केवल गौतम अडानी ही नहीं, कर्ज के बोझ तले दबे एक और अरबपति कारोबारी संकट में
गौतम अडानी की व्यक्तिगत पूंजी का मूल्यांकन 120 अरब डॉलर से घटकर 40 अरब डॉलर से भी कम रह गया है. इस तरह उनके व्यक्तिगत मूल्यांकन में 80 अरब डॉलर यानी दो-तिहाई की गिरावट आ चुकी है. एक तरफ जहां अडानी का साम्राज्य भरभरा रहा है तो वहीं देश के एक और कारोबारी के साम्राज्य में भी हलचल मची हुई है.
देश के सबसे अमीर कारोबारियों के लिए यह समय अच्छा नहीं है. सिर्फ एक महीने पहले गौतम अडानी (Gautam Adani) की गिनती दुनिया के तीसरे सबसे अमीर शख्स के रूप में होती थी लेकिन अमेरिकी फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च की नकारात्मक रिपोर्ट आने के बाद उनकी अगुवाई वाले समूह के शेयरों में इस कदर बिकवाली हुई कि अब वह सबसे अमीर लोगों की सूची में 30वें स्थान पर आ गए हैं.
गौतम अडानी की व्यक्तिगत पूंजी का मूल्यांकन 120 अरब डॉलर से घटकर 40 अरब डॉलर से भी कम रह गया है. इस तरह उनके व्यक्तिगत मूल्यांकन में 80 अरब डॉलर यानी दो-तिहाई की गिरावट आ चुकी है. एक तरफ जहां अडानी का साम्राज्य भरभरा रहा है तो वहीं देश के एक और कारोबारी के साम्राज्य में भी हलचल मची हुई है.
कभी लंदन में लिस्टेड रही अनिल अग्रवाल (Anil Agrawal) की वेदांता रिसोर्सेज लिमिटेड
भारी कर्ज के बोझ तले दब चुकी है. इसमें जनवरी में चुकाया जाने वाला 1 अरब डॉलर का बॉन्ड भी शामिल है. अग्रवाल अपने कर्ज को कम करने के लिए जो प्रयास कर रहे हैं, उसने भारत सरकार को भी परेशान कर दिया है जिसे नाराज करना वह अफोर्ड नहीं कर सकते हैं.पिछले साल लगभग इसी समय कर्ज के बोझ तले दबी वेदांता रिसोर्सेस अपनी मुनाफे वाली कंपनी और मुंबई में लिस्टेड इकाई, वेदांता लिमिटेड के साथ विलय की तैयारी कर रहे थे. हालांकि, वेदांता रिसोर्सेज पिछले साल मार्च में अपने शुद्ध कर्ज के बोझ को लगभग 10 अरब डॉलर से घटाकर 8 अरब डॉलर से कुछ कम करने में कामयाब रही.
वेदांता लिमिटेड की प्रमुख कंपनी वेदांता रिसोर्सेज की वेबसाइट के मुताबिक, उसपर मार्च, 2022 के अंत में 9.66 अरब डॉलर का भारी कर्ज था. हालांकि, कंपनी ने चालू वित्त वर्ष में अबतक बकाया कर्जों के पुनर्भुगतान और उधारियों के जरिये इस कर्ज बोझ को घटाकर 7.7 अरब डॉलर पर लाने में सफलता हासिल की है. इसमें से तीन अरब डॉलर का भुगतान उसे अप्रैल, 2023 में करना है.
एसएंडपी (S&P) ग्लोबल इंक के अनुसार, सूचीबद्ध इकाई ने पिछले महीने लाभांश घोषित करने के साथ, इसके मूल और बहुसंख्यक शेयरधारक सितंबर 2023 तक अपने दायित्वों को पूरा करने की अत्यधिक संभावना है. हालांकि, अग्रवाल की कोशिशों को झटका तब लगा जब उन्होंने इस साल सितंबर और जनवरी 2024 के बीच 1.5 अरब डॉलर के कर्ज और बॉन्ड रिपेमेंट जुटाने की कोशिश लेकिन वह कोशिश सफल नहीं सकी.
एसएंडपी ने इस महीने कहा कि अग्रवाल के लिए पैसे जुटाने के लिए अगले कुछ सप्ताह महत्वपूर्ण होंगे. यदि इसमें वह विफल रहते हैं, तो जारीकर्ता की बी-क्रेडिट रेटिंग, जो पहले से ही जंक-बॉन्ड श्रेणी में है, दबाव में आ सकती है.
अडानी का 24 अरब डॉलर का शुद्ध कर्ज अग्रवाल के मुकाबले तीन गुना बड़ा हो सकता है, लेकिन उनके बॉन्ड को अभी भी निवेश ग्रेड के सबसे निचले पायदान पर आंका गया है.
अग्रवाल ने करीब दो दशक पहले निजीकरण के हिस्से के रूप में भारत सरकार से हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड को खरीदना शुरू किया था और अब उनके पास कंपनी की 65 फीसदी हिस्सेदारी है. हिंदुस्तान जिंक का कुल राजस्व 2 अरब डॉलर रुपये का है.
अनिल अग्रवाल (Anil Agrawal) की वेदांता लिमिटेड ने पिछले महीने कहा था कि वह अपनी वैश्विक जिंक संपत्तियों को 298.1 करोड़ डॉलर नकद सौदे में हिंदुस्तान जिंक लि. को बेचेगी.
हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड (HZL) को अपनी वैश्विक जस्ता संपत्तियां बेचने की वेदांता Vedanta की योजना का सरकार ने विरोध किया है.
सरकार ने वेदांता की इकाई एचजेडएल से इन संपत्तियों के अधिग्रहण के लिए दूसरे नकदी रहित तरीकों का पता लगाने को भी कहा है. सरकार ने इस सौदे से जुड़े मामलों में सभी कानूनी विकल्पों की तलाश की बात कही है.
एक तरफ तो अगर अग्रवाल हिंदुस्तान जिंक की नकदी को अपने निजी स्वामित्व वाले वेदांता रिसोर्सेज तक नहीं ले जा सकते हैं, तो कर्ज चुकाने की उनकी क्षमता कम हो सकती है, जिससे उन्हें और अधिक उधार लेने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है.
वहीं अग्रवाल की दूसरी चुनौती राजनीतिक है. यदि वह संपत्ति की बिक्री को मजबूर करने की कोशिश करते हैं और इस प्रक्रिया में सरकार की नाराजगी को बढ़ाते हैं, तो ताइवान के फॉक्सकॉन टेक्नोलॉजी ग्रुप के साथ 19 अरब डॉलर सेमीकंडक्टर कारखाने के लिए साझेदारी करने की उनकी महत्वाकांक्षा संकट में आ सकती है.
पहले से ही, उस परियोजना पर महाराष्ट्र में विपक्षी दलों की पैनी नजर है. इसका कारण है कि आखिरी समय में इस परियोजना को महाराष्ट्र से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात में शिफ्ट कर दिया गया. इसके अलावा, करदाता चिप बनाने वाली इकाइयों की आधी लागत वहन करेंगे और भारत में अगले साल आम चुनाव होने हैं.
शिकागो विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्री और आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने चिपमेकिंग क्षमता की कमी का हवाला देते हुए वेदांता के साथ साझेदारी पर सवाल उठाया है. उन्होंने एक टीवी साक्षात्कार में कहा, "मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि इन कंपनियों को कैसे चुना जा रहा है."
Edited by Vishal Jaiswal