‘रुक जाना नहीं’ : ज़िंदादिली और जज़्बे से निकली सफलता की राह, बिहार के युवा सुकीर्ति माधव की प्रेरक कहानी
प्रिय साथियों, ‘रुक जाना नहीं’ सीरीज़ के बीसवें भाग में आज हम पढ़ेंगे, अभावों के बीच अपनी ज़िंदादिली और जज़्बे से सफलता की राह बनाने वाले युवा IPS अधिकारी सुकीर्ति माधव मिश्रा की प्रेरणादायक कहानी। मूल रूप से बिहार के जमुई जिले के एक गाँव के निवासी सुकीर्ति माधव फ़िलहाल उत्तर प्रदेश में IPS अधिकारी हैं।
हाफ पैंट और मटमैला बुशर्ट पहन धूल उड़ाते हुए मवेशियों को चरते जाते देखना या सबके साथ बस खेलते रहना। कभी पुरानी किताबों के ढेर से कोई कहानी की किताब ढूंढ निकालना और धूल साफ कर एक बार में पढ़ जाना। कभी कटी पतंग के पीछे भागना, कभी गौरेया का पीछा करना। मछली पकड़ना, बेर तोड़ना, कलेवा लेके खेत पे बाबा के पास जाना और मौका मिलते ही खेत के ट्यूबवेल पे नहाना। झोला लेके स्कूल जाना, बोरे पे बैठना और अंतिम घंटी बजने का इंतज़ार करना। गरमी में खुले आसमान के नीचे तारे गिन सोना, बारिश में भीगना और खेलना, ठंड में पुआल की गर्मी में बिस्तर बना लेना- और उनींदी रातों में बड़े-बड़े सपने देखना। कुछ ऐसा सुनहरा था मेरा बचपन।
देखते-देखते बचपन बीत गया और स्नातक और फिर MBA भी हो गया। 2010 में MBA पूरा करते ही कोल इंडिया लिमिटेड में नौकरी लग गई। 2010 एक और वजह से यादगार साल रहा। इसी साल मेरे पिताजी की नौकरी भी माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बहाल हुई, 22 सालों की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद। बहरहाल इस 22 साल के संघर्ष ने काफी कुछ सिखाया-बताया। माता-पिता ने खेती किसानी की, अभाव देखे, मुश्किल वक़्त बिताया, लेकिन हमें हमेशा बड़े सपने देखने को प्रेरित किया।
मैं बिहार के एक जिले जमुई के एक गांव मलयपुर से हूँ। बिहारी होने के नाते सिविल सर्विस के बारे में बहुत सुन रखा था। मेरे पिताजी हमेशा से ये चाहते थे कि मैं UPSC दूं और लोक सेवा के क्षेत्र में आऊं, हालांकि मैं अपने आप को औसत छात्र मानते हुए इस परिचर्चा से दूर रखने की कोशिश करता था।
MBA के बाद कोल इंडिया लिमिटेड की अच्छी नौकरी। शायद जितना मैंने सोचा था या जितना मैं अपने को योग्य मानता था, उससे बेहतर। मैं खुश था और इसी तरह दिन, महीने और कुछ साल बीत गए। लेकिन कहीं कुछ तो ऐसा था, जो चुभ रहा था। कई सवाल मन मे उमड़-घुमड़ रहे थे। क्या मुझे कहीं और होना चाहिए? क्या मैं कहीं और बेहतर कर सकता हूँ? क्या मैं ज़िन्दगी को और सार्थकता दे सकता हूँ? क्या मुझे सपने देखने चाहिए? क्या मुझे उन सपनों का पीछा करना चाहिए, जो मेरे पिताजी ने मेरे लिए देखे? और इस तरह मेरा मन आकुल और अधीर होने लगा।
लेकिन कैसे? UPSC? जहाँ सबसे तेज़, सबसे प्रतिभाशाली लोग प्रतिभाग करते हैं। आर्थिक बाध्यता की वजह से न तो नौकरी छोड़ना संभव था और न नौकरी के साथ कोलकाता में कोचिंग करना। क्या मैं ये कर पाऊंगा-पता नहीं। लेकिन क्या ऐसे ही छोड़ दूं। कम-से-कम ईमानदारी से भरा एक प्रयास तो कर लूं। कभी ये पछतावा तो नहीं रहेगा कि काश एक बार कोशिश कर ली होती। और इस उहापोह और उधेड़बुन के रास्ते से निकलकर मेरी यात्रा शुरू हुई, UPSC की ओर, जी-जान से, जोशो-खरोश से।
नौकरी के साथ तैयारी शुरू कर दी और हर एक गुजरते दिन के साथ निश्चय और दृढ़, और मजबूत होता गया। कुछ परेशानियां आईं, लेकिन इससे प्रेरणा और बढ़ती गई। प्रथम प्रयास में IRS में चयन हो गया और फिर अगली बार IPS में। मैंने सपना देखा, खुद पे भरोसा किया, मेहनत की और घरवालों के अटूट संबल और सबके आशीर्वाद से मेरी यात्रा एक सुखद पड़ाव पर आके रुकी-लोक सेवा, देश सेवा के पड़ाव पे।
दोस्तो! बड़े सपने देखें, खुद पर भरोसा व आत्मविश्वास रखें, मेहनत करें, आप निश्चित रूप से सफल होंगे।
"देखें जो सपने पीछा कर,
हदों को अपनी खींचा कर,
बीती ताहि बिसार के,
नये सपनों की बात तो कर,
मंज़िल तो मिल ही जाएगी,
एक कदम बढ़ा, शुरुआत तो कर।"
गेस्ट लेखक निशान्त जैन की मोटिवेशनल किताब 'रुक जाना नहीं' में सफलता की इसी तरह की और भी कहानियां दी गई हैं, जिसे आप अमेजन से ऑनलाइन ऑर्डर कर सकते हैं।
(योरस्टोरी पर ऐसी ही प्रेरणादायी कहानियां पढ़ने के लिए थर्सडे इंस्पिरेशन में हर हफ्ते पढ़ें 'सफलता की एक नई कहानी निशान्त जैन की ज़ुबानी...')