मीनोपॉज से गुजर रही हर 10 में से 4 औरत ऑफिस में परेशान, लेकिन इस बारे में नहीं करती बात: स्टडी
मीनोपॉज के दौर से गुजर रही कामकाजी औरतों का यह सर्वे कह रहा है कि हर 10 में से 4 महिला की नौकरी और काम मीनोपॉज के कारण बिगड़ती सेहत से प्रभावित होता है, लेकिन वो इस बारे में कभी बात नहीं करतीं.
अमेरिका के टेक्सस से यह एक सर्वे रिपोर्ट आई है. 6 जून को जारी इस रिपोर्ट का नाम है- “विमेन इन द वर्कप्लेस” (Women in the Workplace). Biote का यह सर्वे उन प्रोफेशनल महिलाओं के बारे में है, जो मीनोपॉज से गुजर रही हैं. एक रिसर्च फर्म के द्वारा करवाए गए Biote के इस सर्वे से सामने आईं चार प्रमुख बातें इस प्रकार हैं-
- प्रत्येक 10 में से चार महिलाओं का कहना है कि मीनोपॉज के लक्षणों और उससे जुड़ी हेल्थ संबंधी परेशानियों का नकारात्मक असर ऑफिस में उनके काम पर पड़ता है.
- प्रत्येक 10 में से दो औरतों ने कहा कि मीनोपॉज की वजह से उनकी कॅरियर ग्रोथ, प्रमोशन और सैलरी पर नकारात्मक असर पड़ा है.
- प्रत्येक 10 में से 6 औरतों ने कहा कि उन्होंने ऑफिस में इस बारे में कभी बात नहीं की.
- 57 फीसदी औरतों ने कहा कि वो उस कंपनी में काम करने को वरीयता देंगी, जो जीवन के इस बेहद प्राकृतिक और अनिवार्य बदलाव से गुजर रही महिलाओं के प्रति संवेदनशील और सहयोगपूर्ण है. कंपनी के पास इस बात को लेकर स्पष्ट पॉलिसी है.
अमेरिकन कांग्रेस ऑफ ऑब्सटेट्रिशियन एंड गायनिकॉलजिस्ट (The American Congress of Obstetricians and Gynecologists) की रिपोर्ट कहती है कि अमेरिका में प्रतिदिन छह हजार महिलाएं यानि साल में तकरीबन 20 लाख महिलाएं मीनोपॉज की स्टेज पर पहुंचती हैं.
45 से 64 आयु वर्ष की तकरीबन 2.7 करोड़ कामकाजी महिलाएं प्रतिवर्ष मीनोपॉज संबंधी समस्याओं का सामना करती हैं और इसका असर उनके काम पर पड़ता है.
इन आंकड़ों और सर्वे को पढ़कर किसी को ऐसा लग सकता है कि ये तो अमेरिका की बात है. फिर हम इसे लेकर क्यों परेशान हों.
इसका जवाब ये है कि औरतों की यह परेशानी भारत में भी उतनी ही सच्ची और गंभीर है. ये बात अलग है कि भारत में इसे लेकर कोई अध्ययन, स्टडी, सर्वे या रिपोर्ट मौजूद नहीं है.
महिलाओं की सेहत हमारी प्राथमिकता नहीं
अपोलो हॉस्पिटल, अहमदाबाद में चीफ गायनिकॉलजिस्ट 76 वर्ष की डॉ. शीरू जमींदार कहती हैं, “अगर आप भारत में मीनोपॉज से गुजर रही औरतों के बारे में कोई डेटा, अध्ययन या सर्वे ढूंढ रहे हैं तो वो आपको नहीं मिलेगा. मैं पिछले 53 सालों से प्रैक्टिस कर रही हूं और मुझे आज तक ऐसी कोई इंडियन स्टडी नहीं मिली. स्टडी करना और आंकड़े जुटाना मेहनत का काम है. यह खास तरह की गंभीरता, जिम्मेदारी और कमिटमेंट की मांग करता है. और बतौर डॉक्टर मैं आपको दावे के साथ कह सकती हूं कि एक समाज और संस्कृति के रूप में भी महिलाओं का स्वास्थ्य, उनकी परेशानियां और चुनौतियां हमारी प्राथमिकताओं में कहीं नहीं है.”
अपोलो दिल्ली में सीनियर स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. पुनीत बेदी भी इसी बात की तसदीक करते हैं. वे कहते हैं, “हमारे यहां इस तरह का कोई सर्वे या स्टडी नहीं है, जो मीनोपॉज और उससे जुड़ी हेल्थ समस्याओं के बारे में डीटेल अध्ययन हो.”
जब मीनोपॉज की वजह से छोड़नी पड़ी नौकरी
56 साल की नमिता हालदार पेशे पत्रकार हैं और कोलकाता में रहती हैं. देश के बड़े मीडिया संस्थानों में जिम्मेदार आधिकारिक पदों पर काम करने और 33 साल लंबे कॅरियर के बाद उन्होंने नौकरी उस समय छोड़ी, जब वह कॅरियर के पीक पर थीं. मीनोपॉज के लक्षण तकरीबन डेढ़ साल से दिख रहे थे, जिसमें तीन-तीन महीने तक पीरियड न होने से लेकर लगातार 15-20 दिनों तक ब्लीडिंग होते रहने जैसे लक्षण शामिल थे. लेकिन अचानक ऐसा हुआ कि उन्हें तेज माइग्रेन रहने लगा. एक बार माइग्रेन का दर्द शुरू होता तो 3-4 दिनों तक बना रहता. काम करना उनके लिए मुश्किल ही नहीं, असंभव हो गया था.
नमिता कहती हैं, “दरअसल जब इसकी शुरुआत हुई थी, तभी मुझे अपनी सेहत को लेकर गंभीर हो जाना चाहिए था. लेकिन काम का दबाव, कॅरियर में पिछड़ जाने की चिंता और मर्द सहकर्मियों के व्यंग्य और मजाक का पात्र न बनने के डर से मैं खुद को पुश करती रही. 50 पार करने के बाद मैं फाइनली उस जगह पहुंची थी, जहां मेरे मर्द सहकर्मी 15 साल पहले पहुंच चुके थे. मेरे लिए मीनोपॉज से ज्यादा जरूरी था खुद को साबित करना.”
मीनोपॉज क्या है ?
मीनोपॉज उस अवस्था को कहते हैं, जब महिलाओं का मेन्स्ट्रुअल सायकल यानि मासिक चक्र बंद हो जाता है, जिसे आम बोलचाल की भाषा में पीरियड कहते हैं. 10 से 14 वर्ष की उम्र में लड़कियों के मेन्स्ट्रुअल सायकल की शुरुआत होती है और 50 से 60 वर्ष के बीच कभी भी मीनोपॉज हो सकता है.
मीनोपॉज का औरतों की सेहत पर क्या असर पड़ता है
मीनोपॉज रातोंरात नहीं होता और कई बार यह दो साल से लेकर 8 साल तक का समय ले सकता है. मीनोपॉज की शुरुआत होने पर मासिक चक्र प्रभावित होने लगता है. डॉ. शीरू जमींदार कहती हैं, “कई बार महीनों पीरियड न होने से लेकर लगातार एकाध महीने तक ब्लीडिंग होने जैसे लक्षण प्रकट हो सकते हैं. साथ ही हॉर्मोन्स में आ रहे बदलाव की वजह से बाल गिरना, पेट के निचले हिस्से में वजन बढ़ना, इंसोम्निया (नींद न आना), एंग्जायटी, हायपरटेंशन, मूडस्विंग, चिड़चिड़ाहट जैसे लक्षण प्रकट हो सकते हैं. इसके अलावा माइग्रेन, हाथ-पैर में सूजन, पेट में सूजन जैसे लक्षण भी हो सकते हैं.”
डॉ. जमींदार कहती हैं कि आप इसे इस तरह समझें कि पीरियड एक तरह का सुरक्षा कवच है, जो महिलाओं को बहुत सारी बीमारियों से बचा रहा होता है. पीरियड खत्म होने का अर्थ है उस सुरक्षा कवच का हट जाना. मीनोपॉज के बाद महिलाएं अन्य बीमारियों प्रति भी ज्यादा प्रोन हो जाती हैं. इसलिए मीनोपॉज के समय सेहत को गंभीरता से लेना बहुत जरूरी है.
Biote का सर्वे कहता है कि मीनोपॉज से गुजर रही औरतें अपने ऑफिस में इस बारे में बात नहीं करतीं. नमिता कहती हैं, “बात न करने का अर्थ है कि आप उस परेशानी को अकेले ही झेलेंगी. आपको कोई मदद नहीं मिलेगी.”
वो आगे कहती हैं, “जिस सर्वे की आप बात कर रही हैं, वो अमेरिका में हुआ है. ऐसा नहीं कि पेट्रीआर्की और औरतों को लेकर पूर्वाग्रह वहां नहीं है. फिर भी मैं अपने निजी अनुभव से बता सकती हूं कि वहां स्थितियां यहां से बहुत बेहतर हैं. आप कल्पना भी नहीं कर सकती कि भारत में मर्द औरतों के पीरियड, प्रेग्नेंसी और मीनोपॉज को लेकर किस तरह के पूर्वाग्रह रखते हैं. एडिट मीट में अगर किसी औरत की आवाज तेज भी हो जाए तो यही कमेंट आता था कि ‘मस्ट बी इन पीरियड.’”
डॉ. बेदी कहते हैं, “आप उस अमेरिकन स्टडी की बातों को भारत के सदंर्भ में भी देख सकते हैं और वह उतनी ही सच होगी. या शायद उससे भी ज्यादा. वहां अगर 10 में से 5 औरतें बात नहीं कर रही तो भारत में शायद 10 में से 9 औरतें इस बारे में बात नहीं करती होंगी. हाथ में डेटा नहीं है, लेकिन मैं बतौर गायनिकॉलजिस्ट मैं 40 साल के अपने अनुभव से यह बात कह सकता हूं.”