पैशन पूरा करने के लिए इस महिला उद्यमी ने छोड़ दी तगड़े पैकेज वाली नौकरी, अब बनाती हैं लोगों के सपनों का घर
भावना खन्ना ने अपने बचपन के सपने को साकार करने के लिए कड़ी मेहनत और कदम-कदम पर संघर्षों का सामना किया। लेकिन, कभी हार नहीं मानी।
अक्सर आपने सुना होगा कि सपना वही लोग पूरा कर पाते हैं जो अपने सपनों को पूरा करने के किए मेहनत करते हैं। क्योंकि सपने देखना और उन्हें पूरा करना दोनों में काफी अंतर होता है। इसके लिए कई बार इंसान को संघर्षों से होकर भी गुजरना पड़ता है। कुछ ऐसी ही कहानी है भावना भुवन की। जिन्होंने अपने बचपन के सपने को साकार करने के लिए कड़ी मेहनत और कदम-कदम पर संघर्षों का सामना किया। लेकिन, कभी हार नहीं मानी।
बचपन से था आर्किटेक्चर बनने का सपना
मूलरूप से दिल्ली की रहने वाली भावना खन्ना ने बचपन से ही अपने आसपास बड़ी-बड़ी इमारतें देखीं थीं। कई बिल्डिंग्स तो उन्होंने खुद अपनी आँखों के सामने बनते देखी थी, जो आज ऊपर से नीचे तक कांच से लैस चमचमाती हुई दिखाई देती हैं। इन ऊंची-ऊंची इमारतों को देखने के बाद उन्होंने बचपन में ही तय कर लिया था कि मुझे आर्किटेक्चर बनना है और मैं भी इसी तरह की बिल्डिंग बनाऊँगी।
वह कहती हैं, “मुझे अच्छे से याद है कि वह मेरा 13वां बर्थडे था। इस जन्मदिन पर पापा ने मुझे बिल्डिंग ब्लॉक का गेम गिफ्ट दिया था। इस ब्लॉक्स को जोड़कर कोई भी बिल्डिंग बनाई जा सकती थी। वो गेम मिलने के बाद मैं दिनभर उसी में लगी रहती और जिस वक्त वह खेल रही होती मैं सारी दुनिया भूल जाती। उस खेल को खेलते-खेलते घरौंदा बनाते-बिगाड़ते मैं बड़ी हो गई पता ही नहीं चला।”
खुद के आईडियाज पर काम करना था पसंद
भावना ने बारहवीं तक की पढ़ाई दिल्ली में रहकर ही पूरी की। इसके बाद पांच साल के कोर्स में एडमिशन ले लिया और कॉलेज की शुरुआत कर दी। कोर्स पूरा करने के बाद जॉब मिल गई। सैलरी पैकेज अच्छा था। लेकिन, एक साल काम करते-करते यह समझ आ चुका था कि शायद नौकरी नहीं होगी। क्योंकि उन्हें किसी के इंस्ट्रक्शन पर काम करना पसंद नहीं था।
एक रिपोर्ट के मुताबिक वह कहती हैं, “मेरे पास खुद के आइडियाज थे। इसलिए मैंने नौकरी छोड़ने का फैसला कर लिया। मैंने अपनी स्किल्स को और समय दिया और खुद के काम की शुरुआत कर दी। मैंने अपनी कंपनी का 'अस्त्रिद इंडिया' रखा। इस फील्ड में मेरा अनुभव एकदम नया था। कोई गॉड फादर भी नहीं था जिसकी मदद ले सकूँ। इसलिए शुरुआती दौर से ही संघर्षों से सामना होने लगा था।”
2016 में मिला पहला प्रोजेक्ट
साल 2016 में भावना की कंपनी को पहला प्रोजेक्ट मिला। हालांकि, प्रोजेक्ट बहुत बड़ा नहीं था। तीन बाई तीन की एक शेल्फ बनानी थी। लेकिन यह उनके और उनकी टीम के लिए किसी बड़े अवसर से कम नहीं था। इसलिए पूरी टीम ने साथ मिलकर दिनरात कड़ी मेहनत की और अपना सर्वश्रेष्ठ दिया।
उसी प्रोजेक्ट से दूसरा प्रोजेक्ट मिला और देखते-देखते पता ही नहीं चला कि कब इन छह सालों में उनकी कंपनी ने एक छोटे से बुक शेल्फ से लेकर बड़ी-बड़ी इमारतों तक का सफर पूरा कर लिया। आज उनकी कंपनी रिहायशी, कमर्शियल और हॉस्पिटैलिटी जैसे कई-कई बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स पर काम करती है। उनके पास अब रिजॉर्ट से लेकर 300 स्क्वॉयर यार्ड तक की बिल्डिंग डिजाइन करने का अच्छा खासा अनुभव हो चुका है।
Edited by Ranjana Tripathi