देव आनंद पुण्यतिथि – जब 85 रुपए तंख्वाह पाने वाला सरकारी क्लर्क रातोंरात हिंदी फिल्मों का सुपरस्टार बन गया
देव आनंद को दुनिया से रुखसत 11 साल हो चुके हैं, लेकिन अपनी फिल्मों के जरिए वो आज भी अपने चाहने वालों के दिलों में जिंदा हैं.
आज बॉलीवुड के सदाबहार हीरो देव आनंद की पुण्यतिथि है. 3 दिसंबर, 2011 को 88 साल की उम्र में लंदन में उनका निधन हो गया. उन्हें इस फानी दुनिया को विदा कहे 11 साल हो चुके हैं, लेकिन अपनी कालजयी फिल्मों के जरिए वो आज भी अपने चाहने वालों के दिलों में जिंदा हैं.
गाइड, ज्वेल थीफ, जॉनी मेरा नाम, हरे रामा हरे कृष्णा जैसी फिल्में देखते हुए आज भी पुरानी पीढ़ी के लोग नॉस्टेल्जिया में चले जाते हैं. नई पीढ़ी के लोग उन कहानियों को सुनकर थ्रिल महसूस करते हैं, जब मां-दादियां देव आनंद की खूबसूरती और उन पर जान छिड़कने वाली लड़कियों के किस्से बताती हैं.
आज उनकी बारहवीं बरसी पर हम आपको बता रहे हैं देव आनंद की जिंदगी से जुड़े कुछ रोचक किस्से और कुछ ऐसे तथ्य जो बहुत पॉपुलर नहीं हैं.
जिसकी एक झलक के लिए छत से कूदने को बेताब थीं लड़कियां
देव आनंद ने 100 से अधिक फिल्मों में काम किया. वह अपने समय के सबसे खूबसूरत अभिनेताओं में से एक थे. कहते हैं, कोर्ट ने देव आनंद पर सार्वजनिक रूप से काला सूट पहनने पर पाबंदी लगा दी थी.
दरअसल हुआ ये था कि फिल्म ‘काला पानी’ में देव आनंद सिनेमा के पर्दे पर सफेद शर्ट और काले कोट में नजर आए. यह रंग उन पर इतना अच्छा लग रहा था कि लड़कियां और महिलाएं सभी उन पर फिदा हो गईं. उसके बाद वे जब भी सफेद शर्ट पर काला कोट पहने बाहर निकलते, देखने वालों की भीड़ लग जाती. इस हद तक कि उनकी एक झलक पाने को लड़कियां छत से कूद जाने तक पर आमादा हो जातीं. मुंबई में एकाध ऐसी घटना हुई भी, जहां एक लड़की उन्हें देखने के लिए छत से कूद पड़ी. उसके बाद आखिरकार कोर्ट ने इस मामले में दखल दिया और देव साहब के काला कोट पहनने पर प्रतिबंध लग गया.
देव साहब उसके बाद भी काले कोट में नजर आए, लेकिन सिर्फ सिनेमा के पर्दे पर.
धरम देव आनंद उर्फ चिरु
देव आनंद का जन्म का नाम देवदत्त पिशोरीमल आनंद था. लोग उन्हें धरम देव आनंद कहते थे. उनका निक नेम चिरु हुआ करता था. परिवार के और नजदीकी लोग उन्हें चिरु कहकर बुलाते थे.
अकाउंटेंसी फर्म का क्लर्क 85 रुपए तंख्वाह
देव आनंद का जन्म 23 सितंबर, 1923 को पंजाब के गुरदासपुर जिले के एक गांव घरोटा में हुआ था. अपनी स्कूली शिक्षा उन्होंने सेक्रेड हार्ट स्कूल, डलहौजी, हिमाचल प्रदेश की. फिर धर्मशाला से कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे आगे पढ़ने लाहौर चले गए. उन्होंने लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में बीए किया. मुंबई में अपने संघर्ष के दिनों में वे 85 रुपये के मामूली वेतन पर एक अकाउंटेंसी फर्म में क्लर्क के रूप में काम करते थे. उन्होंने कुछ वक्त मिलिट्री सेंसर ऑफिस में भी काम किया, जहां उनकी तंख्वाह 160 रुपए थी.
जब रातोंरात किस्मत बदल गई उस बांके नौजवान की
देव आनंद को सिनेमा में लाने का श्रेय दादामुनि अशोक कुमार को जाता है. एक फिल्म के सेट पर देव आनंद पर उनकी नजर पड़ी. देव आनंद का फिल्मी दुनिया से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं था. वो संघर्ष के, फांकेमस्ती के दिन थे. एक दिन यूं ही देव आनंद घूमते-टहलते एक फिल्म के सेट पर जा पहुंचे. वो आंखों में ढेर सारा कौतूहल और जिज्ञासा भरे सिर्फ फिल्म की शूटिंग देखने में व्यस्त थे, तभी अशोक कुमार की नजर उन पर पड़ी. हैंडसम तो वो थे ही. अशोक कुमार की नजरों में वो अटक गए. बस फिर क्या था. उन्होंने वहां से जो देव आनंद का हाथ पकड़ा तो उन्हें सुपर स्टार बनाकर ही छोड़ा.
फिल्मी नगरी भी अजीब है. यहां कब रातोंरात किसकी किस्मत बदल जाए, कोई नहीं जानता.
अशोक कुमार ने दिया था फिल्मों में पहला ब्रेक
अशोक कुमार ने देव आनंद को फिल्मों में पहला ब्रेक दिया. उस समय बॉम्बे टॉकीज प्रोडक्शन जिद्दी फिल्म के लिए हीरो की तलाश कर रहा था. अशोक कुमार देव आनंद को लेकर बॉम्बे टॉकीज के दफ्तर पहुंच गए. फिल्म को अपना हीरो मिल गया था. फिल्म में उनकी हीरोइन थीं कामिनी कौशल. फिल्म का निर्देशन शहीद लतीफ ने किया था. फिल्म रिलीज हुई और सुपरहिट रही. उसके बाद देव आनंद ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
शम्मी कपूर और अमिताभ बच्चन को सुपरस्टार बनाने का श्रेय देव आनंद को जाता है
बॉलीवुड में एक पुरानी कहावत है कि फिल्मों में किसी न्यूकमर को ब्रेक कैसे मिलता है. कोई बड़ा नामी डायरेक्टर अपनी फिल्म के लिए पहले से स्थापित हीरो को लेना चाहता है. वो फिल्म करने से मना कर देता है और किसी नए लड़के को चांस मिल जाता है. शाहरुख खान को बाजीगर ऐसे ही मिली थी. देव आनंद के साथ भी कुछ ऐसा हुआ. उनकी वजह से शम्मी कपूर को न सिर्फ चांस मिला, बल्कि वो फिल्म उनके कॅरियर की सुपरहिट फिल्म साबित हुई.
हुआ यूं था कि निर्देशक सुबोध मुखर्जी जंगली फिल्म बना रहे थे और अपनी फिल्म में देव आनंद को हीरो लेना चाहते थे. देव आनंद ने फिल्म करने से इनकार कर दिया और आखिरकार उनकी जगह रोल मिल गया एक न्यूकमर शम्मी कपूर को. यूं तो शम्मी कपूर खुद एक नामी फिल्मी परिवार से आते थे, लेकिन पिता ने फिल्मों में ब्रेक के लिए उनकी कोई मदद करने से इनकार कर दिया था. फिलहाल फिल्म बहुत बड़ी सुपरहिट रही और इस फिल्म ने बॉलीवुड में शम्मी कपूर को बतौर हीरो स्थापित कर दिया.
कुछ ऐसा ही हुआ नासिर हुसैन की फिल्म ‘तीसरी मंजिल’ के साथ. नासिर देव आनंद को हीरो लेना चाहते थे, लेकिन उनके इनकार के बाद फिल्म मिली शम्मी कपूर को और सुपरहिट रही. इसके अलावा अमिताभ बच्चन की सुपरहिट फिल्म जंजीर भी पहले देव आनंद को ही ऑफर की गई थी, जो बाद में अमिताभ बच्चन को मिली और उनके कॅरियर की सबसे हिट फिल्म साबित हुई.
योगी जैसा जीवन जीने वाला अभिनेता
देव आनंद पर उम्र का असर बहुत उम्र गुजर जाने के बाद दिखाई देना शुरू हुआ. 60 पार कर चुकने के बाद भी वो ऐसे लगते थे मानो उम्र ने उन पर अपना शिकंजा कसने से इनकार कर दिया हो. इसका राज उनकी सादगीपूर्ण जीवन शैली में था. इफरात पैसा कमाने, इफरात यश और शोहरत आने के बाद भी वो ये नहीं भूले कि एक अभिनेता की सबसे बड़ी पूंजी उसका अपीयरेंस है, जिसे लेकर वो काफी सजग और समर्पित थे. वो एकदम सादगीपूर्ण जीवन जीते, सादा खाना खाते. शराब और सिगरेट को हाथ तक नहीं लगाते थे. वो दुनिया के किसी भी कोने में रहें, उनके नियम-अनुशासन में कोई बदलाव नहीं आ सकता था. यही उनकी सदाबहार सेहत और फिटनेस का राज भी था.
Edited by Manisha Pandey