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शतरंज की पहली चैंपियन रोहिणी खाडिलकर पर देश को नाज़

शतरंज की पहली चैंपियन रोहिणी खाडिलकर पर देश को नाज़

Saturday November 10, 2018 , 5 min Read

शतरंज की दुनिया की जानी पहचानी रोहिणी खाडिलकर को तेरह साल की ही उम्र में 'वुमन इंटरनेशनल मास्टर' का खिताब मिला। सन् 1981 में एशियाई शतरंज चैम्पियन शिप जीतने वाली वह प्रथम भारतीय महिला रहीं। उन्होंने पांच बार भारतीय महिला चैंपियनशिप, दो बार एशियाई महिला चैम्पियनशिप जीती, 56 बार शतरंज में भारत का प्रतिनिधित्व किया। सन् 1980 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार से नवाजा गया।

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वर्ष 1981 में वह इंटरनेशनल मास्टर बनी और 1980 में उन्हे अर्जुन अवार्ड से नवाजा गया। तब तत्कालीन खुद प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने उन्हे शतरंज का भारतीय प्रतिनिधि घोषित करते हुए दुनिया भर में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना था।

शतरंज की दुनिया का जाना पहचाना नाम रोहिणी खाडिलकर आज की लड़कियों के लिए एक सशक्त प्रेरणा स्रोत हैं। उन्हें तेरह साल की उम्र में 'वुमन इंटरनेशनल मास्टर' होने का भी खिताब मिल चुका है। वर्ष 1976 में रोहिणी पहली भारतीय महिला चेस खिलाड़ी रहीं। उन्होंने बहुत कम उम्र में शतरंज खेलना शुरू कर दिया था। उस जमाने में इस खेल में महिलाओं का बिल्कुल भी दबदबा नहीं था। रोहिणी का जन्म 10 नवंबर 1963 को हुआ था। उनके पिता अखबार चलाते थे। उनका चेस खेलने का सफर आसान नहीं था। एक रिपोर्ट के मुताबिक रोहिणी ने कभी बताया था कि जब वे पुरुषों के खिलाफ अच्छा प्रदर्शन करती थीं तो वे उसे हराने के लिए सबकुछ किया करते थे। वे सिगरेट पीकर उनके मुंह पर धुंआ छोड़ते थे। इस तरह की हरकतें भी उन्हें खेलने से रोक नहीं पाईं। उन्होंने पांच बार भारतीय महिला चैंपियनशिप और दो बार एशियाई महिला चैम्पियनशिप जीती। इसके अलावा उन्होंने 56 बार शतरंज में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए विदेशों की यात्राएं कीं और 1980 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार से नवाजा गया।

भारतीय महिलाओं ने देश के विभिन्न क्षेत्रों इतिहास, समाजशास्त्र, साहित्य, खेल, राजनीति, पुरस्कार और सम्मान, मनोरंजन क्षेत्रों में अपने बहुमूल्य योगदान दिए हैं, मसलन- विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी पूजा काडियन वुशु, माउंट एवरेस्ट को चौथी बार फतह करने वाली पहली भारतीय महिला अंशू जामसेन्पा, एशियाई स्क्वाश चैंपियनशिप खिताब जीतने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी जोशना चिनप्पा, बीसीसीआई लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित होने वाली पहली महिला क्रिकेटर शांता रंगास्वामी, ऑस्ट्रेलिया की क्रिकेट टूर्नामेंट बिग बैश लीग में खेलने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हरमनप्रीत कौर, कॉमनवेल्थ खेलों में कुश्ती में स्वर्ण पदक जीतने वाली प्रथम भारतीय महिला पहलवान गीता फोगट, पैरालंपिक खेलों में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट दीपा मलिक, अंतर्राष्‍ट्रीय मैराथन में स्‍वर्ण पदक जीतने वाली प्रथम भारतीय महिला आशा अग्रवाल, भारत की प्रथम महिला क्रिकेट अम्‍पायर अंजली राजगोपाल, ओलम्‍पिक मुक्‍केबाजी में पदक विजेता प्रथम भारतीय महिला एम. सी. मैरी कॉम, बैडमिंटन में पदक विजेता प्रथम भारतीय महिला साइना नेहवाल, महिला वनडे क्रिकेट में 6000 रन बनाने वाली प्रथम भारतीय महिला मिताली राज के खेल में प्रथम प्रसिद्धि पाने वाली अन्य भारतीय महिला खिलाड़ी अंजू बार्बी जॉर्ज, योलांदा डिसूजा, एन. लम्सडेन, प्रीति सेन गुप्ता, डिंकी डोल्मा, कमलजीत संधु, दीपा करमाकर, मेरी लीला राव, आरती साहा गुप्ता, शिरीन खुसरो, संतोष यादव, उज्जवला पाटिल, सुमिता लाहा, बछेंद्री पाल, रज़िया शबनम, अमी घिया शाह, भाग्यश्री थिप्से, अर्चना भारत कुमार पटेल आदि। ऐसी यशस्वी महिला खिलाड़ियों पर भारत के लोगों को गर्व होता है। शतरंज में उसी तरह भारत का दुनिया में नाम किया है रोहिणी खाडिलकर ने।

उल्लेखनीय है कि भारतीय महिला शतरंज चैंपियनशिप की शुरुआत वर्ष 1974 में बेंगलोर से हुई थी लेकिन सही मायनों में उसे अपना पहला बड़ा चेहरा 1976 में मात्र 13 वर्ष की रोहनी खादिलकर के रूप में मिला उन्होने 1976 (कोट्टायम ), 1977 (हैदराबाद ), 1979 (चेन्नई ) में लगातार तीन राष्ट्रीय खिताब और 1981 (नई दिल्ली) और 1983 (कोट्टयम ) में मिलाकर कुल 5 राष्ट्रीय खिताब जीते। 1981 (हैदराबाद) और 1983 (मलेशिया) में उन्हे एशियन विजेता होने का गौरव हासिल हुआ। वर्ष 1981 में वह इंटरनेशनल मास्टर बनी और 1980 में उन्हे अर्जुन अवार्ड से नवाजा गया। तब तत्कालीन खुद प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने उन्हे शतरंज का भारतीय प्रतिनिधि घोषित करते हुए दुनिया भर में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना था। शतरंज के शुरुआती दौर में इसके स्तर और भारतीय पुरुष शतरंज के स्तर में कोई बड़ा अंतर नजर नहीं आता पर समय बीतने के साथ पुरुष शतरंज विश्वानाथन आनंद के पदार्पण से एक नए दौर में प्रवेश कर गया।

महिला शतरंज में शुरुआती दौर में खादिलकर बहनों ने एक समय तक भारतीय महिला शतरंज में अपना दबदबा रखा और उसके बाद भाग्यश्री थिप्से और अनुपमा गोखले नें शतरंज के साथ साथ देश के सर्वोच्च पुरुष्कार जैसे पद्म श्री से लेकर अर्जुन अवार्ड भी हासिल किए। फिर विजयालक्ष्मी ने पुरुष शतरंज के मुकाबलो में अपने प्रदर्शन का लोहा मनवाया। समय बीतने के साथ भारत को कोनेरु हम्पी, हारिका और तनिया जैसे खिलाड़ी तो मिले पर राष्ट्रीय चैंपियनशिप में इनकी प्रतिभागिता कम ही देखने को मिली। फिलहाल नेशनल चैंपियनशिप में दो खिलाड़ी पदमिनी राऊत और मैरी गोम्स तीन बार राष्ट्रीय खिताब जीत चुकी हैं। सबसे ज्यादा खिताब जीतने वाली पद्म श्री और अर्जुन अवार्डी अनुपमा गोखले भी भारतीय महिला शतरंज के बड़े नामों मे से एक हैं। उन्होंने वर्ष (1989, 1990, 1991, 1993, 1997) पाँच बार दुर्ग, विजयवाड़ा, मुंबई, कोझिकोड और आखिरी बार कोलकाता में यह खिताब अपने नाम किया। भारत के लिए शतरंज के प्रचार-प्रसार में बड़ी भूमिका निभाने वाली तनिया सचदेव ने वर्ष 2006 और 2007 में यह खिताब क्रमश : चेन्नई और पुणे में अपने नाम किया पर कई मौकों पर वह भी राष्ट्रीय प्रतियोगता से दूर नजर आईं।

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