180 किलोमीटर का पैदल सफर कर ये किसान क्यों पहुंचे मुंबई?
आप भी जानें कि क्या थीं किसानों की मांगें और क्या हासिल करने के लिए नंगे पांव इन्होंने किया इतना लंबा सफर तय..
नासिक से मुंबई का 180 किलोमीटर का सफर पैदल तय कर ये किसान अपना विरोध जताने और अपनी मांगों को पूरा करवाने के लिए पहुंचे थे। किसानों के पैरों के छालों की जो तस्वीरें सोशल मीडिया पर आई हैं उसे देखकर आप सिहर जाएंगे। पैरों में छाले और उससे निकलता खून आपको द्रवित कर देगा। आइए हम जानते हैं कि इन किसानों की मांगें क्या थीं और क्या हासिल करने के लिए ये इतना लंबा सफर पैदल तय कर रहे थे।
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किसान मार्च
किसानों के इस आंदोलन की सबसे खास बात यह रही, कि मुंबई में रहने वाले लोगों ने इन किसानों की हरसंभव सहायता की। मुंबई के डब्बा वाला समूह ने आंदोलन में शामिल सभी किसानों के एक दिन के भोजन की जिम्मेदारी स्वयं पर ली। उन्होंने आंदोलन को समर्थन देने की घोषणा भी की। वहीं कई सारे समूहों ने किसानों को खाना खिलाने से लेकर उनके पैरों के लिए चप्पल और दवाएं बांट रहे थे।
इन दिनों महाराष्ट्र के किसान अपनी मांगों को लेकर देश की आर्थिक राजधानी मुंबई की तरफ कूच कर रहे थे। इन किसानों का जज्बा देखकर हर कोई इनकी तारीफ कर रहा था और इनकी मांगों को सरकार द्वारा स्वीकार किए जाने की भी वकालत कर रहा था। नासिक से मुंबई का 180 किलोमीटर का सफर पैदल तय कर ये किसान अपना विरोध जताने और अपनी मांगों को पूरा करवाने के लिए पहुंचे थे। किसानों के पैरों के छालों की जो तस्वीरें सोशल मीडिया पर आई हैं उसे देखकर आप सिहर जाएंगे। पैरों में छाले और उससे निकलता खून आपको द्रवित कर देगा। आइए हम जानते हैं कि इन किसानों की मांगें क्या थीं और क्या हासिल करने के लिए ये इतना लंबा सफर पैदल तय कर रहे थे।
इन किसानों की तीन प्रमुख मांगें हैं। जिनके मुताबिक वन विभाग द्वारा कब्ज़ा की गयी जमीनों का मालिकाना हक़ किसानों को वापस दिया जाये। दूसरा बीजेपी सरकार अपने वादों के मुताबिक किसानों का कर्ज़ माफ़ करे और किसानों की आत्महत्या को रोकने के लिए उचित कदम उठाये जाएं। साथ ही किसानों की भलाई से जुड़ी एम एस स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करने की भी मांग है। हालांकि पिछले साल महाराष्ट्र सरकार ने 34,000 करोड़ का किसान कर्ज माफ करने का ऐलान किया था, जिससे करीब 89 लाख किसानों को फायदा पहुंचने की बात कही गई थी।
लेकिन एक रिपोर्ट के मुताबिक बैंकों के गलत तरीके से लोन माफ करने की वजह से किसानों को फायदा नहीं पहुंच पाया। कर्जमाफी में घोर अनियमितता बरती गई। किसानों की एक महत्वपूर्ण मांग है कि उनकी उपज का उचित दाम मिले। सरकार द्वारा फसल के लिए जो न्यूनतम मूल्य निर्धारित किया जाता है वह सिर्फ कागज तक सिमट कर रह जाता है उसका असल में अमल होना जरूरी है। सरकार के e-NAM सिस्टम के बावजूद अधिकतर फसल की कीमत बिचौलियों द्वारा निर्धारित की जाती है।
एक वेबसाइट कठफोड़वा से बात करते हुए नासिक जिले के सोनगांव के जगन्नाथ शार्दूल ने बताया कि वे जिन जमीनों पर पीढ़ियों से खेती करते आ रहे थे, अचानक वन विभाग ने उन्हें उससे बेदखल कर दिया। उन जमीनों को उन्होंने कुदाल से खेती लायक बनाया था लेकिन अब अधिकांश हिस्से में घास उग आती है। वे अब भी चोरी छिपे कुछ हिस्सों पर खेती करते हैं क्योंकि जीविका के लिए यह जरुरी है लेकिन अब उस जमीन पर उनका मालिकाना हक़ नहीं रहा। न ही उनके नाम से अब बीमा होता है और न ही वे लोन ले सकते हैं। चूंकि जमीनें भी बेहद कम हैं, उन्हें खेती के अलावा मजदूरी भी करनी पड़ती है। मुख्यतः मूँगफली, सोयाबीन और मक्का की खेती करने वाले छोटे किसान इससे अधिक परेशान हैं।
आंदोलन को सुचारु रूप से चलाने के लिए प्रत्येक गाँव से एक गाड़ी आयी है जिसमें उस गाँव से आये लोगों के भोजन पानी की व्यवस्था है। यह व्यवस्था किसानों ने स्वयं मिल कर की है। एक राजनीतिक दल द्वारा भोजन वितरण के बारे में पूछने पर एक किसान ने कहा कि हमलोग उनके आश्रय पर इतनी दूर नहीं आये हैं। हम अपना खाना पीना खुद लेकर आये हैं। आत्मविश्वास और उम्मीद से लबरेज़ ये किसान, झुकने को तैयार नहीं दिख रहे। कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में चल रहे इस आंदोलन को महाराष्ट्र के सभी दलों ने अपना समर्थन दिया। कांग्रेस, आप पार्टी, शिव सेना, राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी, राजठाकरे और बहुत से दलों ने समर्थन की घोषणा की।
इसके अलावा इस आंदोलन की सबसे खास बात यह रही कि मुंबई में रहने वाले लोगों ने इन किसानों की हरसंभव सहायता की। मुंबई के डब्बा वाला समूह ने आंदोलन में शामिल सभी किसानों के एक दिन के भोजन की जिम्मेदारी स्वयं पर ली। उन्होंने आंदोलन को समर्थन देने की घोषणा भी की। वहीं कई सारे समूहों ने किसानों को खाना खिलाने से लेकर उनके पैरों के लिए चप्पल और दवाएं बांट रहे थे। सोमवार की शाम किसानों का काफिला वापस लौट गया। उनके वापस जाते वक्त भी लोग किसानों को जूस, पानी और खाने की सामग्री बांट रहे थे।
वहीं किसानों ने भी मुंबई के लोगों का ख्याल रखा और अपने आंदोलन से उन्हें किसी भी प्रकार की अव्यवस्था में नहीं डाला। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि शनिवार रात किसान विधानसभा की तरफ कूच कर रहे थे। एक संवाददाता ने उनसे पूछा कि देर रात मार्च करने की क्या ज़रूरत है, सुबह निकल जाते? इस पर आंदोलन का नेतृत्व करने वाले ने किसान ने कहा कि सुबह एसएससी का इम्तिहान है। बच्चों को परेशानी ना हो इसलिए हम अभी विधानसभा पहुंचकर बैठेंगे। किसानों की इस संवेदनशीलता को देखकर उन्हें सलाम करना तो बनता है। उम्मीद है सरकार इन किसानों की मांगों के साथ ईमानदारी से न्याय करेगी और इन्हें इनका हक वापस करेगी।
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