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छह माह की मासूम बच्ची को लेकर ड्यूटी करने वाली कॉन्स्टेबल को मिला डीजीपी का 'इनाम'

झांसी वाली रानी के शहर में पुलिस कांस्टेबल अर्चना जयंत

छह माह की मासूम बच्ची को लेकर ड्यूटी करने वाली कॉन्स्टेबल को मिला डीजीपी का 'इनाम'

Monday October 29, 2018 , 8 min Read

झांसी वाली रानी के शहर में अर्चना जयंत जैसी पुलिस कांस्टेबल भी हैं, जो अपनी ड्यूटी के लिए इतनी प्रतिबद्ध कि छह माह की नन्ही सी जान को सामने की टेबल पर लिटाकर अपने काम में जुटी रहती हैं। इस कर्तव्यपरायणता का उन्हें इनाम भी मिला है। यूपी के डीजीपी ने उनका तबादला उनके मायके के शहर आगरा कर दिया है।

अपनी छह माह की बेटी के साथ अर्चना जयंत

अपनी छह माह की बेटी के साथ अर्चना जयंत


अर्चना ने मास्टर्स की डिग्री हासिल करने के बाद वर्ष 2016 में पुलिस की नौकरी जॉइन की थी। शादीशुदा अर्चना के दो बच्चे हैं। दस साल का बेटा कनक और छह माह की बेटी अनिका।

कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष करने वाली रानी लक्ष्मीबाई के लिए कभी लिखा था- 'खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।' झांसी, उत्तर प्रदेश का वही जिला है, जहां घुड़सवार रानी लक्ष्मीबाई ने अपने बच्चे को पीठ पर बांधकर अंग्रेजों से जांबाज टक्कर ली थी। उसी झांसी की कोतवाली में पुलिस की नौकरी करती हैं महिला कांस्टेबल अर्चना जयंत, जो अपनी कर्तव्यपरायणता के लिए सुर्खियों में हैं। अर्चना ने मास्टर्स की डिग्री हासिल करने के बाद वर्ष 2016 में पुलिस की नौकरी जॉइन की थी। शादीशुदा अर्चना के दो बच्चे हैं। दस साल का बेटा कनक और छह माह की बेटी अनिका। उनके बेटे का लालन-पालन नाना के पास आगरा में हो रहा है। यूपी के डीजीपी ने अर्चना की ड्यूटी के प्रति ईमानदारी से प्रसन्न होकर अब उनका स्थानांतरण उनके मायके के शहर आगरा कर दिया है। अर्चना के पति गुरुग्राम (हरियाणा) की एक कार फैक्ट्री में नौकरी करते हैं।

अर्चना की तुलना लक्ष्मीबाई के शौर्य और कुर्बानियों से तो नहीं की जा सकती लेकिन वह जिस तरह से अपनी ड्यूटी निभाती हैं, उसने उनकी छवि आम महिला पुलिसकर्मियों से अलग कर दी है। एक दिन अर्चना की ड्यूटी एक परीक्षा केंद्र में पुलिस भर्ती परीक्षा के लिए लगाई गई। जब वह कोतवाली से ड्यूटी पर रवाना होने वाली थीं, तभी उन्हें पता चला कि उनकी ड्यूटी परीक्षा केंद्र के बदले कोतवाली के रिसेप्शन पर लगा दी गई है। इसके बाद वह अपनी छह माह की मासूम बिटिया अनिका को लेकर रिसेप्शन पर ड्यूटी करने लगीं। अपनी नन्ही सी जान को सामने टेबल पर लिटा दिया, और खुद ड्यूटी में जुट गईं। यह ज़ज्बा कहने-सुनने में मामूली लगता है लेकिन पुलिस की नौकरी में हर पुलिस कर्मी ऐसा कहां कर पाता है।

तभी तो उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) ओपी सिंह अर्चना के बारे में ट्विट करते हैं- 'मिलिए 21वीं सदी की महिला से, यह किसी भी दायित्व को पूरे हौसले से निभा सकती है। अर्चना से बातचीत करने के बाद मैंने उनका ट्रांसफर आगरा, उनके घर के पास ही करने का आदेश जारी किया। इस मामले के बाद हमें सभी पुलिस थाने में क्रेच (माता-पिता काम पर जाते हुए जहां अपने छोटे बच्चों को कुछ समय के लिए छोड़ जाते हैं) सुविधा उपलब्ध कराने की दिशा में सोचना होगा।' इतना ही नहीं, डीआईजी सुभाष सिंह बघेल अर्चना की कर्तव्यपरायणा से अभिभूत होकर उनको एक हजार रुपए का पुरस्कार देते हैं।

देश के पुलिस महकमे में एक ओर जहां अर्चना जयंत जैसी कर्तव्यपरायण स्त्रियां हैं, वही देश में अलग-अलग राज्यों की सरकारें महिला सुरक्षा को लेकर सिर्फ बड़े-बड़े दावे करती रहती हैं। भारत में औरतों के साथ होने वाले अपराधों के आंकड़े भयानक हैं, हर साल भारत में लगभग 40 हजार तो सिर्फ रेप के मामले दर्ज किए जाते हैं, महिला पुलिसकर्मी ज्यादा संवेदनशील होती हैं। पीड़ित महिलाएं उन पर ज्यादा विश्वास करती हैं लेकिन दूसरी ओर भारतीय पुलिस फोर्स में महिला पुलिस कर्मियों की कम संख्या, औरतों के प्रति होने वाली हिंसा को रोकना और ऐसे मामले दर्ज करना एक बड़ी चुनौती है। इस स्थिति से निपटने के लिए राजस्थान के जयपुर शहर में महिला पुलिसकर्मी एक दल बनाकर सड़क पर उतरती हैं। राज्य के उदयपुर शहर में इसका पहला सफल प्रयोग हुआ।

जयपुर की कॉन्सटेबल सरोज चौधरी अपने स्कूटर से उतरती हैं और एक पार्क में औरतों के एक समूह के पास पहुंचती हैं। वह खाकी वर्दी और सफेद हेलमेट में शहर में घूम कर औरतों से बातें करती हैं। वह अपना परिचय देती हुई कहती हैं- 'आप बस एक कॉल कर सकती हैं या यहां तक की वॉट्सऐप पर मैसेज भी और हम वहां पहुंच जाएंगी। आपकी पहचान गोपनीय रहेगी, इसलिए आप शिकायत दर्ज कराने के लिए आजाद महसूस कर सकती हैं। यदि कोई आपको परेशान करता है, आप हमें बताइए।' महिलाएं, महिला पुलिसकर्मियों के इस व्यवहार से प्रभावित होती हैं।

अर्चना की कर्तव्यपरायणता के प्रति सहानुभूति जताने के साथ ही यह जानना भी जरूरी है कि महिला पुलिस की हिस्सेदारी देश में महज 7.28 फीसदी है। गृह मंत्रालय के आंकड़े के मुताबिक देश में महिला पुलिस बल की स्थिति बहुत दयनीय है। इससे देश की आम महिलाओं की सुरक्षा का सवाल भी जुड़ा है। महिला पुलिस बल की तेलंगाना में सिर्फ 2.47 फीसदी, जम्मू कश्मीर में 3.05 फीसदी भागेदारी है। ब्यूरो ऑफ़ पुलिस रिसर्च एंड डेवेलपमेंट की रिपोर्ट के मुताबिक़ देश के 25 राज्यों और केंद्र प्रशासित राज्यों में महिला पुलिस थाने खोले गए हैं लेकिन कई प्रदेशों में अब तक एक भी महिला पुलिस थाना नहीं। कई राज्यों में विशेष महिला थाने बनाने की जगह मौजूदा थानों में सिर्फ महिला हेल्प डेस्क बना दिए गये हैं।

महिला पुलिस थानों की संख्या बढ़ाने में एक बड़ा रोड़ा महिला पुलिस की कम तादाद है। भारत की पुलिस में फ़िलहाल सिर्फ़ 6.11 फ़ीसदी महिलाएं (एक लाख 20 हजार) हैं। यद्यपि केंद्र सरकार की घोषणा है कि अगले साल 2019 तक देश के पुलिस बल में 33 फ़ीसदी महिलाएं होंगी। सिर्फ हरियाणा ऐसा राज्य है, जिसके हर ज़िले में एक महिला थाना है। दूसरी तरफ देखिए कि एक ही वर्ष 2015 में देश में महिलाओं के खिलाफ 3,29,243 अपराध दर्ज हो जाते हैं। वर्ष 2016 में इसमें और इजाफा हो जाता है। यह संख्या बढ़कर 3,38,954 हो जाती है। नजीर के तौर पर देश की राजधानी दिल्ली में जून 2017 के अंत तक इस तरह के अपराध के 79 मामले दर्ज हुए, जिनमें से 35 की जांच का जिम्मा पुरुष अफसरों का रहा।

यूपी के सीनियर पुलिस अफसर राहुल श्रीवास्तव ट्वीट करते हैं- 'मिलिए, झांसी कोतवाली में तैनात मदरकॉप अर्चना से, जो मां के साथ-साथ विभाग का काम एक साथ निभा रही हैं। उन्हें मेरा सलाम।' ड्यूटी के दबाव के चलते ही अर्चना अपनी छह माह की बेटी अनिका को रोजाना अपने साथ पुलिस स्टेशन ले जाती है, क्योंकि उनके घर पर बच्चे की देखभाल करने वाला कोई नहीं है। लोग कहते हैं कि पुलिस को कमाकाजी मदर्स और उनके नवजात बच्चों को बेहतर सुविधाएं मिलनी चाहिए क्योंकि इतनी कम संख्या वाले महिला पुलिस दल की स्थितियों का ध्यान रखना भी बहुत जरूरी है।

भारत की पुलिस में राज्य स्तर पर पहली महिला की नियुक्ति वर्ष 1933 और आईपीएस स्तर पर 1972 में हुई थी। कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनीशिएटिव की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ 1981 तक महिलाएं कुल पुलिस बल का महज़ 0.4 फ़ीसदी थीं। यानि क़रीबन 34 सालों में महिला पुलिस का आंकड़ा 0.4 से 6.11 हुआ और अब पांच साल में इसे 33 फ़ीसदी करने की तैयारी है। गृह राज्य मंत्री किरन रिजिजू कहते हैं- 'केंद्र सरकार सभी केंद्र प्रशासित राज्यों के पुलिस बल में 33 फ़ीसदी महिलाओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए वचनबद्ध है।' हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान में तो पुलिस में महिलाओं की संख्या न के बराबर है। हां, बांग्लादेश में जरूर महिला पुलिस अफ़सरों का एक नेटवर्क बनाया गया है, जिसके चलते न सिर्फ़ पुलिस बल में महिलाओं की संख्या बढ़ी है बल्कि उनकी विशेष ज़रूरतों और मांगों को आवाज़ भी मिली है।

एक ओर जहां पुलिस बल में 33 फीसदी महिलाएं रखने की पैरोकारी हो रही है, दूसरी तरफ संख्या बढ़ाने की बजाय घटते हुए भी पाया गया है तो अर्चना जयंत जैसी महिला कांस्टेबल को अपना बच्चा संभालने की फुर्सत का सवाल ही नहीं उठता है। पिछले साल 5 अप्रैल 2017 को राज्य सभा में एक सवाल के जवाब में केंद्र सरकार ने बताया था कि हरियाणा में 2014 में 2,734 महिला पुलिसकर्मी थीं। 2016 में ये संख्या घटकर 2,694 रह गई। कई और राज्यों में ऐसा हुआ। 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' नारा सार्थक करने की दृष्टि से भी सारा दारोमदार सरकारों पर है कि वे पुलिस फोर्स में लैंगिक संतुलन स्थापित करे। पुलिस में महिलाओं की कम तादाद की सबसे बड़ी वजह है उन्हें पुलिस के काम के संदर्भ में पुरुषों से कम समझने वाली सोच, जिसकी वजह से उन्हें प्रमोशन पाने और बेहतर ज़िम्मेदारी वाले काम के लिए पसंद नहीं किया जाता या वो पाने के लिए पुरुषों के मुक़ाबले दोगुनी मेहनत करनी पड़ती है।

इसके अलावा महिलाओं पर घर के काम और बच्चों की ज़िम्मेदारी को ध्यान में रखते हुए शिफ़्ट सिस्टम जैसी प्रक्रिया, थानों में शौचालय जैसी बुनियादी सहूलियतों का न होना भी उन्हें पुलिस में काम करने से दूर करता है। कई महिला पुलिसकर्मी ये मानती हैं कि अलग महिला थानों की बजाय हर थाने में महिला पुलिस की मौजूदगी एक बेहतर रास्ता साबित हो सकती है। इससे महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा के प्रति सभी पुलिसकर्मियों (महिला और पुरुष) की संवेदनशीलता बढ़ाने में मदद मिलेगी।

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