बॉयफ्रेंड और लिव-इन पार्टनर से ज्यादा पति, पिता और भाई के हाथों मरती हैं लड़कियां
यूएन विमेन की 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक विश्व में महिलाओं के साथ 70 फीसदी हिंसा की घटना में दोषी परिवार का व्यक्ति होता है.
श्रद्धा वॉलकर मर्डर केस की आग अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि ऐसी ही एक और घटना ने राजधानी को हिलाकर रख दिया. एक और लड़की की लाश घर के फ्रिज में मिली. जिस लड़के ने उसकी हत्या की, वह निक्की को मारकर, उसकी लाश फ्रिज में छिपाकर शादी के मंडप में पहुंच गया, किसी दूसरी लड़की से शादी करने. लड़की थी इंग्लिश ऑनर्स की पढ़ाई कर रही निक्की यादव, जिसे उसके बॉयफ्रेंड और लिव-इन पार्टनर साहिल गहलोत ने मार डाला.
ऐसा ही एक और वाकया दो दिन पहले मुंबई के नालासोपारा में हुआ, जहां हार्दिक शाह नाम के एक लड़के ने अपनी लिव-इन पार्टनर मेघा की गला घोटकर हत्या कर दी और उसकी बॉडी को बेड बॉक्स के अंदर छिपा दिया. गर्लफ्रेंड को मारकर वो भागकर राजस्थान जा रहा था, लेकिन बीच रास्ते मध्य प्रदेश में ही पुलिस ने उसे धर-दबोचा.
एक के बाद एक लिव इन पार्टनर्स के द्वारा हो रही लड़कियों की हत्या के मामलों ने एक नई बहस खड़ी कर दी है कि क्या महिलाओं के साथ हो रही इस हिंसा के लिए ‘मॉडर्न रिलेशनशिप’ यानि लिव-इन जिम्मेदार है.
ग्लोबल डेटा कहता है कि लड़कियों की बढ़ती आजादी और आर्थिक आत्मनिर्भरता के साथ शादी के प्रति युवाओं का रूझान कम हो रहा है और लिव-इन रिलेशनशिप का चलन बढ़ रहा है. महिलाएं अब पहले से कहीं ज्यादा एजेंसी के साथ अपने जीवन के फैसले कर रही हैं. शादी अब कोई अनिवार्यता नहीं रह गई है. अब उनके पास बिना शादी के किसी पार्टनर के साथ रहने और जीवन गुजारने का विकल्प भी मौजूद है. उनके जीवन के फैसले और चुनाव आधुनिक हैं.
इतिहास गवाह है कि महिलाओं की एजेंसी, आत्मनिर्भरता और उनके अपने चयन को लेकर समाज कभी भी बहुत सहिष्णु नहीं रहा है. महिलाओं ने अपना रास्ता बहुत विपरीत परिस्थितियों में तय किया है. ऐसे में आज यदि मेनस्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया पर यह बहस सिर उठा रही है कि परंपरा का रास्ता छोड़कर आधुनिक जीवन चुनने वाली लड़कियों के साथ ही ऐसी हिंसा की घटनाएं होती हैं, कि इसके लिए उनकी मॉडर्न लाइफ चॉइजेज जिम्मेदार हैं, तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं.
लेकिन ऐसी किसी बहस का हिस्सा बनने से पहले एक बार आंकड़ों पर नजर डालना जरूरी है ताकि हम लोगों के तर्कों को कम से कम तथ्य और आंकड़ों की रौशनी में देख सकें.
कानपुर की वह 26 साल की लड़की न गरीब थी, न अनपढ़. एक अमीर बिजनेस फैमिली से ताल्लुक रखने वाली वह लड़की शहर के सबसे नामी अंग्रेजी स्कूल में पढ़ी, दिल्ली से हायर एजूकेशन ली. घरवालों ने धूमधाम से लाखों खर्च करके बेटी की शादी की. सबकुछ परंपराओं और संस्कारों के हिसाब से. लेकिन लड़की उस शादी में एक साल भी जिंदा नहीं रह पाई. एक दिन खबर आई कि सातवीं मंजिल से गिरकर उसकी मौत हो गई है. बाद में पता चला कि और पैसे, और दहेज के लालच में उसके पति ने उसे सातवीं मंजिल से धक्का दे दिया था.
वो तो लिव इन पार्टनर नहीं था. लड़की तो घरवालों की मर्जी से, खुशी से, ढोल-नगाड़ों के साथ सिंदूर और मंगलसूत्र पहनकर उसके साथ रहने जिंदा गई थी और लाश बनकर लौटी.
ऐसी 6,589 लड़कियों के मरने की कहानियां हैं और ये कहानियां सिर्फ साल 2021 की हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो का आंकड़ा है ये, जो कह रहा है कि साल 2021 में 6,589 लड़कियों की हत्या उनके पति और ससुराल वालों ने की. 2012 में 8,233, 2011 में 8,618 और 2010 में 8,391. 2008 से लेकर 2021 तक कुल 55,229 शादीशुदा लड़कियां मर गईं और सबके मरने में एक ही चीज कॉमन थी. उन्हें उनके पति और पति के परिवार वालों ने मारा था.
भारत से निकलकर थोड़ा दुनिया का रुख करते हैं. 2013 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने महिलाओं के साथ दुनिया भर में होने वाली हिंसा के आंकड़ों को एक जगह इकट्ठा किया. आंकड़े कह रहे थे कि पूरी दुनिया में हर तीसरी महिला अपने जीवन में कभी न कभी इंटीमेट पार्टनर वॉयलेंस का शिकार होती है. हर तीसरी महिला. इसे यूं समझें कि अगर आपके दफ्तर में 30 महिलाएं हैं तो उनमें से 10 के साथ हिंसा हुई है और हिंसा करने वाली कोई बाहरी नहीं, बल्कि उनका नजदीकी व्यक्ति है.
2013 से लेकर 2022 तक हर साल विश्व स्वास्थ्य संगठन इंटीमेंट पार्टनर वॉयलेंस पर अपनी रिपोर्ट जारी करता रहा, लेकिन 9 सालों में ये आंकड़ा कम नहीं हुआ. लेटेस्ट 2022 की रिपोर्ट भी यही कह रही है कि हर तीसरी महिला के साथ कोई उसका अपना हिंसा कर रहा है.
यूएन विमेन की साल 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया में महिलाओं के साथ होने वाली 70 फीसदी हिंसा की घटनाओं में दोषी कोई नजदीकी और परिवार का व्यक्ति होता है.
वापस अपने देश की ओर लौटते हैं. ऊपर का आंकड़ा तो पति और पति के परिवार वालों के बारे में था. अब लड़की के अपने सगे परिवार वालों की भी थोड़ी बात हो जाए. लड़की के मम्मी-पापा, भाई, चाचा, ताया और एकदम क्लोज फैमिली के लोग.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक वर्ष 2016 में भारत में 77 लड़कियों को उनके पिता, भाई, चाचा, ताया ने जहर देकर, फांसी पर चढ़ाकर, कुल्हाड़ी, चाकू, गड़ासे और घर में मौजूद धारदार हथियार से मार डाला. 2015 में 251 लड़कियों को उनके परिवार वालों ने जान से मार डाला. इनमें से 90 फीसदी मामले पंजाब और हरियाणा के हैं, जहां ये हत्याएं फैमिली ऑनर के नाम पर हुई थीं. कहीं लड़की ने जात बाहर शादी की थी या जात बाहर प्रेम कर बैठी थी. इन दोनों अपराधों की सजा उसे अपनी जान देकर चुकानी पड़ी.
इस स्टोरी में सिर्फ 2016 तक के आंकड़े हैं क्योंकि एनसीआरबी ने 2016 के बाद ऑनर किलिंग का कोई आंकड़ा जारी नहीं किया है.
दो साल पहले जब पूरे देश में लॉकडाउन लगा था और सारे लोग घरों के अंदर बंद हो गए थे, देश में घरेलू हिंसा हेल्पलाइन नंबर पर मदद की गुहार लगाने वाली महिलाओं की संख्या में 58 फीसदी की इजाफा हुआ था. अकेले देश की राजधानी में फोन कॉल्स की संख्या 43 फीसदी बढ़ गई.
यूएन वुमेन का डेटा है कि लॉकडाउन में पूरी दुनिया में हेल्पलाइन नंबर पर आने वाले फोन कॉल्स की संख्या में 25 फीसदी का इजाफा हुआ. तुर्की 12 मार्च को लॉकडाउन लगा और 31 मार्च तक 12 महिलाओं की हत्या के केस हुए, जिन्हें उनके पतियों ने मार डाला था.
यूके में लॉकडाउन में हेल्पलाइन पर आने वाले फोन कॉल्स की संख्या 25 फीसदी बढ़ गई. डोमेस्टिक वॉयलेंस पर काम करने वाली यूके की संस्था रिफ्यूज का डेटा है कि एक दिन तो ऐसे फोन कॉल्स की संख्या में 700 फीसदी का इजाफा हो गया था. स्पेन में 47 फीसदी, फ्रांस में 32 फीसदी महिलाओं ने हेल्पलाइन पर फोन कर मदद मांगी क्योंकि उनके पति और पार्टनर उन्हें पीट रहे थे.
महिलाओं के खिलाफ इंटीमेट पार्टनर वॉयलेंस के आंकड़े तो इतने हैं कि सैकड़ों पन्ने सिर्फ आंकड़ों से रंगे जा सकते हैं. अंत में सवाल यही उठता है है कि लिव इन पार्टनर के हाथों मार दी गई तीन लड़कियों की कहानी से समाज अगर इस नतीजे पर पहुंचता है कि इसके लिए लड़कियों की आजादी, आत्मनिर्भरता और उनकी चॉइज जिम्मेदार है कि तो यह कहना भी बेमानी है कि एक बार अपने गिरेबान में झांककर देख लो.
बॉयफ्रेंड और लिव-इन तो बहुत बाद में आए. इससे पहले सैकड़ों सालों से लड़कियां और औरतें अपने ही पिता, पति, भाई और परिवार वालों के हाथों मौत के घाट उतारी जाती रही हैं. आज भी बड़ी संख्या उन्हीं की है, जिनके साथ परिवार और समाज के चुने रिश्तों के भीतर हिंसा हो रही है. उस हिंसा के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है?