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पति, पत्‍नी, बेटी और दामाद- इस परिवार के लोगों को पांच बार मिल चुका है नोबेल पुरस्‍कार

इस परिवार के नाम दर्ज है ऐसा वर्ल्‍ड रिकॉर्ड, जिसे अब तक कोई और नहीं तोड़ पाया.

पति, पत्‍नी, बेटी और दामाद- इस परिवार के लोगों को पांच बार मिल चुका है नोबेल पुरस्‍कार

Thursday October 06, 2022 , 5 min Read

इन दिनों रोज नोबेल पुरस्‍कारों की घोषण हो रही है. अब तक मेडिसिन, फिजिक्‍स, केमेस्‍ट्री और लिटरेचर के पुरस्‍कारों की घोषणा की जा चुकी है. इस साल मेडिसिन के लिए नोबेल प्राइस स्वांते पाबो को दिया गया है. फिजिक्स के लिए तीन वैज्ञानिकों एलेन एसपेक्ट, जॉन फ्रांसिस क्लॉसर और एंटोन जेलिंगर को संयुक्‍त रूप से यह पुरस्‍कार मिला है. केमिस्‍ट्री में कैरोलिन आर बर्टोज्जी, मोर्टन मेल्डल और के. बैरी शार्पलेस को दिया गया है.

नोबेल के मौसम आइए इस पुरस्‍कार से जुड़ी एक रोचक बात बताते हैं. एक ऐसे परिवार के बारे में, जिसे अब तक सबसे ज्‍यादा नोबेल पुरस्‍कारों से सम्‍मानित किया गया है. पति, पत्‍नी, बेटी, दामाद, सभी को नोबेल प्राइस मिल चुका है. हम बात कर रहे हैं सदी की महान वैज्ञानिक मैरी क्‍यूरी और उनके परिवार की.  

मैरी क्‍यूरी फिजिक्‍स और केमेस्‍ट्री दोनों ही विषयों में नोबेल पुरस्‍कार पाने वाली महिला महिला थीं. इतना ही नहीं, वह पीएचडी की डिग्री पाने वाली फ्रांस की पहली महिला थीं. सॉरबोन में पढ़ाने वाली पहली महिला प्रोफेसर थीं. वह पहली महिला थीं, जिन्‍हें दो बार नोबेल पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया और उनके बाद इस रिकॉर्ड को कोई और नहीं तोड़ पाया.

1903 में मैरी क्‍यूरी और उनके पति पियरे क्‍यूरी को संयुक्‍त रूप से रेडियोएक्टिविटी की खोज करने के लिए फिजिक्‍स का नोबेल पुरस्‍कार दिया गया. जिस साल ये पुरस्‍कार मिला, उनकी बड़ी बेटी आइरीन सिर्फ 6 साल की थी. 8 साल बाद 1911 में एक बार फिर मैरी क्‍यूरी को नोबेल पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया और इस बार यह पुरस्‍कार मिला था केमेस्‍ट्री में, रेडियम और पोलोनियम की खोज के लिए.

25 साल बाद एक बार फिर मैरी क्‍यूरी की बेटी आइरीन और उनके पति फ्रेडरिक जोलिओट को संयुक्‍त रूप से केमेस्‍ट्री के लिए नोबेल पुरस्‍कार दिया गया. 1965 में उनकी छोटी बेटी ईव क्‍यूरी के पति हेनरी लेबॉइस को नोबेल पीस प्राइस से सम्‍मानित किया गया है.

क्‍यूरी परिवार दुनिया का इकलौता ऐसा परिवार है, जिसके पांच सदस्‍यों को पांच बार नोबेल पुरस्‍कार मिला. यह एक वर्ल्‍ड रिकॉर्ड है, जिसे तोड़ने के लिए दूर-दूर तक कोई और दावेदार नहीं है. हालांकि 1901 में जब पहली बार नोबेल पुरस्‍कारों की घोषणा हुई थी, तब से लेकर अब तक छह लोग ऐसे हुए हैं, जिन्‍होंने अपने माता-पिता के नक्‍शेकदम पर चलते हुए यह पुरस्‍कार प्राप्‍त किया.

आज से 109 साल पहले जब मैरी क्‍यूरी को नोबेल पुरस्‍कार दिया गया तब वह पुरस्‍कार काफी विवादों में रहा था. यह पुरस्‍कार तीन वैज्ञानिकों को दिया गया था. मैरी क्‍यूरी और पियरे क्‍यूरी को रेडियोएक्टिविटी की खोज के लिए और हेनरी बैक्‍वेरल को यूरेनियम में रेडिएशन की खोज के लिए.

पियरे क्‍यूरी और हेनरी बैक्‍वेरल को पुरस्‍कार दिया जाना तो ठीक था, लेकिन इन दोनों के साथ मैरी का नाम लोगों को पच नहीं रहा था. हम कल्‍पना कर सकते हैं कि एक सदी पहले दुनिया कितनी पितृसत्‍तात्‍मक रही होगी. नोबेल चयन समिति से लेकर आसपास के बुद्धिजीवियों, चिंतकों और वैज्ञानिकों तक को लगता था कि एक महिला इतनी काबिल वैज्ञानिक नहीं हो सकती कि उसे नोबेल जैसे पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया जाए. लेकिन उनका काम इतना महत्‍वपूर्ण था‍ कि उसे दरकिनार करना भी मुमकिन नहीं था.

हुआ यूं था कि मैरी क्‍यूरी और उनके पति पिअरे क्‍यूरी दोनों ही वैज्ञानिक थे और साथ-साथ रेडिएशन और रेडियोएक्टिव किरणों पर काम कर रहे थे. लेकिन फ्रेंच एकेडमी ऑफ साइंस के सदस्‍यों ने सिर्फ पिअरे क्‍यूरी का नाम ही नोबेल पुरस्‍कार समिति के पास भेजा. जब पिअरे क्‍यूरी को इस बारे में पता चला तो उन्‍होंने सीधे नोबेल समिति से संपर्क किया और कहा कि मैरी का नाम भी उनके नाम के साथ शामिल किया जाना चाहिए. हम साथ में काम कर रहे हैं और मैरी के बगैर यह खोज मुमकिन ही नहीं थी. कहना नहीं होगा कि पिअरे क्‍यूरी कई महीने तक नोबेल समिति को इस बारे में लिखते रहे और जोर दिया कि या तो दोनों का नाम नामित किया जाए या फिर किसी का भी नहीं.

फिलहाल नोबेल समिति ने अपने निर्णय में बदलाव करते हुए दोनों का नाम पुरस्‍कार के लिए कर दिया, लेकिन अवॉर्ड वाले दिन स्‍वीडिश एकेडमी ने अपने भाषण में मैरी क्‍यूरी के योगदान का ढंग से जिक्र नहीं किया. स्‍वीडिश एकेडमी के अध्‍यक्ष ने अपने भाषण में कहा, “एक पुरुष का अकेले होना अच्‍छा नहीं, इसलिए मैं उनके साथ उनकी सहयोगी मैरी क्‍यूरी को भी आमंत्रित करता हूं.”

 

8 साल बाद मैरी क्‍यूरी को दोबारा नोबेल पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया. इस बार उनको यह पुरस्‍कार के‍मेस्‍ट्री में रेडियम और पोलोनियम की खोज करने के लिए दिया गया. इस बार भी बहुत सारे लोगों का कहना था कि यह पुराना काम ही है, जो मैरी ने पिअरे के साथ मिलकर किया था. इसके लिए वो अलग से पुरस्‍कार की हकदार नहीं हैं. मैरी क्‍यूरी एंड द साइंस ऑफ रेडियोएक्टिविटी किताब में नओमी पाश्‍चॉफ विस्‍तार से उस मिसोजिनी की चर्चा करती हैं, जो अपने जीवन काल में मैरी क्‍यूरी को झेलनी पड़ी थी.


Edited by Manisha Pandey