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हरियाणा की यह कंपनी कचरे से बनाती है पैसे, सालाना 23 करोड़ का टर्नओवर

भारत में ई-वेस्ट के काम में बड़े पैमाने पर बच्चों को लगाया जाता है। इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों में लेड, कैडमियम, ब्रोमिनेटेड, पॉलिक्लोरिनेटेड बायफिनायल्स और कई विषैले पदार्थ होते हैं। इससे उनके स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।

हरियाणा की यह कंपनी कचरे से बनाती है पैसे, सालाना 23 करोड़ का टर्नओवर

Monday January 14, 2019 , 6 min Read

देशवाल कंपनी में काम करते इंजीनियर


भारत में इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों की पहुंच घर-घर तक हो गई है। लेकिन तकनीक हमेशा दोधारी होती है और वह अपने साथ कोई मुश्किल जरूर छिपाए होती है। आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों के साथ भी ऐसा ही है। जब तक ये हमारे घरों में रहते हैं हमें लगता है कि जिंदगी कितनी आसान हो गई है, लेकिन जैसे ही ये खराब होते हैं और काम करना बंद कर देते हैं, इन्हें हम उठाकर कबाड़ वाले के हाथ में दे देते हैं। क्या कभी आपने सोचा है कि इन खराब उपकरणों का क्या होता होगा? 


इस कबाड़ को अंग्रेजी में ई-वेस्ट कहते हैं। ई-वेस्ट का पर्यावरण पर काफी बुरा प्रभाव पड़ता है। सबसे ज्यादा नुकसान उनको पहुंचता है जो इस ई-वेस्ट को छांटने का काम करते हैं। हरियाणा के उद्यमी राज कुमार जब आईटी सेक्टर में काम कर रहे थे तो उनकी नजर में ई-वेस्ट की समस्या आई। वे कहते हैं, '2018 में भारत में ई-वेस्ट का आंकडा तीस लाख मीट्रिक टन का था और देश में सिर्फ 5 फीसदी ई-वेस्ट को रिसाइकिल करने की क्षमता है।'


इस समस्या को देखते हुए राजकुमार (38) के मन में एक आइडिया आया। उन्होंने सोचा कि क्यों न एक रिसाइकिल यूनिट शुरू किया जाए जहां ई-वेस्ट का कोई उपाय किया जा सके। वे कहते हैं, 'मैं अपने समाज और पर्यावरण के लिए काम करना चाहता था। इसलिए मैंने 2013 में राजस्थान के खुशखेड़ा में देशवाल ई-वेस्ट रिसाइक्लर नाम से एक कंपनी शुरू की।' केंद्र सरकार ने 2010 में ई-वेस्ट को लेकर एक नीति तैयार की थी उससे भी राज कुमार को काफी प्रेरणा मिली। उन्होंने कंपनी में खुद के पैसे लगाए। 


राजकुमार ने मानेसर में बड़े पैमाने पर रिसाइक्लिंग यूनिट स्थापित की। दोनों यूनिटों में प्लास्टिक, बैट्री, और भी कई प्रकार के ई वेस्ट को रिसाइक्लिंग करने का काम शुरू हो गया। तब से लेकर अब तक राज कुमार अपनी कंपनी में 15 करोड़ रुपये का निवेश कर चुके हैं। 2018-19 का उनका टर्नओवर करीब 23 करोड़ होने की उम्मीद है। उनकी कंपनी ने अब तक लगभग 1,000 मीट्रिक टन ई-वेस्ट को रिसाइकिल कर चुकी है और 2019 से हर साल 500 मीट्रिक टन ई-वेस्ट को रिसाइकिल करने का लक्ष्य रखा गया है। राज कुमार बताते हैं कि उनकी कंपनी स्वच्छ भारत अभियान के सपने को साकार कर रही है। 

कंपनी के संस्थापक राजकुमार

राज कुमार ने योरस्टोरी से कंपनी और इस काम से जुड़ी चुनौतियों को लेकर विस्तार से बात की। बातचीत के कुछ अंश:


योरस्टोरी: ई-वेस्ट मैनेजमेंट के क्षेत्र में सबसे बड़ी चुनौती क्या है? 

राजकुमार: भारत में ई-वेस्ट के काम में बड़े पैमाने पर बच्चों को लगाया जाता है। इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों में लेड, कैडमियम, ब्रोमिनेटेड, पॉलिक्लोरिनेटेड बायफिनायल्स और कई विषैले पदार्थ होते हैं। इससे उनके स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। एक और बड़ी चुनौती समाज के लोगों को जागरूक करने की है क्योंकि लोगों को नहीं पता है कि ई-वेस्ट का निपटान किस तरीके से किया जाता है। 


योरस्टोरी: आपकी कंपनी किस क्षेत्र पर ज्यादा फोकस करती है?

राजकुमार: हमारे पास एक प्रतिबद्ध रिसर्च और डेवलपमेंट डिपार्टमेंट है जहां पर रिसाइक्लिंग टेक्नॉलजी से जुड़े लोग काम करते हैं और कुछ नया करने की कोशिश करते रहते हैं। हम हैवी मशीनरी से मेटल रिकवरी, बैट्री रिसाइक्लिंग, एक्सटेंडेंड प्रॉड्यूसर रिस्पॉन्सिबिलिटी और प्लास्टिक रिसाइक्लिंग का काम करते हैं। इसके साथ ही हम कॉर्पोरेट्स, सोसाइटी और स्कूलों में कैंप लगाकर लोगों को ई-वेस्ट के प्रति जागरूक भी करते हैं।


योरस्टोरी: बीते पांच सालों में आपकी कंपनी ने कितनी वृद्धि की है?

राजकुमार: इतने छोटे से वक्त में हम भारत में सबसे अग्रणी रिसाइक्लर हैं। देशवाल में हर तरह के ई-वेस्ट को पर्यावरण अनुकूल रिसाइकिल किया जाता है। अभी हमारे पास चार बड़ी रिसाइक्लिंग यूनिट हैं। ये मानेसर, अलवर, खुशखेड़ा में स्थित हैं। हमारे पास 200 से ज्यादा कॉर्पोरेट्स क्लाइंट हैं जिनमें आईटी सेक्टर की बड़ी कंपनियां शामिल हैं। हमारे पास हैवी इंडस्ट्री, ऑटोमोबिल, कंज्यूमर गुड्स और फाइनैंस सेक्टर की भी बड़ी कंपनियां हैं। हम 50 फीसदी प्रति वर्ष की दर से आगे बढ़ रहे हैं।


योरस्टोरी: आप ई-वेस्ट को हैंडल करने के लिए डिजिटल माध्यम को कैसे प्रयोग कर रहे हैं।

राजकुमार: डिजिटल माध्यम कम्यूनिटी एंगेजमेंट में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हमारी कंपनी के लिए आम लोग और कॉर्पोरेट्स दोनों महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हम उपभोक्ताओं को जागरूक करने और एंगेजमेंट के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल करते हैं। इससे समाज में काफी बदलाव आया है। इसके साथ ही हम डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से अपना बिजनेस कर रहे हैं। हमारे पास एक ऐसा इन हाउस सिस्टम है जिसके जरिए हम पिक अप से लेकर इनवॉइस और ई-वे बिल तक ऑनलाइन जेनरेट करते हैं। इसमें कम से कम कागजी कार्रवाई होती है। आने वाले समय में हम पूरी तरह से पेपरलेस ऑर्गनाइजेशन बन जाएंगे।


योरस्टोरी: अब तक के सफर में कंपनी की बड़ी उपलब्धियां क्या रही हैं?

राजकुमार: 1,000 मीट्रिक टन ई-वेस्ट को रिसाइकिल के लक्ष्य को पार करना हमारे लिए काफी महत्वपूर्ण रहा। हमने राष्ट्रीय स्तर पर स्वच्छ संसार के नाम से ई-वेस्ट जागरूकता अभियान चलाया जिसने 20,000 से अधिक लोगों पर अपना प्रभाव डाला। हम 99 फीसदी मेटल की रिकवरी कर लेते हैं और हमने अपनी चारों यूनिट में रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट फैसिलिटी स्थापित कर ली है, जहां इस इंडस्ट्री से जुड़े विशेषज्ञ काम करते हैं।


योरस्टोरी: ई-वेस्ट मैनेजमेंट एक बड़ी इंडस्ट्री है, देशवाल बाकी की कंपनियों से अलग कौन सी रणनीति अपनाती है?

राजकुमार: भारत में हर साल तीस लाख मीट्रिक टन ई-वेस्ट उत्पादित होता है और हमारा ऐम है कि हम अकेले इसका तीन फीसदी हिस्सा रिसाइकिल करें। हम पूरे ई-वेस्ट को अकेले ही एक छत के नीचे रिसाइकिल करते हैं। हम लीथियम आयन पर खास फोकस करते हैं। इंडस्ट्री में हैवी मशीनरी को रिसाइकिल करने वाले अकेले हैं। हम 4,500 से 6,000 किलोग्राम तक की भारी मशीनों को रिसाइकिलल करते हैं। हम प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और नगर निगमों के साथ मिलकर काम करते हैं इससे काम अधिक प्रभावी होता है।


योरस्टोरी: आने वाले समय के लिए आपकी क्या रणनीति है?

राजकुमार: आने वाले दो सालों में हम अपनी रिसाइक्लिंग सुविधा की क्षमता को 1,00,000 टन तक बढ़ाना चाहते हैं जो कि भारत में उत्पादित ई-वेस्ट का तीन फीसदी हिस्सा है। हम रिसाइक्लिंग के क्षेत्र में दो पेटेंट को भी अपने नाम करने की दिशा में काम कर रहे हैं। हम सामाजिक उद्धार, पर्यावरण संरक्षण और नई प्रतिभाओं को निखारने की दिशा में काम कर रहे हैं। हम सरकार से भी मदद हासिल करने की दिशा में काम कर रहे हैं ताकि बड़े पैमाने पर हम इस काम को अंजाम दे सकें।


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