सिर्फ़ किंगमेकर नहीं थे भारत रत्न के. कामराज, शुरू किया था पहला मिड डे मील कार्यक्रम
तमिलनाडु के पूर्व मुख्य मंत्री और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे भारत रत्न के. कामराज को अक्सर किंगमेकर के तौर पर याद किया जाता है. उन्हें ‘कामराज प्लान’ के लिए भी किया जाता है लेकिन उनकी सबसे बड़ी विरासत है सादगी, ईमानदारी, आज़ादी की लड़ाई में उनका योगदान और बेहतरीन प्रशासन.
आज भारत रत्न के कामराज का जन्मदिन है. प्रधानमंत्री समेत कई राजनेताओं और दलों ने उनके योगदान को याद किया है. उन्हें याद करते हुए अक्सर किंगमेकर कहा जाता है और नेहरू के बाद के दिनों में उनकी भूमिका पर बात होती है. उन्हें उनके उत्कृष्ट प्रशासन, सादगी के साथ कामराज प्लान के लिए भी याद किया जाता है जिसने भारतीय राजनीति में एक बड़ी हलचल पैदा कर दी थी.
क्या था कामराज प्लान?
बात है 1963 की. गांधीवादी कामराज मद्रास [अब तमिलनाडु] के मुख्यमंत्री थे. कामराज ने कहा कि कांग्रेस पार्टी को और मजबूत करने के लिए नेताओं को सत्ता का लोभ छोड़कर वापस संगठन में लौटना चाहिए. कामराज ने इसकी शुरुआत खुद 02 अक्टूबर 1963 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे कर कर दी. उनके साथ बीजू पटनायक और एस. के. पाटिल सहित 6 मुख्यमंत्रियों और मोरारजी देसाई, जगजीवन राम और लाल बहादुर शास्त्री सहित 6 मंत्रियों ने अपने पद छोड़ दिए थे. इस योजना को भारतीय राजनीति में ‘कामराज प्लान’ के नाम से जाना जाता है. तत्कालीन पीएम नेहरू ने प्रभावित हो कर उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया.
मुख्यमंत्री के रूप में उन्हें उनके उत्कृष्ट प्रशासन, सादगी और ईमानदारी के लिए याद किया जाता है जिसकी जड़ें शायद उनके जीवन के उस दौर में है जब वे आज़ादी की लड़ाई में कूद गए थे.
पंद्रह साल का स्वतंत्रता सेनानी
कामराज का जन्म 15 जुलाई 1903 को तमिलनाडु के विरुधुनगर, मदुरै में हुआ था. जलियाँवाला बाग हत्याकांड के समय वे 15 साल के थे और उसका उन पर ऐसा गहरा प्रभाव हुआ कि वह उसी उम्र में स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए. और महज 16 साल की उम्र में कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए. 18 साल की उम्र में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से जुड़ गये. 1930 तक आते-आते किशोर कामराज अपनी राजनीति को लेकर इतना परिपक्व हो गये कि अंग्रेजों द्वारा 6 बार जेल भेजा जाना भी उनके हौसले को नहीं तोड़ पाया. वे 3,000 दिन जेल में बंद रहे. जेल में रहकर ही अपनी पढाई पूरी की और जेल में रहते ही म्युनिसिपल कॉरपोरेशन के चेयरमैन चुने गये. 9 महीने तक कार्यभार सँभालने के बाद अपने पद से यह कहकर इस्तीफ़ा दे दिया कि जिस पद के साथ आप न्याय नहीं कर सकते उस पद पर बने रहने का आपका कोई हक नहीं होता.
यह थी कामराज की बुनियाद.
किंगमेकर कामराज
पद की गरिमा को समझने वाला यह इंसान आगे चलकर आज़ाद भारत का पहला ‘किंगमेकर’ माना गया जिसने पद की मर्यादा का सम्मान करना देश को सिखाया. खुद दो बार प्रधानमंत्री बनने के मौके छोड़ कर उन्होंने उसे प्रधानमंत्री बनाया जो उन्हें लगा कि उस पद के लायक थे.
बात है साल 1964 की. जवाहरलाल नेहरू की असामयिक मृत्यु के बाद कांग्रेस नेतृत्व अगला प्रधानमंत्री ढूँढने के संकट से जूझ रही थी. सभी लोग कामराज की ओर देख रहे थे. मोरारजी देसाई और लाल बहादुर शास्त्री पद के प्रबल दावेदारों में थे. शास्त्री को नेहरू का शिष्य माना जाता था. और कामराज के नेतृत्व में सिंडीकेट ने शास्त्री का समर्थन किया जिससे शास्त्री प्रधानमंत्री बन गए.
लाल बहादु शास्त्रीर की भी असामयिक मृत्यु के बाद लोग यह मान के चल रहे थे कि इस बार देश के प्रधानमंत्री कामराज ही बनेंगे. उस वक़्त कामराज आसानी से प्रधानमंत्री बन सकते थे. लेकिन, उन्होंने इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनवा दिया.
सीएम कामराज
तीन बार मद्रास (अब तमिलनाडु) के मुख्यमंत्री रहते हुए कामराज ने कुछ बहुत अच्छे काम किये जिसकी वजह से प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उनकी तारीफ करते हुए कहा था कि मद्रास भारत में सबसे अच्छा प्रशासित राज्य है.
13 अप्रैल 1954 को कामराज पहली बार मुख्यमंत्री बने. मुख्यमंत्री होने के बावजूद कामराज बड़ी सादगी से रहते थे. जनता के बीच रहना पसंद करते थे और जनता के हित की सोचते थे. बताया जाता है कि जब कामराज का निधन हुआ तो उनके पास केवल 130 रुपये, 2 जोड़ी चप्पल, चार शर्ट और कुछ किताबे ही थीं.
कामराज के उल्लेखनीय कार्यों में उनका हर गांव में प्राइमरी स्कूल और हर पंचायत में हाईस्कूल खोलने की मुहिम चलाना था जिसमे उन्होंने 11वीं तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा की योजना चलाई गई.
उन्होंने स्वतंत्र भारत में पहली बार मिडडे मील योजना चलाई. उनका कहना था कि राज्य के लाखों गरीब बच्चे कम से कम एक वक्त तो भरपेट भोजन कर सकें. उन्होंने मद्रास के स्कूलों में मुफ्त यूनिफॉर्म योजना की शुरुआत की.
इसी तरह मद्रास में तय समय के भीतर सिंचाई परियोजनाओं को पूरा करने और हर गांव में आजादी के महज 15 साल बाद बिजली पहुंचाने का श्रेय भी उन्हें जाता है.
गांधीवादी कामराज की मृत्यु 2 अक्टूबर, 1975 को गांधी जयंती के दिन ही हार्टअटैक हुई. मरणोपरांत उन्हें 1976 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया.