37 साल पहले स्टेट बैंक में स्वीपर की पहली नौकरी मिली थी, आज असिस्टेंट जनरल मैनेजर हैं प्रतीक्षा
ये कहानी है सपने की, मेहनत की, लगन की और इस विश्वास कि अगर जज्बा हो तो संसार में कुछ भी नामुमकिन नहीं. हथेली में किस्मत की लकीर इंसान अपने हाथों से खींच सकता है.
वर्ष 1985. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की मुंबई शाखा. 21 साल की प्रतीक्षा तोंडवलकर ने स्टेट बैंक में बतौर स्वीपर नौकरी ज्वॉइन की. उनके पति सदाशिव काडू उसी बैंक में बुक बाइंडर का काम करते थे.
लेकिन ये कहानी 21 साल की लड़की के स्वीपर बनने की नहीं है. ये कहानी है कि अब 37 साल बाद 58 की हो चुकी प्रतीक्षा स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से असिस्टेंट जनरल मैनेजर बनकर रिटायर हो रही हैं. ये कहानी स्वीपर से शुरू हुई उनकी यात्रा के असिस्टेंट जनरल मैनेजर तक पहुंचने की कहानी है.
ये कहानी है जज्बे की, मेहनत की, लगन की और इस विश्वास कि अगर मेहनत और आत्मविश्वास साथ हों तो संसार में कुछ भी नामुमकिन नहीं. हथेली में किस्मत की लकीर इंसान अपने हाथों से खींच सकता है.
सन 1964 में महाराष्ट्र के एक बेहद निम्नवर्गीय परिवार में प्रतीक्षा का जन्म हुआ. 16 बरस की उम्र में शादी हो गई. तब तक वो अपनी सेकेंडरी एजूकेशन भी पूरी नहीं कर पाई थीं. पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी. पति सदाशिव स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की मुंबई शाखा में बुक बाइंडर का काम करते थे. शादी के बाद प्रतीक्षा पति के साथ मुंबई आ गईं. शादी के कुछ साल बाद पहले बेटे का जन्म हुआ. सब ठीकठाक चल रहा था.
एक बार दोनों अपने गांव जा रहे थे कि रास्ते में एक दुर्घटना हो गई और वहीं से प्रतीक्षा के जीवन के बदलने की शुरुआत हुई. रास्ते में एक भयानक एक्सीडेंट हुआ और सदाशिव की जान चली गई. प्रतीक्षा की उम्र तब सिर्फ 20 साल थी. शादी को चार साल हुए थे. अब वो एक नन्ही जान के साथ इस महानगर में बिलकुल अकेली थी.
प्रतीक्षा को कुछ काम की तलाश थी. पति की मौत के बाद बैंक से कुछ पैसे मिले थे. वो पैसे लेने के लिए कई बार बैंक जाना होता. उनके पति ने वहां काम किया था, लेकिन प्रतीक्षा वहां नौकरी करने की सोच भी नहीं सकती थी. उनके पास में न कोई ढंग की डिग्री थी, न पढ़ाई. लेकिन एक दिन प्रतीक्षा ने हिम्मत करके पूछ ही लिया कि क्या उसे वहां कोई काम मिल सकता है. काम मिल भी गया, वही जो सिर्फ प्राइमरी पास और सेकेंडरी की पढ़ाई बीच में ही छोड़ चुकी स्त्री को मिल सकता था.
प्रतीक्षा स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में स्वीपर का काम करने लगी.
पूरे दिन कुर्सी-मेज झाड़ने, फाइलों पर पड़ी धूल हटाने, झाडू लगाने और सफाई करने के बाद प्रतीक्षा को 70 रु. मिलते थे. मुंबई जैसे शहर में इतने कम पैसों में घर चलाना मुश्किल था.
प्रतीक्षा अपने आसपास बैंक में लोगों को साफ, सुंदर, कलफ लगे कपड़ों में काम पर आते देखती. वो कुर्सी-मेज पर बैठकर काम करते थे और उन्हें अच्छी तंख्वाह भी मिलती थी. उन्हें देखकर प्रतीक्षा को लगता कि अगर वह भी पढ़ी-लिखी होती तो आज उसे बेहतर काम और बेहतर पैसा मिलता.
लेकिन मन के एक कोने ने कहा, तो अभी भी देर नहीं हुई है. मैं फिर से पढ़ाई की शुरुआत कर सकती हूं. प्रतीक्षा ने दोबारा पढ़ाई शुरू करने की ठान ली. बैंक की नौकरी, बच्चे की देखभाल और घर के कामकाज निपटाने के बाद पढ़ाई की और दसवीं की परीक्षा पास कर ली. लेकिन बैंक में नौकरी पाने के लिए दसवीं पास करना काफी नहीं था. फिर उन्होंने विक्रोली के एक कॉलेज में बारहवीं में दाखिला लिया और अपनी अनथक मेहनत से 12वीं की परीक्षा भी पास कर ली. यह 1995 का साल था.
बारहवीं पास करने के बाद प्रतीक्षा को बैंक में क्लर्क की नौकरी लग गई. उन्होंने वहीं उसी बैंक में मैसेंजर का काम करने वाले प्रमोद तोंडवलकर से शादी कर ली. प्रतीक्षा ने खूब मेहनत से काम किया और अनथक लगन और मेहनत से साल दर साल खुद को साबित भी किया.
उसके बाद की कहानी सिर्फ इतनी है कि साल बीतते गए और प्रतीक्षा एक के बाद एक प्रमोशन पाकर आगे बढ़ती गईं और अंत में असिस्टेंट जनरल मैनेजर के पद तक पहुंच गईं. अब उनकी नौकरी समाप्त हो रही है.
अगर प्रतीक्षा यह कर सकती हैं तो आप क्यों नहीं. आपको किसने रोका है.
Edited by Manisha Pandey