अब 10 घंटों में होंगे 1500 सैनिटरी पैड रिसाइकिल, पुणे के 25 वर्षीय युवक ने बनाई रिसाइक्लिंग मशीन
पुणे के अंजिक्य दहिया ने सैनिटरी पैड्स के सुरक्षित निपटान के लिए बनाई 'पैडकेयर' नाम की रिसाइक्लिंग मशीन
"इंजीनियरिंग स्नातक पुणे के अजिंक्य दहिया ने अपना स्टार्टअप स्थापित किया है। हाल ही में दहिया ने 'पैडकेयर' नामक एक मशीन विकसित की, जो सैनिटरी नैपकिन के सुरक्षित निपटान में मदद करती है। पैडकेयर लैब मशीन इस्तेमाल किए गए सैनिटरी नैपकिन से प्लास्टिक और सेलूलोज़ ड्रेन को अलग करती है और उन्हें रीसाइक्लिंग के लिए उपलब्ध कराती है। भारत में हर साल लगभग 12 बिलियन यूज़्ड सैनिटरी पैड्स उत्पन्न होते हैं, जिनमें से 98 प्रतिशत का निपटारा लैंडफिल या जल निकायों द्वारा किया जाता है, जो पर्यावरण को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करते हैं।"
पुणे के 25 वर्षीय अंजिक्य दहिया ने एक ऐसी मशीन विकसित की है, जो यूज़्ड सैनिटरी नैपकिन के सुरक्षित निपटान को सुनिश्चित कर सकती है। हाल ही में इंजीनियरिंग स्नातक अजिंक्य दहिया ने अपना स्वयं का स्टार्टअप स्थापित किया है और उन्होंने पैडकेयर नाम की एक मशीन विकसित की, जो सैनिटरी नैपकिन के सुरक्षित निपटान में मदद करेगी। खास बात यह है कि यह 10 घंटे में 1500 पैड्स को रिसाइकिल करती है। इसे बनाने का विचार दहिया को कॉलेज के अंतिम वर्ष में आया था। दहिया का लक्ष्य है कि वे इ मशीन का मदद से महिलाओं को स्थायी रूप से शौचालय स्वच्छता समाधान उपलब्ध करवायें।
पैडकेयर लैब मशीन इस्तेमाल किए गए सैनिटरी नैपकिन से प्लास्टिक और सेलूलोज़ ड्रेन को अलग करती है और उन्हें रीसाइक्लिंग के लिए उपलब्ध कराती है। 2018 में इस विचार ने दहिया को दहला दिया और अब शहर में कई संगठनों द्वारा सेनेटरी नैपकिन के सुरक्षित निपटान को सुनिश्चित करने की ओर ध्यान दिया जा रहा है।
दहिया कहते हैं,
"हमने शौचालयों में विशेष तरह के डस्टबिन लगाये जाते हैं, जिसमें 45 दिन तक यूज़्ड पैड्स एकत्रित किये जा सकते हैं। शौचालयों में लगाये गए इन खास डस्टबिन को 'सैनिबिंस' कहते हैं। ये डस्टबिन पूरी तरह से कीटाणु रहित हैं और इनमें किसी भी तरह की दुर्गंध पैदा नहीं होती।"
साथ ही उन्होंने यह भी कहा,
"इन डस्टबिन्स से सैनिटरी पैड्स को मंथली बेसिस पर एकत्र किया जाता है और फिर पैडकेयर मशीनों में डाला जाता है, जो न केवल पर्यावरण को प्रभावित किए बिना इसकी सामग्री को अलग करता है, बल्कि इसे रीसाइक्लिंग उत्पादों के इस्तेमाल के लिए भी तैयार करती है।"
अजिंक्य और उनकी टीम द्वारा हाल ही में प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर साल लगभग 12 बिलियन उपयोग किए जाने वाले सैनिटरी नैपकिन उत्पन्न होते हैं, जिनमें से 98 प्रतिशत का निपटारा लैंडफिल या जल निकायों द्वारा किया जाता है, जो पर्यावरण को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करते हैं।
उपयोग किए गए सैनिटरी नैपकिन से पुनर्नवीनीकरण सामग्री का उपयोग करते हुए, टीम ने कई सजावटी उत्पादों को भी डिज़ाइन किया है जिनका उपयोग घरों में किया जा सकता है। युवाओं की टीम का लक्ष्य सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल सेनेटरी नैपकिन निपटान उपलब्ध करते हुए आने वाले वर्ष में इसे अधिकतम लोगों के लिए उपलब्ध कराना है।