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नए 'गांधी' के पर्ली इनिशिएटिव ने लिखा बीड के 15 गांवों का नया इतिहास

नए 'गांधी' के पर्ली इनिशिएटिव ने लिखा बीड के 15 गांवों का नया इतिहास

Thursday October 31, 2019 , 5 min Read

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मयंक गांधी

"महाराष्ट्र के जिस सूखा पीड़ित इलाके में किसान आत्महत्याएं करने लगे थे, अब 'ग्लोबल पर्ली इनिशिएटिव' के जरिये मयंक गांधी वहां का दोबारा इतिहास लिख रहे हैं। चार लाख रुपए जुटाकर पापनाशी को चौड़ा और गहरा करने के साथ ही वॉटरशेड, तालाब, चेक डैम बने, वैकल्पिक रोजगार मिले तो वहां के खेत फिर से मुस्कराने लगे हैं।"   

जिस मराठवाड़ा में पिछले साल सूखा पीड़ित 909 किसानों ने आत्महत्या कर ली थी, उसी के एक परिक्षेत्र बीड (महाराष्ट्र) जिले में मयंक गांधी 'ग्लोबल पर्ली इनिशिएटिव' के दायरे में आए 15 गांवों का दोबारा इतिहास लिख रहे हैं। खेती के भरोसे जिस पर्ली क्षेत्र में असिंचन की विपदा से त्रस्त किसानों का जीवन यापन असंभव सा होने लगा था, वहां से गुजरने वाली पापनाशी नदी मयंक गांधी के प्रयासों से पुनर्जीवित हो उठी है। यह अनायास नहीं हुआ, बल्कि की पापनाशी को एक बार फिर से जीवन दायिनी बनाने के लिए मयंक गांधी की अगुवाई में वॉटरशेड, डेढ़ सौ से अधिक तालाब और पचास से अधिक चेक डैम बनाने पड़े। यह कामयाबी मयंक गांधी के नेतृत्व में चार लाख रुपए जुटाकर पंद्रह गांवों के किसानों की तपस्या से संभव हुआ।


खुद हालात से जूझ रहे किसानों से ये चार लाख रुपए जुटाना भी पश्चिम में सूरज उगाने जैसी एक बड़ी कामयाबी थी। इस फंडिंग में, दस रुपए से दस हजार तक, जिससे जो संभव हो सका, खुशी-खुशी हर किसान की सहभागिता रही। किसानों से जुटाया गया ये सारा फंड पूरी समझदारी के साथ पापनाशी को चौड़ा और गहरा करने के साथ ही वॉटरशेड, तालाब, चेक डैम बनाने पर खर्च कर दिया गया।


'ग्लोबल पर्ली इनिशिएटिव' के फाउंडर मयंक गांधी बताते हैं कि पापनाशी के उद्धार के लिए उन्हे बीड के पंद्रह गांवों का इसलिए मॉडल बनाना पड़ा क्योंकि इतना चुनौती पूर्ण काम किसी एक-दो गांवों के बूते पर होना संभव नहीं था। उन्हे शुरू में पूरे इलाके के हालात को समझने के बाद लगा कि ये तो मल्टीपल ऑर्गन फेलियर (शरीर के सारे अंग-प्रत्यंग निष्क्रिय हो जाने) जैसा मामला है, इसलिए यहां की हर संभव जीवंतता को एक बार फिर से सक्रिय करना होगा। और उन्होंने वैसा ही किया। काम शुरू करने से पहले उन्होंने इलाके के एक-एक किसान को एकला चलो की तरह 'ग्लोबल पर्ली इनिशिएटिव' के दायरे में सुसंगठित किया।





'ग्लोबल पर्ली इनिशिएटिव' की पहली प्राथमिकता ये रही कि इस मिशन में साझा हो रहे लोगों के वैकल्पिक रोजी-रोजगार को भी इस अभियान से जोड़ा जाए क्योंकि पूरे जिले में कृषि पर निर्भरता बेमानी हो चली थी। इसके पीछे सोच ये थी कि किसान चार पैसा कमाने लायक होंगे, तभी वह इस मिशन में भी आर्थिक रूप से साझीदार हो सकेंगे। इसके लिए सबसे पहले किसान परिवारों की महिलाओं से विमर्श किया गया। 


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मयंक गांधी की प्रेरणा से वे घर-गृहस्थी, किसानी के काम-काज से वक़्त निकालकर रोजाना सुबह-शाम मूंगफली की चटनी बनाने लगीं। इस काम ने महिलाओं को एकजुट कर दिया।


ग्लोबल पर्ली द्वारा मार्केटिंग के साथ मूंगफली की चटनी शहरों और कारपोरेट कंपनियों तक सप्लाई होने लगी। इससे घर बैठे किसान परिवारों की महिलाओं को हजारों रुपए की कमाई होने लगी।


मयंक गांधी का सोचना था कि सूखे की मार से पस्त हो चुके किसानों के घरों की महिलाएं आत्मनिर्भर होंगी तो उनके परिवार खुशहाल होंगे, बच्चे स्कूल जाएंगे। उन महिलाओं ने इतना ही नहीं किया।


वे मयंक गांधी की प्रेरणा से शराब बंदी की मुहिम में कूद पड़ी क्योंकि उनके घर बर्बाद करने में नशाखोरी भी एक बड़ी वजह बन चुकी थी।


पर्ली और उसके आसपास के गांवों में शराब की सौ दुकानों के खिलाफ आंदोलन होने लगा।


आखिरकार, सारी दुकानों पर ताले लटक गए। ग्लोबल पर्ली ने किसानों में ऐसा आत्मविश्वास जगाया है कि अब पापनाशी प्रवाहित हो चली है। खेतों में भी चहल-पहल बढ़ने लगी है। गैरकृषि उपायों के वैकल्पि काम-काज, रोजी-रोजगार से किसान परिवार खुशहाल होने लगे हैं।

  




इसी तरह, महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित एक और समृद्ध गांव है हिवरे बाजार। वर्ष 1989 तक इस गाँव की पहाड़ियाँ और खेत बंजर हो चुके थे। लोगों के पास रोजगार नहीं था। गाँव में कच्ची शराब बनती थी। लोग पलायन करने लगे तो गाँव के कुछ युवकों ने सुधार का बीड़ा उठाया और अपने एक साथी पोपटराव पंवार को सरपंच बना दिया।


पोपटराव ने सात सूत्री एजेंडा तैयार किया, जिसमें पेड़ कटाई पर रोक, परिवार नियोजन, नशाबंदी, श्रमदान, लोटाबंदी (खुले में शौच रोकना), हर घर में शौचालय व भूजल प्रबन्धन शामिल थे। उन्होंने गाँव और इसके आस-पास वर्षा जल संरक्षण के लिए बड़ी संख्या में वाटरशेड बनवाए, कुएँ खुदवाए। गाँव में भूजल स्तर बढ़ गया।


पानी आया तो खेतों में फसलें लहलहाने लगीं, हरियाली भी आई। आज 315 परिवारों वाले इस गाँव के मॉडल को राज्य के 1000 से अधिक गाँवों में भी अपनाया जा रहा है। पोपटराव की मदद से राज्य सरकार इसे हर जिले के पाँच गाँवों में लागू करना चाहती है। अब तक इस दिशा में एक सौ गांवों में आशातीत सफलता मिली है।