Talking To Strangers: अजनबियों से बात करने के तरीके बताती है ये किताब
इस किताब के जरिए मैलकम ग्लैडवेल ने अलग-अलग किस्सों के जरिए ये बताने की कोशिश की है कि हम किसी अनजान या अजनबी से बात करते समय किन पूर्वाग्रहों से ग्रसित रहते हैं और कैसे बात बनाने की जगह बिगाड़ देते हैं.
टाकिंग टू स्ट्रेंजर्सः वॉट वी शुड नो अबाउट दी पीपल वी डोन्ट नो एक ऐसी किताब है जो मानवीय व्यवहार के बारे में बात करती है. कैसे इंसान एक दूसरे को ठीक से नहीं समझ पाने की वजह से या फिर ठीक से अपनी बात को सामने वाले तक नहीं पहुंचाने की वजह से मानसिक या भावनात्मक रूप से चोट पहुंचाते हैं.
इस किताब को मैल्कम ग्लैडवेल ने लिखा है, जो लोकप्रिय मैगजीन न्यू यॉर्कर में पत्रकार हैं. यह किताब पहली बार सिंतबर 2019 में छपी थी. इस किताब के जरिए ग्लैडवेल ने अलग अलग किस्सों के जरिए ये बताने की कोशिश की है कि हम किसी अनजान या अजनबी से बात करते समय किन पूर्वाग्रहों से ग्रसित रहते हैं और कैसे बात बिगाड़ देते हैं.
किताब में ग्लैडवेल ने जिन किस्से कहानियों का जिक्र किया है वो इस बात की गवाह हैं कि हम इंसान एक दूसरे को जज करने में कितने खराब हैं. इस किताब को पढ़ने से यकीनन हम किसी जाने पहचाने या अनजान से बात करने, उसके बारे में कोई राय बनाने या कोई विचार बनाने से पहले उसे थोड़े अलग नजरिये से देखेंगे.
ग्लैडवेल कहते हैं, हम(इंसान) न सिर्फ एक दूसरे के शब्दों के गलत मतलब निकालते हैं बल्कि कई बार सामने वाले के इरादे पर भी सवाल खड़े कर देते हैं.इंसान अमूमन कुछ चीजों के आधार पर पूर्वाग्रह बनाते हैं. जैसे कि लोगों के एटीट्यूड, रवैये, व्यवहार सबसे.
किताब की शुरुआत में ऑथर ने कुछ अफ्रीकी अमेरिकी लोगों के बारे में बताया है जिन्हें कानूनी तौर मौत की सजा दी गई है. इन वाकयों का जिक्र करके ग्लैडवेल बताते हैं कि कैसे हममें से अधिकतर लोगों को ये मालूम भी नहीं होता कि हम दूसरों के बारे में किस आधार पर अपनी राय बना रहे हैं. वो राय वाकई किसी वास्तविकता पर आधारित है या किसी पूर्वाग्रह पर आधारित है.
ग्लैडवेल आगे कई मनोवैज्ञानिक स्टडी का उदाहरण देकर ये बताते हैं कि इंसान झूठ पकड़ने में कितने गलत होते हैं. एफबीआई जैसे एक्सपर्ट भी झूठ पकड़ने में एक औसत आम इंसान जैसी गलतियां कर जाते हैं. जब एक ट्रेन्ड प्रोफेशनल इस बारे में मात खा सकता है जो एक औसत शख्स भला कैसे एक्सपर्ट हो सकता है.
किताब में आगे ग्लैडवेल ट्रांसपैरेंसी के बारे में बात करते हैं. वो कहते हैं अक्सर लोग वही बर्ताव या रवैया अपनाते हैं जैसा वो दूसरों के मन में अपनी छवि बनाना चाहते हैं. किसी अनजान से बात करते समय हम बस ऊपरी ऊपरी तौर पर अपनी बातें रखते हैं.
भावनात्मक स्तर पर एक अजनबी या अनजान शख्स से जुड़ना मुश्किल होता है और जब तब आप भावनात्मक स्तर पर उनसे नहीं जुड़ सकते आप ये नहीं बता सकते कि असल में वो शख्स कैसा है. इस स्थिति में लोगों के चेहरे के हावभाव उनके बारे में काफी कुछ बयां कर सकते हैं.
इंसानी रवैये या व्यवहार को लेकर ग्लैडवेल ने इस किताब में कई और पहलुओं पर बात की है. कुल मिलाकर इस किताब को पढ़ने के बाद अजनबियों से बात करने का अंदाज तौर-तरीका काफी बदल जाता है. हम एक नए चश्मे से लोगों को समझने की कोशिश करते हैं. जिन भी लोगों को इंसानों के साथ बातचीत करने में या ह्यूमन थियरी में दिलचस्पी है उन्हें ये किताब जरूर पसंद आएगी.
ग्लैडवेल की किताबों में उनके शब्दों के अंदर कई मायने छिपे हैं. उन्होंने असल जिंदगी से जुड़े किस्सों को तो जगह दी है मगर साथ ही ये भी बताया है कि हम दूसरों के बारे में कैसी राय बनाते हैं उनसे कैसे पेश आते हैं ये बहुत हद तक हमारी जिंदगी में अब तक के हादसों वायकों पर निर्भर करता है. उनके समाजशास्त्र की थियरी बाकी समाजशास्त्रियों के मुकाबले कुछ अलग है.
Edited by Upasana