इस बाप-बेटे की जोड़ी ने कैसे सूत कातने की एक छोटी सी यूनिट से खड़ा किया 2,552 करोड़ का बिजेनस
अनिल कुमार जैन ने 1988 में जब इंडो काउंट की शुरुआत की थी, तब उन्होंने सोचा भी नहीं था कि एक दिन कॉटन यार्न की यह यूनिट घरेलू टेक्सटाइल बाजार की अग्रणी भारतीय कंपनियों में गिनी जाएगी। अनिल और उनके बेटे मोहित ने कैसे अपने मेक इन इंडिया टेक्सटाइल्स बिजनेस को इतनी ऊंचाइयों तक पहुंचाया, आइए जानते हैं...
अनिल कुमार जैन ने जब 1988 में Indo Count शुरू किया, तब यह महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित कॉटन स्पिनिंग (कपास की कताई) की एक छोटी यूनिट थी, जो निर्यात (Export) पर फोकस करती थी। 90 के दशक के दौरान, उनकी इस छोटी कंपनी ने अपने सूती वस्त्रों को यूरोप और अमेरिका के साथ-साथ दूसरे बहुत से देशों में निर्यात किया।
आंत्रप्रेन्योर अनिल ने ब्रिटेन में रहने वाले परिवार के कुछ सदस्यों से जब भारत में उत्पादित सूती वस्त्रों की खराब गुणवत्ता के बारे में सुना, तब उन्होंने Indo Count शुरू करने का फैसला लिया था।
हालांकि उन्हें तब पता नहीं था कि इस समस्या को दूर करने के मिशन से शुरू किए गया उनका व्यवसाय आगे चलकर घरेलू टेक्सटाइल बाजार में भारत के अग्रणी खिलाड़ियों में से एक बन जाएगा।
उनके बेटे और मुंबई मुख्यालय वाली Indo Count में प्रमोटर और कार्यकारी उपाध्यक्ष मोहित जैन कहते हैं:
“मेरे पिता ने कोल्हापुर में कुछ जमीन खरीदी क्योंकि यह मुंबई से सिर्फ 400 किलोमीटर दूर था, और मौसम कपास के लिए अनुकूल था। उन्होंने महाराष्ट्र औद्योगिक विकास निगम (MIDC) परियोजना के तहत यहां यूनिट शुरू की, जो पानी, बिजली और अन्य बुनियादी ढांचा प्रदान करती है।"
2005 में Indo Count ने बेडस्प्रेड, कंबल, गद्दे, गद्दे के कवर, तकिए, दुपट्टे आदि के होम टेक्सटाइल व्यवसाय में भी प्रवेश किया। 2011 और 2017 के बीच, इसने यूएस, यूके और दुबई में अपनी उपस्थिति दर्ज की।
आज अपने स्थापना के 30 वर्षों में, Indo Count 2,552.49 करोड़ रुपये की शुद्ध बिक्री और इससे टैक्स देने के बाद 260.26 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाकर (वित्त वर्ष 2021 के आंकड़े) एक लाभदायक फर्म के रूप में विकसित हो गई है।
कंपनी दावा करता है कि वह 54 से अधिक देशों में होम टेक्सटाइल रिटेल विक्रेताओं को निर्यात करती है और इसने Boutique Living, Heirlooms of India, Atlas, Revival, The Pure Collection, और Haven जैसे इन इन-हाउस B2C ब्रांड भी विकसित किए हैं।
इम्पोर्ट कोटा से पाबंदी हटना
मोहित कहते हैं 2005 में इम्पोर्ट कोटा का खत्म होना प्रमुख कारण रहा, जिसके चलते Indo Count ने होम टेक्सटाइल्स के सेक्टर में प्रवेश किया। इसके बाद से कंपनी लगातार ऊंचाइया छू रही हैं।
आयात कोटा एक तरह के व्यापार प्रतिबंध हैं, जो यह तय करते हैं कि माल की अधिकतम कितनी मात्रा (यहां माल वस्त्र है) किसी देश द्वारा आयात किया जा सकता है।
विश्व व्यापार संगठन के सदस्य देशों ने 2005 में कपड़ा और कपड़ों से जुड़े सभी व्यापार में कोटा के उपयोग को समाप्त करने का फैसला किया। इसके बाद Indo Count ने सूत की बुनाई, रंगाई, काटने आदि कार्यों का एकीकरण शुरू किया ताकि यह तैयार माल का उत्पादन कर सके।
उस समय उनके पास बिजनेस के एकीकरण का अनुभव नहीं था। मोहित दावा करते हैं कि इसके बावजूद फर्म ने विश्वास के आधार पर छलांग लगाई और उत्पाद के विकास में निवेश किया।
वे बताते हैं, “जब कोटा हटा दिया गया, तो हमने अवसर का लाभ उठाया और अपनी मूल कताई मिल से लगभग 10 किलोमीटर दूर घरेलू वस्त्र उत्पादन के लिए कुछ जमीन का अधिग्रहण किया। यह खंड अब हमारे व्यवसाय का मुख्य भाग है। हम अब सूती धागे की उतनी बिक्री नहीं करते, जितनी पहले करते थे।”
उनका दावा है कि Indo Count अब बेड लिनन के मामले में भारत का सबसे बड़ा निर्यातक है। उन्होंने आगे कहा, "हमारे रेवेन्यू का 98 प्रतिशत विदेशों से आता है, और हमारे ग्राहक वे हैं जो खुदरा स्टोर के मालिक हैं और अपने ब्रांड में बेड लिनन बेचना चाहते हैं। Walmart, Target, और यहां तक कि Amazon भी हमसे खरीदारी करते हैं।”
कोरोना महामारी का असर
कोरोना महामारी और उसके बाद लागू हुए कठोर लॉकडाउन के चलते मार्च से मई 2020 तक प्लांट बंद रहे। हालांकि इसके बावजूद Indo Count ने अपना अब तब का सबसे अच्छे आमदनी और लाभ के आंकड़े दर्ज किए है।
पिछले वर्ष (वित्त वर्ष 2020) Indo Count ने 1,965.07 करोड़ रुपये की शुद्ध बिक्री की, जिससे टैक्स चुकाने बाद उसे 73.76 करोड़ रुपये का लाभ हुआ था।
लोगों ने महामारी के दौरान घर से काम करने में अधिक समय बिताया। ऐसे में Indo Count ने न केवल घरेलू वस्त्रों की मांग को देखा, बल्कि यह अभूतपूर्व स्तर तक पहुंच गया।
मोहित कहते हैं, “देश भर में, लोगों को घरेलू उत्पादों में निवेश के महत्व का एहसास हुआ। हमने महसूस किया कि यह उपभोक्ता के व्यवहार में आया यह बदलाव लंबा रहेगा। हमारी स्थापित क्षमता, जिसे हमने कोरोना से पहले बढ़ाने पर काम किया था, फलदायी साबित हुई और हमें एक सतत विकास हासिल करने में मदद मिली।”
दूसरी पीढ़ी के उद्यमी को भी लगता है कि Indo Count अपने प्रतिस्पर्धियों की तुलना में तेजी से बढ़ा है और देश में होम टेक्सटाइल उत्पादों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अच्छी स्थिति में है।
वह कहते हैं, “भारत दुनिया में कपास का सबसे बड़ा उत्पादक है। इसके अलावा, दुनिया को कोरोना महामारी में एहसास हुआ कि निर्यात के लिए चीन जैसे किसी एक देश पर ही पूरी तरह निर्भर नहीं रहा जा सकता है। उन्होंने दूसरे देशों की तरफ देखना शुरू किया है। इस प्रकार वैश्विक घरेलू वस्त्र बाजार में भारत का हिस्सा आने वाले वर्षों में अच्छा प्रदर्शन करेगा।”
Indo Count इसके साथ सरकार के आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य पर भी जोर देती है, जिससे वैश्विक बाजार में भी दबदबा स्थापित किया जा सके। कंपनी सब्सिट्यूशन और और क्षमता निर्माण के साथ-साथ एक कुशल, पारंपरिक कपड़ा श्रम बल तक पहुंच और दूसरों कारकों को अपने भविष्य की योजना के लिए अहम कारक मानती है।
प्रतिस्पर्धा और भविष्य की योजनाएं
मोहित इस दौड़ में Indo Count के किसी प्रतिस्पर्धी कंपनी का नाम नहीं लेते हैं, लेकिन इंडस्ट्री की रिपोर्ट में Welspun Group, Raymond Group, Bombay Dyeing, और Alok Industries को इस क्षेत्र में अन्य मार्केट लीडर के रूप में दर्शाया गया है।
Mordor Intelligence रिपोर्ट के अनुसार, Indo Count जैसे ये भारतीय बेड लिनन निर्यातक, प्रमुख रूप से अमेरिका और यूरोप जैसे अंतरराष्ट्रीय बाजारों में आपूर्ति करते हैं। साथ ही अब भारतीय बाजार में भी इनकी मांग में कुछ वृद्धि आ रही है।
अधिकांश कंपनियां कॉटन पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जो अपनी टिकाऊपन, आराम और हवा के आर-पार गुजरने की क्षमता के कारण चादरों को बनाने में इस्तेमाल होना वाला एक एक प्रमुख फैब्रिक है।
मोहित बताते हैं, “प्रतिस्पर्धा सीधा है और यह निर्भर करता है कि ग्राहकों के लिए कौन अधिक मूल्य जोड़ सकता है और बेहतर काम कर सकता है। आने वाले समय में हम अपनी उत्पादन क्षमता को 90 मिलियन मीटर बेड लिनन प्रति दिन से बढ़ाकर 108 मिलियन मीटर कर रहे हैं और अपनी कताई सुविधा का आधुनिकीकरण कर रहे हैं। हम दूसरों को हराने की दौड़ में नहीं हैं, लेकिन हम यहां रहने और अपने लंबी अवधि के ग्रोथ लक्ष्यों की देखभाल करने के लिए हैं।”
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Edited by रविकांत पारीक