लॉकडाउन के बीच ग्रामीण झारखंड में लड़कियों तक ये पहुंचा रहे हैं सैनीटरी पैड्स
सामाजिक कार्यकर्ता बंदना दुबे और एनजीओ निश्चय आज ग्रामीण झारखंड में सैनिटरी नैपकिन की कमी से निपटने के लिए विभिन्न प्रकार के नैपकिन का वितरण करने की कोशिश कर रहे हैं।
भारत सरकार ने लॉकडाउन की घोषणा करते हुए आवश्यक वस्तुओं की बिक्री की अनुमति दी थी। हालांकि, झारखंड सरकार ने इस सूची में सैनिटरी नैपकिन को छोड़ दिया था।
केंद्र सरकार के कार्यक्रम किशोरी शक्ति योजना के तहत कक्षा छह से 12 वीं कक्षा के सरकारी स्कूल के छात्रों को अपने स्कूल प्रशासन के माध्यम से सैनिटरी नैपकिन प्राप्त होते हैं।
हालांकि, लॉकडाउन के दौरान जो लड़कियां इन नैपकिन का खर्च नहीं उठा सकती हैं और इन सुविधाओं के लिए स्कूलों पर निर्भर हैं, उन सभी ने मासिक धर्म से निपटने के लिए कपड़े के टुकड़ों का उपयोग किया है।
लॉकडाउन के साथ ही वे किराना स्टोर बंद हो गए जहां लड़कियां ऐसे उत्पाद खरीद सकती हैं। इसके अतिरिक्त परिवारों की आय के नुकसान के कारण कई लोग उन्हें वहन करने में भी सक्षम नहीं हो पाए।
झारखंड के गोड्डा गांव की रहने वाली सामाजिक कार्यकर्ता बंदना दुबे ने अपनी व्यक्तिगत क्षमता के तहत अप्रैल के आखिरी सप्ताह में 3,000 से अधिक लड़कियों को सैनिटरी पैड वितरित करने के लिए संपर्क किया है।
बंदना ने न्यूज़18 को बताया,
“हर कोई जानता है कि ग्रामीण झारखंड में 90 प्रतिशत लड़कियां सैनिटरी नैपकिन से वंचित हैं। यह सरकारी स्कूलों के माध्यम से है कि पिछले दो से तीन वर्षों में इन युवा लड़कियों को सैनिटरी पैड का उपयोग करने की आदत हो गई है, लेकिन इस लॉकडाउन ने उन्हें अनहेल्दी मटीरियल का इस्तेमाल करने के लिए मजबूर कर दिया है, जिससे लीकेज और इंफेक्शन हो सकता है और इसी के साथ उनकी सेहत को गंभीर खतरा भी है।
बंदना के अलावा एनजीओ निश्चय भी राज्य के अन्य क्षेत्रों में मासिक धर्म स्वच्छता संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए काम कर रहा है।
इस मुद्दे से निपटने के लिए अपना काम करते हुए NGO ने राज्य के सिंहभूम जिले में 3,000 से अधिक लड़कियों को सैनिटरी नैपकिन वितरित किए हैं। यह वितरण 24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा के तुरंत बाद हुआ है।
निश्चय के संस्थापक तरुण कुमार ने द लॉजिकल इंडियन को बताया,
“1.0 लॉकडाउन के बाद से हमने इन बच्चों को नैपकिन दान करने के लिए धन जुटाना शुरू किया। चूंकि हमारे एनजीओ का सोशल मीडिया पर पेज है, इसलिए हम आसानी से उपलब्ध हैं। जब भी किसी को सैनिटरी पैड की जरूरत होती है तो हम उसे फोन करके पूछते हैं कि क्या दूसरी लड़कियों को भी इसकी जरूरत है, फिर हम स्वयंसेवकों को लड़कियों के बीच इन पैड को वितरित करने के लिए कहते हैं।”