क्रेडिट कार्ड्स के पैसों से बना था देश का पहला यूनिकॉर्न
एमखोज नाम से शुरू हुई कंपनी को 6 महीने में ही बंद कर फाउंडर्स ने इनमोबी नाम से नई कंपनी चालू की. 2008 में शुरू हुई इनमोबी महज तीन सालों में 1 अरब डॉलर वैल्यूएशन के साथ देश की पहली यूनिकॉर्न कंपनी बन गई.
दो से चार मिनट ऑनलाइन रहने पर कंटेंट कम और ऐड ज्यादा नजर आने लगते हैं. जिन्हें झेलना अब बहुत भारी हो चुका है. जियो के अनलिमिटेड इंटरनेट स्कीम की वजह से हमें कंटेंट देखने की लत तो लग गई मगर हमने खुद को ऐड्स के टॉर्चर के लिए तैयार नहीं किया था. जैसे-तैसे हम फिर भी काम चला ही रहे थे कि फिर आया लॉकडाउन. पूरी दुनिया ठप. न कहीं आना न कहीं जाना. घर में बैठे-बैठे इंसान फोन पर समय बिताने के अलावा करता भी तो क्या. इधर फोन पर कंटेंट का कंजंप्शन बढ़ा उधर बढ़ी ऐड की बौछार.
यूट्यूब हो या हॉटस्टार, कोई वेबसाइट हो या कोई ऐप हर जगह ऐड ही ऐड. कई बार तो स्किप करने का ऑप्शन भी नहीं होता. किसी ऐड में स्किप करने का ऑप्शन हो भी तो उसे हटाने के लिए क्रॉस वाला आइकन ढूंढना ही अपने आप में बड़ी बात हो जाती है. इस भूमिका को बांधने का मकसद है आपको एक ऐसी कंपनी से रूबरु कराना जिसे आप उन इरिटेटिंग ऐड्स के लिए जिम्मेदार ठहरा सकते हैं. लेकिन कोस कर आप सिर्फ खुन्नस ही निकालें. कंपनी को कोई फरक नहीं पड़ने वाला, और पड़े भी क्यों. इन्हीं ऐड के कारोबार ने उसे देश की पहली यूनिकॉर्न कंपनी होने का टैग जो दिलाया है.
हम बात कर रहे हैं- इनमोबी की. इस कंपनी के शुरू होने की कहानी बड़ी दिलचस्प है. इनमोबी से पहले फाउंडर्स नवीन तिवारी ने तीन और फाउंडर्स के साथ मिलकर पहले एमखोज नाम की कंपनी शुरू की थी. एमखोज SMS के जरिए सर्च इंजन के रिजल्ट देने का काम करती थी. मतलब जो चीज हम अभी गूगल से मांगते हैं उसे एमखोज पहले SMS के जरिए प्रोवाइड कराता था. इसे शुरू हुए बमुश्किल 6 महीने ही हुए थे तभी फाउंडर्स को महूसस हुआ कि इस आइडिया में दम नहीं है, ये बिजनेस नहीं चल पाएगा. फिर एमखोज के गेट पर ताले लग गए. एमखोज को बंद करने के बारे में फाउंडर नवीन तिवारी एक इंटरव्यू में कहते हैं, कोई भी स्टार्टअप यह सोच कर शुरू किया जाता है कि आज से कुछ समय बाद दुनिया कहां होगी. उस हिसाब से अपना प्रॉडक्ट तैयार करते हैं. मगर हमने एमखोज को शुरू करते समय इस बारे में नहीं सोचा था. हमने शुरुआत ही वहां से की जहां कई और लोग पहले से काम कर रहे थे. इसलिए हमारा आइडिया काम नहीं कर पाया.
यहां से आया आईडिया
इधर एमखोज फेल हुआ तो फाउंडर्स ने दिमाग भिड़ाना चालू किया और यहीं से नींव पड़ी भारत के पहले यूनिकॉर्न की, इनमोबी की. इनमोबी का बिजनेस इंटरनेट एडवर्टाइजिंग के आइडिया पर बनाया गया था. मगर इनमोबी की डगर आसान नहीं थी.
कंपनी के पास फंड पूरी तरह खत्म हो चुका था। मगर फाउंडर्स को उनके आइडिया पर पूरा भरोसा था. चार महीनों तक कंपनी 25000 रुपये और 14 क्रेडिट कार्ड के भरोसे चली. सभी कार्ड पर सिर्फ मिनिमम रकम ही भरी जा रही थी. सभी क्रेडिट कार्ड की लिमिट खत्म हो चुकी थी. एक आखिरी कार्ड बचा था जिसकी मैक्सिमम लिमिट खत्म होने वाली ही थी कि कंपनी को फंडिंग मिल गई.
जीरो पैसे से लेकर पहली फंडिंग पाने तक का सफर नवीन के दिल के बेहद करीब है. नवीन कहते हैं, जब आपके पास पैसे नहीं हों आपकी टीम आए और उनके पास जो कुछ भी हो वो आपको देने के लिए तैयार हों. मेरी टीम के लोग एक साथ मेरे पास आए और अपना क्रेडिट कार्ड मुझे दे दिया. सैलरी लेने से भी इनकार कर दिया. उन्होंने कहा अब चाहे जो हो हम इसे सक्सेस बना कर ही रहेंगे. किसी स्टार्टअप फाउंडर के लिए इससे खूबसूरत मौका नहीं हो सकता है.
फंडिंग के लिए बेलने पड़े पापड़
कंपनी को फंडिंग पाने में बहुत पापड़ बेलने पड़े. किसी भी इनवेस्टर को उनके बिजनेस आइडिया पर भरोसा नहीं था. उस समय कोई ये मानने को तैयार नहीं था कि मोबाइल इंटरनेट या मोबाइल एडवर्टाइजिंग एक बड़ा बिजनेस बन सकती है. कंपनी के फाउंडर्स हर मुमकिन तरीका अपनाने लें लेकिन इनवेस्टर्स को उनका आइडिया कुछ जम ही नहीं रहा था. मगर इरादे मजबूत हों तो आसमान में सुराख वाकई किया जा सकता है. कंपनी को पहली फंडिंग मिली फिर तो उसकी गाड़ी रुकी ही नहीं. कारोबार इतना चला कि यह ऐडवर्टाइजिंग के मामले में गूगल, फेसबुक तक को मात देने लगी. 2011 में कंपनी को सॉफ्टबैंक से 200 मिलियन डॉलर का निवेश मिला और कंपनी की वैल्यूएशन 1 अरब डॉलर के पार पहुंच गई. 2008 में शुरू हुई कंपनी ने महज 3 सालों में यह मुकाम हासिल कर लिया.
साल था 2008, क्लाइनर पर्किंस कॉफील्ड एंड बायर्स (KPCB) ने कंपनी में 7.1 मिलियन डॉलर का निवेश किया. फिर 2010 में 8 मिलियन डॉलर का एक और फंड मिला. उसके बाद तो गाड़ी रुकी ही नहीं. कारोबार इतना चला कि यह ऐडवर्टाइजिंग के मामले में गूगल, फेसबुक तक को मात देने लगी. तीसरे राउंड की फंडिंग में कंपनी को 2011 में सॉफ्टबैंक से सीधे 200 मिलियन डॉलर का निवेश मिला और कंपनी की वैल्यूएशन 1 अरब डॉलर के पार पहुंच गई. 2008 में शुरू हुई कंपनी ने महज 3 सालों में यूनिकॉर्न का मुकाम हासिल कर लिया.
आपके मन में सवाल उठ रहा होगा आखिर कंपनी असल में करती क्या थी जो उसकी वैल्यूएशन 1 अरब डॉलर के पार पहुंच गई. दरअसल इनमोबी एक एग्रीगेटर की तरह या यूं कहें कि ऐड देने वाली कंपनियों और पब्लिशर्स के बीच पुल का काम करती है. मान लेते हैं आप किसी ऑनलाइन प्लैटफॉर्म पर कोई ऐड देना चाहते हैं. इसके लिए आपको उस प्लैटफॉर्म से संपर्क करना होगा, जहां आपको ऐड चाहिए. अलग-अलग प्लैटफॉर्म्स पर के लिए काफी भागदौड़ करनी पड़ेगी. इनमोबी, ने इस प्रॉब्लम को पहचाना और मार्केट में कूद पड़ी. जैसे ओला, उबर आपको कैब ड्राइवर्स से कनेक्ट करते हैं या जोमैटो आपको आपके पसंदीदा रेस्त्रां से. इसी तरह इनमोबी, ऐड देने वाली कंपनियों को उनके पसंदीदा प्लैटफॉर्म से कनेक्ट करता है. कनेक्ट करने के अलावा यह कंपनियों को यह सुझाव भी देता है कि किस ऐप या वेबसाटइ या प्लैटफॉर्म से उनके पास ज्यादा ट्रैफिक आ सकता है.
इनोवेशन के फैन हैं नवीन तिवारी
नवीन तिवारी जिस बिजनेस फंडे की दिन में 10 बार कसम खाते हैं, वो है- इनोवेशन. एक क्लाउड मार्केटिंग कंपनी से शुरू हुई इनमोबी की आज तीन और ग्रुप कंपनी हैं. इनमोबी बीटूबी या बिजनेस टू बिजनेस को सर्व करने वाली सॉफ्टवेयर कंपनी थी. मगर यूनिकॉर्न बनने के बाद नवीन कंपनी को बीटूसी या बिजनेस टू कंज्यूमर वाली कंपनी बनाना चाहते हैं. इसे ध्यान में रखते हुए उन्होने शुरुआत की ग्लांस की. यह उनका दूसरा स्टार्टअप है जो यूनिकॉर्न बनने की राह पर है. 11 लोगों की टीम ने इनोवेशन के दम पर ग्लांस को स्केलेबिलिटी के मामले में चौथा ऐप बना दिया है. इस मामले में उससे आगे सिर्फ वॉट्सऐप, फेसबुक, यूट्यूब ही हैं.