खोजी महिलाएं : एक औरत ने बनाया औरतों की जिंदगी आसान बनाने वाला पहला डिश वॉशर
जोसेफीन की बनाई पहली कंपनी आज व्हर्लपूल कॉरपोरेशन का हिस्सा है.
जब हम दुनिया की महान वैज्ञानिक खोजों, आविष्कारों के बारे में पढ़ते हैं तो 100 में से 99 बार वैज्ञानिक कोई पुरुष होता है. बचपन में स्कूल किताबों में भी हमेशा पुरुषों के नाम का ही जिक्र होता था, जिसे पढ़कर नन्ही बच्चियों को भी लगता कि मानो ये दुनिया सिर्फ पुरुषों ने ही बनाई है. जीत के सारे सेहरे सिर्फ उनके सिर बंधे हैं.
जबकि सच तो ये है कि ये बात बिलकुल सच नहीं. इतिहास में ऐसी अनगिनत महिलाएं हुईं, जिनका वैज्ञानिकों खोजों में, आविष्कारों में बड़ा योगदान रहा. मानवता आज जिनकी ऋणी है. ये बात अलग है कि उनकी कहानियां हमने किताबों में नहीं पढ़ीं. न बहुत बार उनका जिक्र किया गया. आपको शायद यह जानकर आश्चर्य भी न हो कि कितनी महिलाओं को तो उनकी वैज्ञानिक खोज और उपलब्धि का श्रेय भी उनके जीवन काल में नहीं मिला.
इस सीरीज में हम आपको ऐसी ही खोजी महिलाओं की कहानी सुनाते हैं. आज कहानी जोसेफिन गैरिस कॉचरेन की.
औरतों को बर्तन धोने के झंझट से मुक्ति कैसे मिलेगी?
डिशवॉशर दुनिया के उन चंद शुरुआती आविष्कारों में से एक है, जिसने औरतों की जिंदगी आसान बनाने का काम किया. पहले घंटों एक-एक बर्तन को घिस-घिसकर साफ करना पड़ता था. फिर एक मशीन बाजार में आई, जिसमें बर्तन डालो, पानी का कनेक्शन जोड़ो और वो खुद ब खुद सारे बर्तन चमका देती थी.
पता है इस मशीन को बनाने वाला कौन था ? बनाने वाला नहीं, बल्कि बनाने वाली थी. एक महिला, जिसका नाम था जोसेफिन गैरिस कॉचरेन. 1886 में पहली बार यह मशीन बनकर तैयार हुई और जोसेफिन को इसका पेटेंट मिल गया. उसके बाद तो डिसवॉशर ने एक लंबा सफर तय किया है, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि उस लंबे सफर का पहला कदम एक महिला ने रखा था, जिसे इतिहास ने जोसेफिन के नाम से जाना.
सवाल करने वाली एक जिज्ञासु लड़की
अमेरिका के ओहायो का एक छोटा सा कस्बा ऐष्टाबुला. 1808 में बसे इस कस्बे में उस वक्त मुश्किल से पांच हजार लोग रहते थे. यहीं 8 मार्च, 1839 को जोसेफीन का जन्म हुआ. उनके पिता जॉन गैरिस एक सिविल इंजीनियर थे और मां इरेन हाउस वाइफ.
जोसेफीन की मां इरेन उस जमाने में ऐसे घर में पली-बढ़ी थीं, जहां विज्ञान और दर्शन की बहुत कद्र थी. नाना का अपने समय और स्थानीय समाज में बड़ा आदर था. लोग उन्हें गुरु की तरह देखते और जीवन के मुश्किलों में उनसे सलाह लेने आते.
इरेन पर इस माहौल का गहरा प्रभाव था और यह प्रभाव इरेन की बेटियों पर भी पड़ा. जोसेफीन शुरू से ही जिज्ञासु और विद्रोही, दोनों थी. हमेशा नई जिज्ञासाओं से भरी हुई, आंख मूंदकर आदेश मानने की बजाय तर्क करने और यह सवाल करने वाली कि यह काम उसे क्यों करना चाहिए.
नन्ही जोसेफीन से कुछ करवाना इतना मुश्किल भी नहीं था, अगर आपके पास उसे करने का वाजिब तर्क और कारण हो.

19 साल की उम्र में विलियम कॉचरेन से विवाह
जोसेफीन 19 साल की थीं, जब 13 अक्तूबर, 1858 को उनकी शादी विलियम कॉचरेन से हुई. विलियम भी कम जिज्ञासु और खोजी किस्म के इंसान नहीं थे. शायद यही वजह थी कि जब जोसेफीन की बहन के घर विलियम की उनसे पहली मुलाकात हुई तो वह इस सुंदर और बुद्धिमान स्त्री के प्रति आकर्षित होने से खुद को रोक नहीं पाए. 1848 में कैलिफोर्निया गोल्ड रश में वह अपनी किस्मत आजमा चुके थे और अब एक सफल व्यापारी और डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता थे. जोसेफीन और विलियम के दो बच्चे हुए- हैली और कैथरीन.
जब कौंधा डिश वॉशर बनाने का विचार
यह 1870 का वाकया है, जब उनका परिवार शिकागो जाकर रहने लगा था. एक दिन घर पर कुछ दोस्तों का डिनर था. रात में जल्दबाजी में बर्तन धोने के चक्कर में काफी प्लेटें गिरकर टूट गईं. जोसेफीन को लगा कि कोई तो तरीका होगा, जो इस काम को आसान बना सके.
हालांकि जोसेफीन एक समृद्ध परिवार से थीं और उन्हें खुद घर के काम नहीं करने होते थे, लेकिन फिर भी उन्हें अंदाजा था कि औरतों का कितना सारा वक्त और ऊर्जा इन घरेलू कामों में खर्च होते हैं. उन्हें लगा कि अगर बर्तन धोने का काम कोई मशीन करने लगे तो औरतों को इस श्रम से निजात मिल जाएगी.
बस वहीं से जोसेफीन के दिमाग में डिशवॉशर बनाने का आइडिया आया.
मशीन की शुरुआती डिजाइन
जोसेफीन के दिमाग में शुरुआती ख्याल ये था कि अगर वे एक ऐसा बड़ा सा बॉक्स बना सकें, जिसमें अलग-अलग तरह के बर्तन रखने के लिए खाने हों और जिसमें चारों ओर से पानी की तेज धार छोड़ी जा सके तो बर्तन अपने आप धुल जाएंगे. लेकिन ये होगा कैसे ?
जोसेफीन ने मशीन के डिजाइन पर काम करना शुरू किया. लेकिन तभी एक त्रासदी ने उसे घेर लिया. उसी दौरान जोसेफीन के पति की मृत्यु हो गई. परिवार आर्थिक परेशानियों में घिर गया. लेकिन जोसेफीन ने हार नहीं मानी और उस मशीन के आइडिया पर काम करती रही.
इस तरह बनकर तैयार हुआ पहला डिश वॉशर
आखिरकार उसने एक ऐसा मॉडल तैयार कर लिया, जिसमें एक साथ ढेर सारे हर आकार के बर्तन फिट हो सकते थे. मशीन के खाने लोहे के तार से बनाए गए थे. मशीन में चारों ओर पानी के जेट लगे हुए थे, जिससे पानी की तेज धार भीतर जाती थी. उसमें एक तांबे का बॉयलर था, जो मोटर से चलता था. मशीन के अंदर एक पहिया भी था, जो गोल-गोल घूमता था.
मशीन में एक जगह साबुन डालना होता था और बर्तन रखकर, मशीन को पाइप लाइन से कनेक्ट करके मोटर ऑन करनी होती थी. मशीन के भीतर लगा पहिया घूमने लगता, जेट पाइप से पानी निकलकर बर्तनों पर गिरता और बर्तन अपने आप धुल जाते.

पहला पेटेंट और मैन्युफैक्चरिंग कंपनी
1886 में जोसेफीन ने अपने डिजाइन को पेटेंट कराया. उस मशीन को ‘कॉचरेन डिशवॉशर’ नाम दिया गया. शुरुआती कुछ मशीनें उन्होंने अपने परिवार और दोस्तों के लिए बनाई. मशीन जब थोड़ी पॉपुलर हो गई तो उन्होंने स्थानीय अखबार में उसका विज्ञापन दिया और मशीन की एक मैन्युफैक्चरिंग यूनिट भी शुरू की.
जोसेफीन ने अपनी एक वॉशिंग मशीन मैन्युफैक्चरिंग कंपनी खोली, जिसका नाम था क्रिसेंट वाशिंग मशीन कंपनी. देखते-देखते यह मशीन काफी पॉपुलर हो गई. होटल और रेस्तरां वालों की इस मशीन में खास दिलचस्पी थी क्योंकि यह उनके मैनुअल लेबर को आसान कर रहा था. मैक्सिको से लेकर अलास्का तक जोसेफीन की कंपनी की मशीनें सप्लाय की जाती थीं.
जोसेफीन की कंपनी आज व्हर्लपूल का हिस्सा
लेकिन इस मशीन को बनाने के पीछे जोसेफीन का जो मकसद था कि घरेलू औरतों के काम को आसान किया जा सके, वह अभी तक पूरा नहीं हो पाया था क्योंकि मैन्युफैक्चरिंग कॉस्ट ज्यादा होने के कारण मशीन काफी महंगी थी. 70 से 100 डॉलर में बिकने वाली इस मशीन को गृहणियां अफोर्ड नहीं कर सकती थीं.
हालांकि दो दशक बाद ऐसा हुआ कि ऐसी ही मशीनें सस्ते दामों में बाजार में आ गईं, लेकिन जोसेफीन वह दिन देखने के लिए दुनिया में नहीं थीं.
1913 में 74 साल की उम्र में जोसेफीन की मृत्यु हो गई. उनकी मृत्यु के बाद उनकी कंपनी को एक दूसरी कंपनी KitchenAid ने खरीद लिया. यह KitchenAid कंपनी आज व्हर्लपूल कॉरपोरेशन (Whirlpool Corporation) का हिस्सा है, जो डिश वॉशर बनाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है.