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मिलें केरल की पहली ट्रांसजेंडर डॉक्टर वी. एस. प्रिया से, जिन्हें मिला माता-पिता का सपोर्ट

केरल के थरिस्सुर जिले के कोल्लम की रहने वाली प्रिया का जन्म जिनु ससिधरन नाम के लड़के के रूप में हुआ था।

मिलें केरल की पहली ट्रांसजेंडर डॉक्टर वी. एस. प्रिया से, जिन्हें मिला माता-पिता का सपोर्ट

Tuesday March 30, 2021 , 2 min Read

यूं तो हमारे समाज में आज भी ट्रांसजेंडर कम्यूनिटी को लोग हीन भाव से देखते हैं, कई बार तो उन्हें अपने घर से भी पर्याप्त सहयोग नहीं मिलता। लेकिन कुछ कहानियां इसके विपरित मिलती है, जहां परिवार के सहयोग से ये लोग एक अच्छी जिंदगी जी पाते हैं। केरल की वी. एस. प्रिया की कहानी भी कुछ ऐसी ही है, जो केरल की पहली ट्रांसजेंडर डॉक्टर (आयुर्वेदिक) बनी है।


केरल के थरिस्सुर जिले के कोल्लम की रहने वाली प्रिया का जन्म जिनु ससिधरन नाम के लड़के के रूप में हुआ। लेकिन प्रिया ने बचपन में अपने अंदर लड़की की पहचान की। पर शर्मिंदगी और लोगों के डर से वह इस बारे में कभी किसी से बात नहीं कर पाई। 

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फोटो साभार: onmanorama

अपने इस संघर्ष के बारे में प्रिया ने plexusmd से बात करते हुए कहा, “मैंने महसूस किया कि मेरे लिए एक लड़के के रूप में रहना मुश्किल होगा। इसलिए इस बात पर शोध करना शुरू कर दिया कि संकट को कैसे संभालना है। सबसे पहले मैंने एक बेहतर शिक्षा प्राप्त करने की योजना बनाई।”


उनके माता-पिता चाहते थे कि वे एक लड़के की तरह रहे। लेकिन जीनू की भावनाएं एक लड़की के समान थी। ऐसे ही तमाम हालातों के बीच जीनू ने 2008 में वैद्य रत्नम आयुर्वेद कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। 2012 में कर्नाटक के केवीजी आयुर्वेद मेडिकल कॉलेज, दक्षिणा कन्नड़ से पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री ली। फिर त्रिशूर के सीताराम आयुर्वेद हॉस्पिटल से उसने अपने मेडिकल करिअर की शुरुआत की।


दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के अनुसार, डॉक्टर बनने के बाद वो दिन भी आया तब जीनू ने अपनी मां से सेक्स रिअरैंजमेंट सर्जरी कराने की मांग की। उसकी मां इस सर्जरी के लिए राजी हो गई। जल्दी ही परिवार के अन्य लोगों की सहमति से जीनू ने 2018 में कोची के रेनाई मेडिसिटी से हॉर्मोन ट्रीटमेंट लिया। उसके बाद पिछले साल उसने सेक्स रिअरैंजमेंट सर्जरी कराई। इस तरह जीनू लड़की बनीं और उसने अपना नाम प्रिया रख लिया।


प्रिया को इस बात की खुशी है कि सर्जरी के बाद उन्होंने अपनी पहचान पा ली है। वे अन्य पैरेंट्स से कहना चाहती हैं कि अपने बच्चे को उसी रूप में स्वीकार करें, जैसा वो है। समाज के लोगों की परवाह करके उसकी सच्चाई को सबसे छिपाकर न रखें।