जो था कभी ट्रैवल एजेंसी में कैशियर उसने खड़ी कर दी देश की दूसरी सबसे बड़ी एय़रलाइन कंपनी
300 रूपये महीना कमाने वाला ये शख़्स आज है जेट एयरवेज का मालिक, गिनती होती है देश के सबसे अमीर लोगों में...
दिवालिया होने के बाद नरेश गोयल का परिवार उनकी मां के एक रिश्तेदार के यहां रहने लगा। यहां नरेश की पढ़ाई फिर से शुरू हुई, लेकिन काफी आभावों में। जिस घर में वे रहते थे वहां बिजली की कोई व्यवस्था नहीं थी, वे स्ट्रीट लाइट की रोशनी में अपनी पढ़ाई करते थे। नरेश चार्टर्ड अकाउंटेंट बनने का सपना देखते थे। लेकिन आर्थिक विपन्नता की वजह से उन्हें बी. कॉम करना पड़ा। 1967 में ग्रैजुएशन खत्म करने के बाद उन्होंने अपने अंकल की ट्रैवल एजेंसी में बतौर कैशियर की नौकरी शुरू कर दी। इस नौकरी से उन्हें हर महीने 300 रुपये मिलते थे।
नरेश की जिंदगी में कई सारे उतार-चढ़ाव भी आए। देश में एविएशन क्राइसिस से लेकर एय़रलाइंस कंपनियों में किराए को लेकर प्रतिस्पर्धा को उन्होंने अच्छे से हैंडल किया। वह बदलते वक्त और बदलते मार्केट के हिसाब से अपने बिजनेस की रणनीति अपनाते रहे। आज जेट एय़रवेज 21 प्रतिशत पैसेंजर मार्केट शेयर के साथ देश की दूसरी सबसे बड़ी एयरलाइन कंपनी है।
सड़क से आसमां की बुलंदी पर पहुंचने की कहानियां तो आपने हो सकता है सुनी हों, लेकिन हकीकत में सड़क से आसमान में उड़ने की कहानी जेट एयरवेज के मालिक और भारत के 16वें सबसे अमीर शख्स नरेश गोयल की है। पंजाब के संगरूर में एक ज्वैलर के घर पैदा हुए नरेश जब सिर्फ 12 साल के थे तो उनके घर की आर्थिक स्थिति बिल्कुल तबाह हो गई थी। वह कहते हैं, 'हमारे पास खाने तक के पैसे नहीं थे, रहने के लिए घर नहीं था, पढ़ने के लिए फीस नहीं थी।'
दिवालिया होने के बाद नरेश का परिवार उनकी मां के एक रिश्तेदार के यहां रहने लगा। यहां नरेश की पढ़ाई फिर से शुरू हुई, लेकिन काफी आभावों में। जिस घर में वे रहते थे वहां बिजली की कोई व्यवस्था नहीं थी, वे स्ट्रीट लाइट की रोशनी में अपनी पढ़ाई करते थे। नरेश चार्टर्ड अकाउंटेंट बनने का सपना देखते थे। लेकिन आर्थिक विपन्नता की वजह से उन्हें बी. कॉम करना पड़ा। 1967 में ग्रैजुएशन खत्म करने के बाद उन्होंने अपने अंकल की ट्रैवल एजेंसी में बतौर कैशियर की नौकरी शुरू कर दी। इस नौकरी से उन्हें हर महीने 300 रुपये मिलते थे।
लेकिन वे अच्छे अवसरों की तलाश में भी थे और उसके लिए मेहनत भी कर रहे थे। 1969 में उन्हें ईराकी एयरवेज में बतौर पब्लिक रिलेशन मैनेजर की नौकरी मिल गई। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1971 से लेकर 1974 के दौरान उन्होंने ALIA, रॉयल जॉर्डनियन समेत जैसी एयरलाइंस कंपनियों में काम किया। इस दौरान वे काफी विदेश यात्राएं कीं और ट्रैवल बिजनेस का अच्छा अनुभव हासिल किया। नरेश ने 1974 में अपना स्टार्ट अप शुरू किया। उन्होंने अपनी मां से कुछ पैसे लिए और 'जेटएयर' नाम से एक ट्रैवल एजेंसी खोल ली। उनकी एजेंसी एयर फ्रांस, ऑस्ट्रियन एयरलाइंस, कैथी पैसिफिक जैसी एयरलाइंस का सेल्स और मार्केटिंग का काम देखती थी।
यह काम काफी लंबा चला। 1990 के बाद वैश्वीकरण और उदारीकरण जैसी स्थितियां बनीं तो भारत में भी एविएशन सेक्टर में तेजी आई। उन्होंने इस मौके का सही फायदा उठाया औऱ अपनी ट्रैवल एजेंसी को जेट एयरवेज़ नाम की एयरलाइंस कंपनी में तब्दील कर दिया। 1993 से वे एयर टैक्सी ऑपरेट करने लगे। इसके बाद उनका बिजनेस बढ़ता गया और 2004 आते-आते उनकी कंपनी इंटरनेशनल उड़ान भी संचालित करने लगी। 2007 में कंपनी ने एयर सहारा को खरीद लिया और 2010 में भारत की सबसे बड़ी एयरलाइंस कंपनी बन गई।
नरेश की जिंदगी में कई सारे उतार-चढ़ाव भी आए। देश में एविएशन क्राइसिस से लेकर एय़रलाइंस कंपनियों में किराए को लेकर प्रतिस्पर्धा को उन्होंने अच्छे से हैंडल किया। वह बदलते वक्त और बदलते मार्केट के हिसाब से अपने बिजनेस की रणनीति अपनाते रहे। आज जेट एय़रवेज 21 प्रतिशत पैसेंजर मार्केट शेयर के साथ देश की दूसरी सबसे बड़ी एयरलाइन कंपनी है। 2016 में जेट एय़रवेज ने 8 साल में अपना पहला सालाना लाभांश पेश किया जो कि एयरलाइन के इतिहास में सबसे ज्यादा था। नरेश बताते हैं, 'जेट एयरवेज ने बीते दो सालों में बिजनेस को एक नया रूप दे दिया है जिसकी बदौलत ऑपरेशनल परफॉर्मेंस और फायदे में काफी सुधार हुआ है।'
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