प्रकाशन की वजह से पाठकों से अधिक हो चुकी है लेखकों की संख्या!
आज के दौर में जब लोग सुनने से ज़्यादा बोलना पसंद करते हैं, यह हैरानी की बात है कि लेखकों की संख्या पाठकों की तुलना में अधिक है. हो सकता है कि यह शाब्दिक अर्थ में सच न हो लेकिन प्रकाशन आसान होने की वजह से आज ऐसा हो रहा है.
लेखक वर्ग के बीच एक सवाल काफी प्रमुखता से चर्चा का विषय बना रहा है, वो है क्या लेखकों की संख्या पाठकों से अधिक हो चुकी है?
सबसे पहली बार मेरे मन में यह विचार कुछ साल पहले आया जब रस्किन बॉन्ड ने इस पर अपनी राय दी. उन्होंने कहा था कि एक दिन भारत में लेखकों की संख्या पाठकों की तुलना में अधिक होगी और उन्हें ये खतरे की तरह दिख रहा था.
हर किसी के पास एक कहानी ज़रूर होती है और वे इसे लिखकर बताना चाहते हैं. अब सवाल यह है कि क्या हर कोई इस कहानी को सुनना चाहता है?
आज के दौर में जब लोग सुनने से ज़्यादा बोलना पसंद करते हैं, यह हैरानी की बात है कि लेखकों की संख्या पाठकों की तुलना में अधिक है. हो सकता है कि यह शाब्दिक अर्थ में सच न हो लेकिन प्रकाशन आसान होने की वजह से आज ऐसा हो रहा है.
संभवतया इसका एक कारण यह है कि आज के दौर में इंटरनेट और ऐसे प्लेटफॉर्म्स तेज़ी से लोकप्रिय हो रहे हैं, जहां अपने विचारों को लिखना आसान हो गया है.
इन प्लेटफॉर्म्स पर लोग अपने विचारों को छोटे-बड़े कंटेंट के रूप में व्यक्त कर सकते हैं, जिसके चलते प्रकाशन उद्योग का लोकतांत्रीकरण हो रहा है और इस परिवेश में सुधार आ रहा है.
आप इंटरनेट पर हर छोटी से छोटी जानकारी पा सकते हैं जैसे ईयररिंग्स कैसे पहनें, बाईक कैसे चलाएं, किताब कैसे लिखें और प्रकाशित करें; स्वाभाविक है कि लेखक आसानी से लेखन और प्रकाशन के हर कदम के बारे में जान सकते हैं..
मेरा मानना है कि प्रकाशन की दुनिया आज बहादुर हो गई है, बहादुर इसलिए क्योंकि पढ़ने की आदत लगभग लुप्त होती जा रही है.
इसका कारण सिर्फ यही नहीं कि ओटीटी कंटेंट और डिजिटल मोड्स के साथ एंटरटेनमेन्ट के विकल्प आसानी से उपलब्ध हैं, बल्कि यह भी है कि लेखन की आपूर्ति बढ़ रही है और मांग कम होती जा रही है.
पढ़ने की आदत कम होने का एक कारण यह भी है कि आज लोगों के पास समय की कमी है या आसानी से समझे जा सकने वाला कंटेंट उपलब्ध नहीं है.
बहुत से लोग लेखक बनना चाहते हैं किंतु इनमें से बहुत कम ऐसे लोग होंगे जिन्होंने कुछ पुस्तकें पढ़ीं होंगी, और जो पुस्तकें पढ़ी होंगी वे निश्चित रूप से सबसे लोकप्रिय पुस्तकें हीं होंगी.
अब मुद्दा यह नहीं कि लोग पढ़ते नहीं हैं, वास्तव में आज के दौर में हम सभी पहले से कहीं अधिक पढ़ते हैं. हम टेक्स्ट, चैट, पोस्ट, मेल, सोशल मीडिया का कंटेंट बहुत ज़्यादा पढ़ते हैं, लेकिन हम पुस्तकें नहीं पढ़ते हैं.
एक अध्ययन के अनुसार, औसतन लोग रोज़ाना 16 मिनट के लिए पुस्तकें पढ़ते हैं, वहीं ऑनलाईन कंटेंट को पढ़ने के लिए तकरीबन 3 घंटे दिए जाते हैं.
आज के दौर में पुस्तकों के लिए पाठक का ध्यान आकर्षित करना मुश्किल है, क्योंकि पुस्तक को डिजिटल मटीरियल से प्रतिस्पर्धा करनी होती हैं.
ऐसे में बेस्टसेलर पुस्तकें ही पाठकों को लुभा पाती हैं और नतीजतन लाखों पुस्तकें गुमनामी की दुनिया में खो जाती हैं और गोदामों में पड़ी सड़ती रहती हैं.
बात बिल्कुल सरल है, ज़्यादातर लोग लोकप्रिय किताबें ही खरीदते हैं. वे नए लेखकों के बारे में जानना ही नहीं चाहते, जिसके चलते लोकप्रिय पुस्तकें और भी लोकप्रिय होती चली जाती हैं. हालांकि इसका एक और पहलू भी है.
कभी-कभी पुस्तकें इतनी जल्दबाज़ी में प्रकाशित की जाती हैं कि वे एमज़ॉन पर आंकड़ा बन जाती हैं, और संभवतया इनमें छिपी कला के बजाए इनके आंकड़ें सदियों तक पाठकों के दिमाग में बस जाते हैं.
यह बात थोड़ी हैरान करने वाली है, क्योंकि कभी-कभी गुणवत्ता पूर्ण चीज़ें भी तेज़ आवाज़ से दब जाती हैं. कुछ लेखकों की प्रेरणादायी कहानियां लोगों को विश्वास दिलाती हैं कि प्रकाशन का चमत्कार उनके लिए भी सच हो सकता है कि एक दिन उनकी आवाज़ को भी सुना जाएगा और लाखों लोग उनके द्वारा लिखे गए कार्य को पढ़ेंगे.
बुक क्लब्स उनकी पुस्तक को पढ़ने की सलाह देंगे और उनके काम का अनुवाद किया जाएगा. इसके लिए, मुझे लगता है कि लेखकों में अपने काम को लेकर आत्मविश्वास होना चाहिए, जिसे वे दुनिया के सामने प्रस्तुत करने जा रहे हैं.
एक ज़िम्मेदार लेखक अपने दिल और आत्मा से लिखता है; गहन रिसर्च के बाद पूरी तरह से सोच-समझ कर अपने विचारों को कागज़ पर उतारता है और इसी के जरिए मांग-आपूर्ति गुणवत्ता-मात्रा की समस्या को दूर किया जा सकता है.
हो सकता है कि अपने विचारों को व्यक्त करने से पहले हम कुछ ज़्यादा सुनना चाहते हैं, कुछ ज़्यादा पढ़ना चाहते हैं, समझना चाहते हैं और फिर असीमित अभिव्यक्तियों की दुनिया में खो जाना चाहते हैं.
(आशीशा चक्रवर्ती एक PM युवा ऑथर और राइट इंडिया की विजेता हैं. आलेख में व्यक्त विचार लेखिका के हैं. YourStory का उनसे सहमत होना अनिवार्य नहीं है.)
Edited by Upasana