हरियाणा में आवारा कुत्तों के हमले से काले हिरण को खतरा
हरियाणा के फतेहाबाद ज़िला के बडोपाल क्षेत्र और हिसार ज़िला के मंगली-रावतखेड़ा क्षेत्र में आवारा कुत्तों की वजह से स्थानीय नीलगाय और काले हिरण की आबादी ख़तरे में है.
हरियाणा राज्य के फतेहाबाद ज़िले में बडोपाल क्षेत्र और हिसार ज़िले के मंगली-रावतखेड़ा क्षेत्र में आवारा कुत्तों की वजह से स्थानीय नीलगाय और काले हिरण की आबादी ख़तरे में है. इन दो संरक्षण रहित वन्यजीवों को बिश्नोई समुदाय के घर पर आश्रय मिलता है. बिश्नोई समुदाय काले हिरण से प्यार करते हैं.
अध्ययन में पाया गया कि आवारा कुत्तों ने वन्यजीवों पर गिरोह बना कर हमला किया. हमले की वारदात और इन वन्य-जीवों के हताहत होने की घटना प्रजनन के मौसम में अधिक देखने को मिली, क्योंकि मादाएं अपने बच्चों पर हमले के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं. हरियाणा राज्य वन विभाग के अनुसार जनवरी 2016 से मई 2020 तक अकेले हिसार संभाग में 361 काले हिरण, 1641 नीलगाय, 25 मोर, 29 चिंकारा और 35 बंदरों को कुत्तों ने मार दिया.
जीव विज्ञान विषय में पश्चिमी हरियाणा में काले हिरन के व्यवहार और आनुवंशिकी पर पीएचडी करने वाले और शोध पत्र के सह-लेखक विक्रम डेलू कहते हैं, “कुत्तों के मालिक जब उन्हें अपने यहां नहीं रहने देते हैं, या यदि वे सड़कों पर पैदा होते हैं, तब वे भटक जाते हैं. नतीजतन, वे आवारा होकर घूमने लगते हैं और अधिकाधिक प्रजनन करते हैं और कुत्तों की स्थानीय आबादी को बढ़ाते हैं. अब इंसानी रिहायस से घिरे वन्यजीव-बहुल क्षेत्रों में ये आवारा कुत्ते चिंता का एक प्रमुख कारण बन गए हैं.”
आवारा कुत्तों के हमलों में हताहत वन्यजीवों की संख्या के बारे में राज्य के वन विभाग ने आंकड़ों के माध्यम से इस क्षेत्र में आवारा कुत्तों को ही एकमात्र शिकारी होने की जानकारी दी.
डेलू बताते हैं, “हरियाणा राज्य में काले हिरण का मुख्य शिकारी चीता था. चीता के विलुप्त होने के बाद, राज्य में कालेसर राष्ट्रीय उद्यान को छोड़कर कहीं भी बड़े मांसाहारी जीव नहीं हैं. राज्य भी कृषि प्रधान है और इंसानी रिहायस की अधिकता है. इस तरह बड़े मांसाहारी जीवों के न होने की स्थिति में, भटके हुए पालतू कुत्ते प्रमुख शिकारी जीवों की जगह लेना शुरू कर दिये हैं. अब ये कुत्ते हरियाणा में अलग-थलग पड़े वन्यजीवों के लिए एकमात्र शिकारी जानवर के रूप में उभरे हैं.”
कुत्तों और वन्यजीवों के टकराव का होगा इंसानों पर भी असर
वर्षों से भारत में आवारा कुत्तों (लगभग 3.5 करोड़) से वन्यजीवों को होने वाले ख़तरों पर लगातार अध्ययन होता रहा है. जमीन पर घोंसले बनाने वाले पक्षियों सहित वन्यजीवों पर होने वाले हमलों के अलावा, विशेषज्ञों ने कैनाइन डिस्टेंपर और अन्य वायरस को अन्य प्रजातियों में फैलने की आशंका जताई है. कुछ शोधों ने यह भी संकेत दिया है कि खुले घूमते आवारा कुत्ते कम से कम 80 प्रजातियों के लिए ख़तरा हैं, जिनमें 31 को “ख़तरे” के रूप में चार को गंभीर ख़तरे को रूप में आईयूसीएन की लाल सूची में रखा गया है. भारत में गोल्डन लंगूर (ट्रेचीपिथेकस जीई), द ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (अर्डियोटिस निग्रिसेप्स) और हरे समुद्री कछुए (चेलोनिया मायदास) पर हमले की रिपोर्ट दर्ज की गयी है.
पश्चिमी हरियाणा में किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि पिछले कुछ वर्षों में आवारा कुत्तों की संख्या बढ़ी है. इस क्षेत्र में आवारा कुत्तों के कारण हुए ख़तरों का मूल्यांकन, क्षेत्र में हर माह के दौरान हुए मुठभेड़ों की गणना के आधार पर की गई. इस दौरान आवारा कुत्तों द्वारा अकेले, जोड़े में या छोटा गिरोह बना कर शिकार करने के व्यवहार पर नजर रखी गई. पड़ताल के दौरान कुत्तों की बहुतायत मौजूदगी पाई गई. कुत्तों द्वारा काले हिरण और नीलगाय की हत्या संबंधी राज्य वन विभाग से पाए गए आंकड़े से पता चला कि आवारा या जंगली कुत्ते वास्तव में वन्यजीवों के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बन गए हैं.
डेलू कहते हैं, “पारिस्थितिकी तंत्र में प्रत्येक प्रजाति की अपनी भूमिका होती है. हरियाणा के मामले में शाकाहारी जीव क्षेत्रीय अनुपात में बहुत कम संख्या में मौजूद हैं, इसलिए इन कुत्तों की उपस्थिति स्थानीय वन्यजीवों की आबादी पर हानिकारक प्रभाव डाल सकती है. साथ ही हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि ये कुत्ते एक या दो साल में शिकारी के रूप में सामने नहीं आए. इस तरह का व्यवहार करने में उन्हें कई साल या दशक लग गए हैं.”
इस शोध में केवल हरियाणा में ही नहीं बल्कि पूरे देश में इस समस्या का समाधान करने के कई तरीकों की सूची दी गई है. इसमें कहा गया है कि कुत्तों और वन्यजीवों के टकराव को कम करने के लिए व्यापक रूप से देश स्तर पर या राज्य स्तर पर ऑपरेशन (एसओपी) चलाने की आवश्यकता है. कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण के साथ-साथ वन्यजीवों का संरक्षित क्षेत्रों से बाहर होने की स्थिति में पुनर्वास केंद्रों की स्थापना भी स्थानीय स्तर पर एक समाधान हो सकता है. अध्ययन में यह भी सुझाव दिया गया है कि लोगों को पालतू कुत्तों को छोड़ने पर रोक लगाने के लिए सख़्त कानून होना चाहिए, ताकि पालतू कुत्तों को आवारा कुत्ता बनाने से रोका जा सके. कुत्तों से ख़तरे का मूल्यांकन करने के लिए वन्यजीव बहुल क्षेत्रों के आसपास कुत्तों की गणना करने को प्रस्तावित किया गया है.
हरियाणा में अधिकांश स्तनधारी और अन्य वन्यजीवों की आबादी अधिकतर इंसानी रिहायस से घिरी हुई है इसलिए भविष्य में कुत्ते बनाम वन्यजीव बनाम इंसान के बीच टकराव की संभावना है. डेलू कहते हैं, “जूनोटिक रोगों (प्राणीजन्य रोगों) के फैलने का भी ख़तरा है, इसलिए इस समस्या को और बढ़ने से रोकने के लिए अभी समग्र जागरूकता और जमीनी स्तर पर काम करने की आवश्यकता है.”
(यह लेख मुलत: Mongabay पर प्रकाशित हुआ है.)
बैनर तस्वीर: भारत में आवारा कुत्तों की संख्या लगभग 3.5 करोड़ बताई जाती है. तस्वीर – अचत 1999/विकिमीडिया कॉमन्स