कृत्रिम प्रकाश से कैसे कम हो रही है जुगनुओं की संख्या
रिसर्च से पता चलता है कि कृत्रिम प्रकाश की वजह से जुगनुओं की संख्या घट जाती है. ज़्यादा रोशनी के करीब बहुत कम जुगनू होते हैं. निशाचर प्रजातियों की आबादी पर कृत्रिम प्रकाश के प्रदूषण के सटीक प्रभावों का बहुत कम अध्ययन किया जाता है.
कीट प्राकृतिक प्रकाश व्यवस्था के संतुलन में काम करते हैं और प्रकाश की तीव्रता, तरंग दैर्ध्य (वेवलेंथ), स्रोतों और अन्य बदलावों के प्रति संवेदनशील होते हैं. निशाचर (रात को चलने वाले) कीड़े विभिन्न गतिविधियां करते हैं जैसे कि खाने की खोज, शिकारियों से बचाव या सितारों और चंद्रमा का उपयोग करके रास्ता ढूंढना. लैम्पाइरिडे परिवार के कीड़ों को आमतौर पर जुगनू के रूप में जाना जाता है और इन्हें प्रजनन के लिए अंधेरे की आवश्यकता होती है.
इन जीवों को देखने के लिए जून का महीना सबसे अच्छा समय माना जाता है क्योंकि यह इनके प्रजनन का मौसम है. महाराष्ट्र में मई और जून में जुगनुओं का त्योहारों मनाया जाता है. इस त्योहार में स्थानीय समुदायों और वन्यजीवों के प्रति उत्साही लोगों के साथ-साथ देश के विभिन्न हिस्सों के फोटोग्राफर शामिल होते हैं. हालांकि, लैम्पाइरिडे समूह के जीव बढ़ती शहरी रोशनी से प्रभावित हो रहे हैं जिससे उनकी संख्या प्रभावित प्रभावित हो रही है.
क्या होता है जब जुगनू कृत्रिम प्रकाश के साथ संघर्ष करते हैं?
जुगनू अपने बायोलुमिनसेंस (जिवदीप्ती) का उपयोग करते हैं, यह एक रासायनिक प्रतिक्रिया होती है जिसके तहत ये जीव संचार के लिए प्रकाश उत्पन्न करते हैं. वयस्क जुगनू अपने विपरीत लिंग के जुगनुओं को संदेश भेजने के लिए प्रकाश उत्पन्न करते हैं. संभोग के मौसम के दौरान, जुगनू दिन में देर से चमकते हैं. अधिकतर सूर्यास्त के तुरंत बाद, जब प्रकाश कम हो जाता है वे तभी चमकते हैं. तेज कृत्रिम प्रकाश की वजह से इनके इस संकेत भेजने की गतिविधि बाधित हो सकती है.
कृत्रिम प्रकाश की उपस्थिति में, जुगनुओं को तेज रोशनी करने की कोशिश में, और संभावित साथियों द्वारा उनके संकेतों पर ध्यान देने में अधिक ऊर्जा खर्च करने के लिए मजबूर होना पड़ता है. हालांकि इसका प्रभाव विभिन्न स्तर के प्रकाश में विभिन्न प्रजातियों के बीच अलग-अलग होता है.
साल 2018 के एक अध्ययन के अनुसार, आमतौर पर ताइवान और चीन के कुछ हिस्सों में पाए जाने वाले एक्वाटिका फिक्टा फायरफ्लाइज के फ्लैश के बीच का अंतराल बहुत अधिक हो जाता है, क्योंकि जुगनू कृत्रिम प्रकाश के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए तेज चमकने की कोशिश करते हैं. यह उनके साथी को खोजने की संभावना को कम करता है और प्रजनन दर को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है.
जुगनू परिवेशी प्रकाश संकेतों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं क्योंकि उनकी संभोग की गतिविधियां दिन के समय में नहीं होती हैं. निशाचर कीड़े सामान्य रूप से प्राकृतिक प्रकाश व्यवस्था के अनुकूल होते हैं, इसलिए वे कृत्रिम प्रकाश के प्रति बेहद संवेदनशील होते हैं. कृत्रिम प्रकाश उन्हें भटका सकते हैं, आकर्षित कर सकते हैं या अंधा कर सकते हैं. दुनिया भर के शोधकर्ताओं ने जुगनू जैसे कीटों की घटती उपस्थिति को दर्ज किया है, हालांकि निशाचर और बायोलुमिनसेंट कीड़ों की आबादी पर उपलब्ध आंकड़े सीमित हैं. ऐसी परिस्थिति में प्रकाश प्रदूषण, पारिस्थितिकी की चिंता का विषय बन जाता है.
जुगनू समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में आर्द्रभूमि और जंगली क्षेत्रों के पास दलदल में पाए जाते हैं. वयस्क जुगनू अल्पकालिक होते हैं जिनका जीवनकाल एक सप्ताह से लेकर कुछ महीनों तक होता है.
अन्य देशों की तुलना में भारत में जुगनुओं पर अच्छी तरह से अध्ययन नहीं किया गया है. इनके बारे में बहुत कम आंकड़े उपलब्ध हैं. एक अध्ययन में नेशनल सेंटर फॉर कोस्टल रिसर्च के एक शोधकर्ता रमेश चतरगड्डा ने आंध्र प्रदेश के एक खास क्षेत्र में एब्सकॉन्डिटा चिनेंसिस जुगनू प्रजातियों की आबादी को रिकॉर्ड करने का प्रयास किया. बरनकुला गाँव में 1996 में 10-मीटर क्षेत्र में जुगनुओं की संख्या 500 थी जो 2019 में 10-20 रह गई. यह देखते हुए कि 23 साल के अंतराल में केवल दो गणना दर्ज की गई, इस गिरावट के सटीक कारणों को निर्धारित करना मुश्किल है. हालाँकि, स्थानीय समुदाय इस बात की पुष्टि करते हैं कि उन्होंने जुगनू की आबादी में भारी गिरावट देखी है.
साल 2020 में एक अन्य सर्वेक्षण के अनुसार, जिसके तहत जुगनुओं के विलुप्त होने के खतरों को वैश्विक परिप्रेक्ष्य में समझने का प्रयास किया गया, विशेषज्ञों द्वारा उनके निवास की जगहों का नुकसान, रात में कृत्रिम प्रकाश से प्रकाश प्रदूषण, और कीटनाशक को गंभीर खतरा बताया गया. शोधकर्ताओं ने सबसे प्रमुख कथित खतरों की पहचान करने के लिए विविध भौगोलिक क्षेत्रों के विशेषज्ञों का सर्वेक्षण किया. प्रतिक्रिया देने वाले 49 विशेषज्ञों में से केवल दो दक्षिण एशिया से थे. उन्होंने माना कि निवास स्थान का नुकसान और कीटनाशक सबसे बड़े खतरे हैं.
हालांकि कीटनाशकों को जुगनुओं की घटती संख्याओं का एक प्रमुख कारण माना जाता है. ब्राजील में एक अलग प्रजाति फोटिनस एसपी-1 पर एक अलग अध्ययन में पाया गया कि प्रकाश प्रदूषण एक प्रमुख कारण है. इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि जुगनुओं के कम होने की घटनाएं प्रकाश की निकटता पर निर्भर करती हैं (जैसा कि उनके फ्लैश पैटर्न द्वारा देखा गया है). उन्होंने मुख्य कृत्रिम प्रकाश स्रोत से 60, 150 और 280 मीटर की दूरी पर तीन अलग-अलग क्षेत्रों का अध्ययन किया. उन्होंने जुगनू की संख्या में महत्वपूर्ण अंतर देखा. प्रकाश स्रोत के जितना करीब देखा गया वहां उतने ही कम जुगनू थे.
ब्राजील के अध्ययन के ये परिणाम महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे सक्रिय जुगनुओं की संख्या और कृत्रिम प्रकाश से दूरी के बीच सीधे संबंध के बारे में प्रमाणित तरीके से बताते हैं. दुनिया में अंधेरे क्षेत्रों में कमी के साथ, जुगनू अधिक से अधिक निवास स्थान के नुकसान का सामना कर रहे हैं जिससे प्रकाश प्रदूषण उनकी आबादी के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा बन गया है.
जिस तरह से जुगनुओं की आबादी कम हो रही है ऐसा लगता है वे लुप्तप्राय हो सकते हैं. कई प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं. ख़ास तौर से भारत में इस पर अध्ययन के प्रयास न के बराबर हुए हैं. शोध की इस कमी का एक मुख्य कारण यह है कि फोटो प्रदूषण या प्रकाश प्रदूषण को मापना मुश्किल है. इससे ख़ास तौर से बायोल्यूमिनसेंट प्रजातियों के जीव प्रभावित होते हैं, इसका भी अध्ययन करना मुश्किल है. प्रजातियों और कृत्रिम प्रकाश में उनके बदलते व्यवहार पर और अधिक शोध की आवश्यकता है.
पारिस्थितिक तंत्र में जुगनू की भूमिका
फायरफ्लाइज़ के ल्यूमिनसेंट का दवा, खाद्य सुरक्षा परीक्षण और फोरेंसिक में कई तरह का प्रयोग होता है. हालांकि, इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि एक पारिस्थितिकी तंत्र परस्पर एक दूसरे से जुड़े हुए हिस्सों से बना होता है. श्रृंखला में प्रत्येक कड़ी एक-दूसरे पर निर्भर करती है और प्रत्येक प्रजाति का नुकसान इस कड़ी को कमजोर करता है.
पौधे और जानवर विभिन्न प्रक्रियाओं को अंजाम देते हैं जो अन्य प्रजातियों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं. जुगनू के लार्वा घोंघे, स्लग, घुन और केंचुओं को खाते हैं, जिससे उनकी आबादी नियंत्रित रहती है. इन अकशेरुकी जीवों की अधिकता, वनस्पति विकास को नुकसान पहुंचाती है. यह उस वनस्पति को खाने वाले वन्यजीवों को प्रभावित करता है. स्नोबॉल प्रभाव एक विशाल पर्यावरणीय क्षति है. जुगनू, अन्य प्रजातियों की तरह, पारिस्थितिकी तंत्र में एक नाजुक संतुलन बनाए रखते हैं.
(यह लेख मूलत: Mongabay पर प्रकाशित हुआ है.)
बैनर तस्वीर: दुनिया भर में जुगनुओं के लिए उनके आवास का नुकसान, रात की कृत्रिम रोशनी से प्रकाश प्रदूषण और कीटनाशकों को सबसे बड़ा खतरा माना जाता है। तस्वीर - अनस्प्लैश
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