्छी एजुकेशन मिल रही है।


वह बताती हैं कि इन बच्चों को स्कूल ड्रेस लेकर कॉपी-किताब तक, वह हर जरूरत पूरी करती हैं। इस काम में उनकी दोस्त मयूरी, प्रियंका, दीपाली, अनुपमा, शालिनी अलका आदि लगभग पचास महिलाएं उनका सहयोग करती हैं। उनके असमी फॉउंडेशन से धीरे-धीरे बड़ी संख्या में महिलाएं जुड़ने लगी हैं।


अब तो उन्हे सक्षम लोग फंडिंग भी करने लगे हैं। संसाधनहीन, वंचित-गरीब महिलाओं की मुश्किलों पर फोकस वे और भी कई तरह के काम संचालित करती रहती हैं।


मसलन, अपने दोस्तों के साथ झुग्गी बस्तियों में जाकर महिलाओं को महावारी के बारे में जागरूक करने के साथ-साथ उन्हें पैड बांटती हैं। वह उन्हे पैड इस्तेमाल न करने से होने वाली बीमारियों के बारे में आगाह करती हैं।