क्या होता है कल्चर शॉक? विदेश जाने वाले 80 फीसदी स्टूडेंट्स होते हैं प्रभावित
कल्चर शॉक तब होता है जब कोई व्यक्ति अपने घर और परिचित परिवेश को छोड़कर किसी अपरिचित वातावरण में चला जाता है. एक अनजान माहौल होने के कारण उस कल्चर के साथ एडजस्ट करना पड़ता है.
अपने ही देश के किसी गांव या कस्बे से निकलकर बड़े शहर में जाने से ही स्टूडेंट्स को नए माहौल के हिसाब से खुद को ढालना पड़ता है. हालांकि, ऐसे माहौल से ढलकर भी जब स्टूडेंट्स हाईअर एजुकेशन के लिए किसी दूसरे देश जाते हैं तब उन्हें कल्चर शॉक का सामना करना पड़ता है. इसका कारण है कि हर देश के अपने नियम-कानून होते हैं, अपनी संस्कृति और परंपराएं होती हैं.
एक ग्लोबल स्टूडेंट हाउसिंग प्लेटफॉर्म यूनिवर्सिटी लिविंग ने अपने हालिया सर्वे में कहा है कि विदेश जाने पर 10 में 8 स्टूडेंट्स किसी न किसी तरह से कल्चर शॉक का सामना करते हैं. रिपोर्ट स्टूडेंट्स के मेंटल हेल्थ को भी सामने रखती है. एक नए देश में जाने पर लगभग 10 में से 5 स्टूडेंट्स को मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.
दिलचस्प बात यह है कि यूनिवर्सिटी लिविंग ने खुलासा किया कि लगभग 60 फीसदी पैरेंट्स अपने बच्चों को कल्चर शॉक का अनुभव करने के बारे में अधिक चिंतित हो जाते हैं। उससे भी दिलचस्प यह है कि पैरेंट्स रिवर्स कल्चर शॉक के बारे में भी चिंता व्यक्त करते हैं. इसका मतलब है कि पैरेंट्स सोचते हैं कि उनके बच्चे वापस आकर दोबारा इस सोसायटी में कैसे एडजस्ट करेंगे.
कल्चर शॉक है क्या?
कल्चर शॉक तब होता है, जब कोई व्यक्ति अपने घर और परिचित परिवेश को छोड़कर किसी अपरिचित वातावरण में चला जाता है. एक अनजान माहौल होने के कारण उस कल्चर के साथ एडजस्ट करना पड़ता है. इसमें आपके जीवन के महत्वपूर्ण लोगों, जैसे परिवार, दोस्तों, सहकर्मियों और शिक्षकों से अलग होने का सदमा भी शामिल है. वे लोग जिनसे आप असमंजस में होने के समय बात करते हैं, वे लोग जो आपको सपोर्ट और मार्गदर्शन देते हैं.
यदि दोनों स्थान पूरी तरह से अलग हों तो एडजस्ट करने में लगने वाला समय अधिक हो सकता है. उदाहरण के तौर पर, एक छोटे से ग्रामीण क्षेत्र से एक बड़े महानगर में जाना या दूसरे देश में जाना. एक ही देश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर भी जाने पर लोगों को कल्चर शॉक का अनुभव हो सकता है.
कल्चर शॉक का सामना सिर्फ स्टूडेंट्स को ही नहीं बल्कि रिटायर होने के बाद विदेश में बसने वालों, छुट्टियों पर जाने वालों, बिजनेस ट्रैवेल पर जाने वालों को भी होता है.
कल्चर शॉक के मुख्य कारण
कल्चर शॉक मौसम, स्थानीय मान्यताओं, भाषा, खान-पान, रहन-सहन और संस्कृति से जुड़ा हो सकता है. इन मामलों में आपको लग सकता है कि आप बिल्कुल अलग जोन में आ गए हैं.
नई भाषा को सुनना और बोलना थका देने वाला होता है. क्लास में कुछ विदेशी स्टूडेंट्स को व्याख्यान और पठन सामग्री को समझने में परेशानी होती है. लोग जल्दी बोलते हैं और उसे दोहराने के लिए कहने में आपको शर्मिंदगी महसूस हो सकती है.
वहीं, सोशल बिहैवियर लोगों को परेशान कर सकता है, चौंका सकता है या फिर भावनाओं को चोट भी पहुंचा सकता है. उदाहरण के तौर पर आपको लग सकता है कि लोग रूखा व्यवहार कर रहे हैं, दूर रहते हैं या फिर हमेशा जल्दी में रहते हैं.
यहां तक कि अक्सर प्यार जताने का खुलापन भी लोगों को अजीब लगता है जैसे कि कपल्स हाथ पकड़ कर चल रहे हैं या सार्वजनिक तौर पर किस कर रहे हैं. वहीं, कई बार इसका उल्टा भी होता है जिसमें विदेशियों को लग सकता है कि किसी देश के लोग सार्वजनिक तौर पर प्यार जताने में असहज महसूस कर रहे हैं.
इसके साथ ही आपको अपने यहां के माहौल की तुलना में महिला और पुरुष के बीच संबंध कम या ज्यादा फॉर्मल लग सकता है. ऐसा आपको पुरुष-पुरुष और महिला-महिला के बीच संबंधों में भी लग सकता है. ये सारी चीजें कई बार लोगों को असहज स्थितियों में डाल देती हैं.
कल्चर शॉक के लक्षण
कल्चर शॉक एक बहुत ही सामान्य चीज है. अलग-अलग लोगों में इसके अलग-अलग लक्षण हो सकते हैं. हालांकि, मुख्य तौर पर उन्हें ऐसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है:
- घर के अंदर ही रहना
- असहाय महसूस करना
- अलग-थलग महसूस करना
- भ्रमित होना
- एकाग्रता खो देना
- चिड़चिड़ापन होना
- उदास रहना
- नींद और खाने से जुड़ी समस्या का सामना करना
कल्चर शॉक के चार स्टेज
कल्चर शॉक के चार स्टेज होते हैं. पहला स्टेज हनीमून फेज होता है जिसमें शुरुआत में लोग नए माहौल में जाकर रोचक अनुभव ले रहे होते हैं. हालांकि, नए माहौल में इंजॉय का माहौल खत्म होने के बाद फ्रस्टेशन का स्टेज शुरू हो जाता है.
फ्रस्टेशन स्टेज पूरा होने के बाद कल्चर में एडजस्ट नहीं होने के बावजूद भी लोग वहां एडजस्ट करने लगते हैं और लोगों से घुलने-मिलने लगते हैं. यह एडाप्टेशन स्टेज होता है. वहीं, जब काफी लंबे समय या हमेशा के लिए वहां रहना होता है जब लोग चौथे एक्सेप्टेंस स्टेज पर आ जाते हैं और नए माहौल में पूरी तरह से खुद को ढाल लेते हैं. इस स्टेज में उनका आत्मविश्वास और सेंस ऑफ ह्यूमर भी लौट आता है.
कल्चर शॉक से उबरने के लिए अपनाएं ये तरीके
कल्चर शॉक नए माहौल से जुड़ा होता है इसलिए हमेशा ही इससे उबरने में समय लगता है. इससे उबरने के लिए सबसे पहले तो धैर्य रखना होता है और अपनी आदतों में बदलाव लाना होता है.
- खुला दिमाग रखें और कल्चरल डिफरेंस का कारण समझने की कोशिश करें.
- हर समय ही नए माहौल की तुलना अपने घर या उसके आस-पास की जगहों से करने बचें.
- नए कल्चर के बारे में कुछ लिखना शुरू कर दें और कोशिश करें कि उसमें पॉजिटिव चीजें भी शामिल हों.
- खुद को अलग-थलग या घर में कैद ना रखें. एक्टिव रहें और लोगों से मिलना-जुलना जारी रखें. यह आपको नए कल्चर में एडजस्ट करने में सबसे अधिक मददगार साबित होता है.
आपके लिए कल्चर शॉक अच्छा क्यों है?
वास्तव में निगेटिव नजर आने वाला कल्चर शॉक उतना बुरा नहीं होता है. इसका कारण है कि कल्चर शॉक आपको नया नजरिया देता है और दुनिया में रहने वाले दूसरे लोगों से जुड़ने और उन्हें समझने का मौका मिलता है.
- कल्चर शॉक से उबरने के कारण आप मजबूत बनाते हैं.
- आपका सामाजिक दायरा बढ़ाता है.
- नया कल्चर, नई भाषा, नया रहन-सहन या नया खान-पान सीखकर आप स्मार्ट बनते हैं.
- आप नई चीजों को अपनाने की कोशिश करने के लिए तैयार हो जाते हैं.
Edited by Vishal Jaiswal