RBI दो फेज में जारी करेगा 8-8 हजार करोड़ रुपये के सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने हाल ही में कहा कि पहला सरकारी हरित बॉन्ड (Sovereign Green Bond) दो चरणों में जारी किया जाएगा. पच्चीस जनवरी और नौ फरवरी को जारी होने वाले ये बॉन्ड 8,000-8,000 करोड़ रुपये के होंगे.
आरबीआई ने एक बयान में कहा कि इस निर्गम से मिली राशि को सार्वजनिक क्षेत्र की ऐसी परियोजनाओं में लगाया जाएगा, जो कार्बन उत्सर्जन कम करने में मदद करती हैं.
गौरतलब है कि आम बजट 2022-23 में घोषणा की गई थी कि भारत सरकार अपने समग्र बाजार कर्ज के तहत हरित बुनियादी ढांचे के लिए संसाधन जुटाने को हरित बॉन्ड जारी करेगी.
बयान में कहा गया, ”इसके तहत 29 सितंबर 2022 को वित्त वर्ष 2022-23 की दूसरी छमाही के लिए विपणन योग्य दिनांकित प्रतिभूतियों के अर्धवार्षिक निर्गम कैलेंडर में यह अधिसूचित किया गया था कि 16,000 करोड़ रुपये की कुल राशि के लिए सरकारी हरित बॉन्ड जारी किए जाएंगे.”
बयान के मुताबिक, ”भारत सरकार ने नौ नवंबर 2022 को सरकारी हरित बॉन्ड का मसौदा जारी किया.” ये हरित बॉन्ड पांच साल और 10 साल की अवधि में उपलब्ध होंगे.
क्या होता है सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड?
ग्रीन बॉन्ड दरअसल ऐसे वित्तीय प्रपत्र हैं जो पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ और जलवायु के अनुकूल परियोजनाओं में निवेश के लिए धनराशि सृजित करते हैं. पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ परियोजनाओं में ग्रीन बॉन्डों का झुकाव होने को देखते हुए नियमित बॉन्डों की तुलना में हरित बॉन्डों की पूंजी की लागत अपेक्षाकृत कम होती है और इसके मद्देनजर बॉन्ड जारी करने की प्रक्रिया से जुड़ी विश्वसनीयता एवं प्रतिबद्धता अत्यंत आवश्यक होती है.
उपर्युक्त संदर्भ में ही भारत के पहले सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड की रूपरेखा तैयार की गई थी और इस रूपरेखा के प्रावधानों के अनुसार सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड जारी करने पर लिए गए महत्वपूर्ण निर्णयों का अनुमोदन करने के लिए हरित वित्त कार्यकारी समिति (Green Finance Working Committee - GFWC) का गठन किया गया था.
भारत में ग्रीन बॉन्ड से जुड़ा फ्रेमवर्क 9 नवंबर को पेश किया गया. इन बॉन्ड के माध्यम से पैसा जुटाने के डेढ़ महीने बाद सरकार ने इसकी घोषणा की. इस फ्रेमवर्क को लाने की एक बड़ी वजह यह भी है कि सरकार अब क्लाइमेट एक्शन के लिए विदेशों से भी संसाधन जुटाना चाहती है. अब तक ये संसाधन मोटे तौर पर घरेलू स्तर पर जुटाए जा रहे थे. फ्रेमवर्क के तहत बॉन्ड जारी करने से सार्वजनिक क्षेत्र की परियोजनाओं के लिए संभावित निवेशकों से फंड जुटाने में मदद मिलेगी. इससे कार्बन उत्सर्जन की तीव्रता कम करने में मदद मिलेगी. इस पैमाने के आधार पर ही यह मापा जाता है कि प्रति यूनिट बिजली उत्पादन में कितनी ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन होता है.