एक प्रोडक्ट ने बदल दी इस शख्स की जिंदगी, अब कमाते हैं करीब $500 मीलियन सालाना
स्टार्टअप शुरू करने वालों के लिए प्रेरणा है $500 मीलियन सालाना कमाने वाला ये शख्स...
कोई भी काम शुरू करने से पहले उद्यमी एक सपना देखता है कि वह इसे सफलता की ऊंचाइयों तक ले जाएगा। हालांकि बहुत कम ऐसे होते हैं जो सफलता के इस मुकाम को हासिल कर पाते हैं, लेकिन बात अगर एडवेंट नेट के संस्थापक एवं मुख्य कार्याधिकारी श्रीधर वेम्बू के बारे में की जाये तो ये मुश्किल काम भी मुमकिन है...
ZOHO कॉर्प बिजली की रफ्तार से बढ़ रहा है। अब ये संगठन एक लाख से अधिक भुगतान वाले व्यवसायों और 18 लाख व्यक्तिगत उपभोक्ताओं के साथ 500 करोड़ डॉलर के राजस्व के करीब है।
किसान फसल बोता है तो उसे उम्मीद होती है कि अच्छी पैदावार हासिल करेगा। लेकिन फसल के बोने से लेकर काटने के बीच में तमाम ऐसी बाधाएं आती हैं जिनसे किसान को निपटना होता है। इस दौरान कई बार ऐसा होता है कि फसल बर्बाद हो जाती है तो कई बार उम्मीदों के मुताबिक या उम्मीदों से ज्यादा पैदावार हो जाती है। ठीक इसी प्रकार एक उद्यमी और उसके उद्यम के बीच का चक्र चलता है। कोई उद्यम शुरू करने से पहले उद्यमी एक सपना देखता है कि वह इसे सफलता की ऊंचाइयों तक ले जाएगा। हालांकि बहुत कम ऐसे होते हैं जो उस मुकाम को हासिल कर पाते हैं जिसका उन्होंने कभी सपना देखा होता है।
इनमें से कुछ ऐसे होते हैं जो अविश्वसनीय प्रदर्शन कर अपना अलग मुकाम हासिल कर लेते हैं। आज हम जिस शख्स की बात कर रहे हैं उसने उद्यम की दुनिया में अलग मुकाम हासिल किया है। जी हां, ये शख्स कोई और नहीं बल्कि एडवेंट नेट के संस्थापक एवं मुख्य कार्याधिकारी श्रीधर वेम्बू हैं। इन्होंने बिना किसी पूंजी निवेश के बिलियन डॉलर कंपनी का गठन किया है। एडवेंट नेट की आज का मौजूदा प्रोफिट करीब $500 मीलियन सालाना का है। सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री में एक क्रांतिकारी कदम उठाते हुए एडवेंट नेट ने प्रोडक्टिविटी सुइट शुरू किया जिसका नाम ZOHO है। भारतीय कारोबारियों के बीच नई प्रौद्योगिकी की बढ़ती स्वीकार्यता के बीच घरेलू क्लाउड आधारित बिजनेस ऑपरेटिंग सिस्टम ZOHO देश में माइक्रोसॉफ्ट और गूगल को टक्कर दे रहा है। ZOHO कॉर्प बिजली की रफ्तार से बढ़ रहा है। अब ये संगठन एक लाख से अधिक भुगतान वाले व्यवसायों और 18 लाख व्यक्तिगत उपभोक्ताओं के साथ 500 करोड़ डॉलर के राजस्व के करीब है। अब ZOHO तीन साल में दस लाख उद्यमों को साइन करने की योजना बना रहा है। और ये सबकुछ मुमकिन हो पाया है ZOHO कॉर्प के संस्थापक श्रीधर वेम्बू और उनकी टीम के कारण।
श्रीधर की स्टार्टअप उद्योग में बड़ी फैन-फालोइंग रही है। श्रीधर से जुड़ी दिलचस्प कहानियों में से एक यह है कि डोमेन नाम 'ZOHO' मूल रूप से अमेरिका स्थित हॉस्पिटालिटी स्टार्टअप से जुड़ा था जिसने 1999 में 53 मिलियन डॉलर जुटाए थे। लेकिन दुर्भाग्य से फेरी-टेल की कहानी इस होटल एग्रीगेटर के लिए एक दुःस्वप्न साबित हुई और जो 2000-01 में इसका विघटन हो गया। हालांकि श्रीधर और उनकी टीम को ये डोमेन नाम पसंद आया। वर्ष 2004 में श्रीधर के लिए डोमेन की लागत 5000 डॉलर थी। ये उनकी टीम का अब तक लिया गया सबसे अच्छा फैसला निकला। उन्होंने मूल कंपनी एडवेंट नेट टेक्नोलॉजीज के लिए ऑफिस उत्पादों के एक सूइट को लॉन्च करने के लिए डोमेन का इस्तेमाल किया। जिसके बाद श्रीधर ने 2010 तक ZOHO कॉर्प के रूप में कंपनी को पुन: ब्रांडेड किया। जिसके आगे का अपने आप में इतिहास है।
श्रीधर वेम्बू की कंपनी अब सबसे तेजी से बढ़ती कंपनियों में से एक है। जो पूरी तरह से तैयार है और इसका सॉफ्टवेयर हर संगठन के लिए व्यवसायिक चालक होगा। इसके नेटवर्क में स्मार्ट कार्यालय या स्मार्ट फैक्ट्रियों में रखे ZOHO का मानना है कि ये आईटी व्यवसायों को हमेशा के लिए बदल देगा। वर्तमान में, ZOHO 100 से अधिक विभिन्न विचारों के साथ प्रयोग कर रहा है और चार उत्पादकता टूल - ZOHO लेखक, ऐप-क्रिएटर, नोटबुक और गेम्सस्कोप।
श्रीधर का मानना है कि "आसानी से परिनियोजन योग्य आईटी एक भविष्य है।" आईटी दिग्गज होने के नाते श्रीधर का मानना है कि बी 2 बी व्यवसाय में स्टार्टअप को किसी भी फंडिंग के बिना व्यवसाय के निर्माण पर ध्यान देना चाहिए और उन्हें ग्राहकों को उन सेवाओं के लिए भुगतान करना सीखना चाहिए जिन्हें वे वितरित करते हैं। श्रीधर ये भी मानते हैं कि एक बड़ी वैश्विक वित्तीय मंदी आसपास है और इससे फंडिंग जल्द ही खत्म हो जाएगी इसलिए किसी स्टार्टअप को फंडिंग के बिना व्यवसाय के निर्माण पर ध्यान देना चाहिए।
चेन्नई के एक मामूली मध्यमवर्गीय परिवार में पले-बढ़े श्रीधर वेम्बू शुरू से ही पढ़ाई में बहुत अच्छे थे। उन्होंने आईआईटी मद्रास से अपनी पढ़ाई पूरी की। हालांकि शुरुआत में उनकी इच्छा इलेक्ट्रॉनिक में पढ़ाई करने की थी लेकिन बाद में उन्होंने कंप्यूटर साइंस से पढ़ाई की। 1989 में प्रिंस्टन यूनीवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक एंजीनियरिंग में पीएचडी करने के बाद श्रीधर अपने अमेरिका में रहने वाले भाई के साथ भारत आ गए। यहां उन्होंने सॉफ्टवेयर वेंचर एडवेंट नेट शुरू किया लेकिन 150 कस्टमर बनने के बाद भी उन्हें काफी परेशानियां हो रहीं थी जिसके बाद उन्होंने कुछ बड़ा करने की ठानी और नतीजा ZOHO के रूप में निकला।
श्रीधर एक बड़ा ही दिलचस्प किस्सा सुनाते हैं। वे कहते हैं कि एक बार अमेरिका के जाने माने सेल्सफोर्स के फाउंडर मार्क बेनिऑफ ने उन्हें धमका कर ZOHO को खरीदने की कोशिश की लेकिन वे सफल नहीं हो पाए। श्रीधर बताते हैं कि मार्क ने उनसे कहा था कि 'गूगल एक दानव है और इसके साथ आप मुकाबला नहीं कर सकते।' हालांकि श्रीधर ने इसका जवाब बेहद शांत तरीके से दिया। उन्होंने कहा कि 'उसे गूगल से डरने की जरूरत है, मुझे तो जिंदा रहने के लिए सेल्फसोर्स से अच्छा करने की जरूरत है।'
दो बार वित्तीय मंदी झेल चुके श्रीधर किसी भी वित्तीय संकट से निपटने के लिए तैयार हैं या नहीं? इस पर वे कहते हैं कि हर बार, 2000 और 2008 में, हमारे पास नए प्रौद्योगिकी क्षेत्रों पर काम करने के लिए पर्याप्त कैश था। 2000 में, हमने दूरसंचार को हमारे प्रमुख ग्राहकों के रूप में पेश किया जब उद्योग ढह गया तो हमें अपने आंतरिक संसाधनों का उपयोग वर्टिकल में उद्यमों के लिए नई नेटवर्क प्रबंधन तकनीकों का निर्माण करना था। इसी तरह, 2008 में, बहुत सारे व्यवसाय लागत-बचत मोड में गए और हमने हमारे उत्पादों के साथ प्रयोग करना शुरू कर दिया, क्योंकि कम कीमत पर भी हमने गुणवत्ता की पेशकश की थी।
इसने उद्यमों की जरूरतों को पूरा किया, क्योंकि मालिकाना सॉफ्टवेयर एक वित्तीय संकट की स्थिति का सामना करने के लिए दुनिया भर में अपर्याप्त रहे। वे कहते हैं, "2000 में, हम अपने विकास को स्वयं वित्त पोषित करते थे। दूसरी बार - 2008 में - हमारे पास ऐसे उत्पाद थे जो बाजार द्वारा स्वीकार किए जाते थे। अब हम भविष्य के लिए तैयार हैं, जो कि मोबाइल के बारे में होने जा रहा है और आईटी आर्किटेक्चर को बदल रहा है।" वेम्बू का मानना है रि स्टार्टअप को बिना किसी फंडिंग के अपना बिजनेस करना चाहिए। अपना उदाहरण देते हुए श्रीधर कहते हैं कि मुगल माइक मोरिट्ज जैसी बड़ी कंपनियों ने उनके फर्म में निवेश करने की पेशकश की लेकिन उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया।
यही नहीं श्रीधर हायर डिग्री में विश्वास नहीं रखते। उनका मानना है कि नवयुवक जो सच में कुशल हैं उन्हें चुना जाना चाहिए। उनकी कंपनी ने आईआईटी और आईआईएम वालों को जॉब नहीं दी बल्कि नवयुवक पेशेवरों को चुना जिन्हें दूसरे लोगों ने रिजेक्ट कर दिया था। श्रीधर केवल क्षमतावान लोगों को अपने साथ जोड़ते हैं। उनके इस उद्यम ने लोगों के लिए मिसालें पेश की हैं। हालांकि आज वे जिस मुकाम पर हैं वहां पर पहुंचना हर किसी नए उद्यमी का सपना होता है। ये पूछने पर कि एक सांस्कृतिक विविध संगठन में नेतृत्व का प्रबंधन कैसे करते हैं? श्रीधर कहते हैं कि वे कंपनी के लोगों के साथ काफी घुले-मिले रहते हैं।
एक नेता के रूप में उन्हें लोगों से जुड़े रहने पर विश्वास है। वे कहते हैं कि "भारतीय संस्कृति एक तरल संस्कृति है और यह हमें बहुत बदलावों को स्वीकार करना सिखाती है। उदाहरण के लिए मैं तमिल हूं, लेकिन मैं अंग्रेजी भी बोल सकता हूं। मेरी कंपनी वैश्विक है और फिर भी मैं अपनी सांस्कृतिक जड़ों को नहीं भूल पाया हूं। मेरा कहना है कि आर्थिक विकास के लिए अंग्रेजी महत्वपूर्ण है, लेकिन हर किसी को अपने संस्कृति के बारे में सब कुछ जानना चाहिए। मैं इसे गतिशील नेतृत्व से संबंधित करता हूं क्योंकि यह मुझे सीमाओं के लोगों को समझने और स्वीकार करने में सक्षम बनाती है। इस अवधारणा को स्पष्ट करने के लिए मेरे युवा इंजीनियर्स के दस प्रतिशत बिहार से हैं और यह संख्या बढ़ रही है। अब, मैं हिंदी सीख रहा हूं क्योंकि मैं अपनी नई जॉब के साथ संवाद करने में सक्षम होना चाहता हूं। एक लीडर का टार्गेट लगातार सीखना और अलग-अलग लोगों को अपनी उम्मीदों से परेशान किए बिना समझना होता है। मुझे लगता है कि भारतीय दर्शन और वैश्विक इतिहास में वैश्विक कंपनियों को चलाने के लिए नेताओं की तैयारी के पर्याप्त उदाहरण हैं। आपके पास कई भारतीय वैश्विक सीईओ हैं।"
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