तेलंगाना के 17 वर्षीय सिद्धार्थ ने बनाई रेप रोकने की डिवाइस
दिल्ली में हुए निर्भया कांड ने 17 साल के बच्चे को रेप रोकने की डिवाइस बनाने के लिए कर दिया मजबूर।
2012 में दिल्ली में हुए निर्भया कांड ने तेलंगाना के सिद्धार्थ मंडल को पूरी तरह से हिला कर रख दिया और उस कांड के कुछ सालों बाद ही सिद्धार्थ ने एक ऐसी डिवाईस बना डाली, जिससे रेप को रोका जा सकता है। सिद्धार्थ ने इंटरनेट पर काफी रिसर्च की और अपने दोस्त की मदद से ये डिवाइस तैयार की है। इस डिवाईस की मदद से चप्पल में एक ऐसा सिस्टम फिट किया जाता है, जिससे खतरे की हालत में पुलिस और घरवालों को मदद के लिए तुरंत सूचना पहुंचाई जा सकती है और सर्किट बोर्ड की मदद से डिवाईस चलते कदमों से खुद ही चार्ज हो जाती है।
लड़कियों के एक स्कूल में अपनी बात रखते हुए सिद्धार्थ मंडल, फोटो साभार: thebetterindiaa12bc34de56fgmedium"/>
जैसे ही सिद्धार्थ की मेहनत रंग लाई वह अपने आप को सुपरहीरो जैसा फील करने लगे। उन्हें लगा कि अगर यह प्रयोग कामयाब हुआ तो उनकी वजह से न जाने कितनी जिंदगियां बच जाएंगी। सिद्धार्थ की इस मेहनत और प्रयास से खुश होकर तेलंगाना के शिक्षा मंत्री कादियम श्रीहरि ने उनकी तारीफ की और एक प्रशस्ति पत्र भी दिया।
साल 2012 की बात है। देश की राजधानी दिल्ली में हुए वीभत्स निर्भया रेप कांड ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। उस घटना के बाद देश के अलग-अलग जगहों से आवाजें उठनी शुरू हुईं। हर जगह विरोध प्रदर्शन हुए और आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने की मांग उठी। उसी वक्त तेलंगाना में एक 12 साल का बच्चा सिद्धार्थ अपनी आंखों से यह सब घटते देख रहा था। वह इन विरोध प्रदर्शनों का हिस्सा बन रहा था। लगातार हो रही रेप घटनाएं उसे विचलित करने के साथ ही कुछ सोचने को मजबूर कर रही थीं। उस घटना से सिद्धार्थ इतना प्रभावित हुआ, कि रेप को रोकने के तरीके खोजने लगा। आज उसकी मेहनत रंग लाई है और उसने रेप को रोकने में सहायक होने वाली एक डिवाइस तैयार कर दी है।
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जब निर्भया कांड हुआ था तो सिद्धार्थ की मां विरोध प्रदर्शन में जाया करती थीं। सिद्धार्थ भी अपनी मां से इजाजत लेकर उन विरोध प्रदर्शन का हिस्सा बन जाया करता था। धीरे-धीरे हर हफ्ते वह इन प्रदर्शनों में जाने लगा। सिद्धार्थ ने बताया,
'विरोध प्रदर्शन का हिस्सा बनना मुझे विचलित करने के साथ ही काफी कुछ सोचने को मजबूर कर देता था। मैं सोचता था, कि अगर यही घटना मेरी मां के साथ हो जाती तो क्या होता? अगर मेरी कोई दोस्त उन दरिंदों का शिकार बन जाती तो?'
यह सब सोचने के बाद लगातार कई दिन सिद्धार्थ को नींद भी नहीं आती थी। यहां तक कि उनके गले से खाना नीचे नहीं उतरता था। इसके बाद उन्हें यह अहसास हुआ कि रेप होने के बाद समाज के लोग ही लड़की या महिला को बुरी नजर से देखने लगते हैं। जब कोर्ट ने इस मामले में अपना पहला फैसला सुनाया तो सिद्धार्थ 15 साल के हो चुके थे। उन्होंने फैसला लिया कि वह इसे रोकने के लिए कुछ तो करेंगे और लग गए अपने मिशन में।
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सिद्धार्थ ने इंटरनेट पर काफी रिसर्च की और अपने साथी अभिषेक की मदद से एक ऐसी डिवाइस तैयार की जो रेप होने से बचा सकती है। उन्होंने चप्पल में एक ऐसा सिस्टम फिट किया, जिससे अनहोनी की हालत में आने पर पुलिस और घरवालों को मदद के लिए तुरंत सूचना पहुंचाई जा सके। इसे बनाने के लिए सिद्धार्थ ने एक ऐसा सर्किट बोर्ड तैयार किया है जो चलने पर कदमों के साथ खुद ही चार्ज हो जाता है। इसे पहनने वाला जितना चलेगा यह डिवाइस उतनी ही चार्ज होती जाएगी। इसमें एक रीचार्जेबल बैटरी लगी है। हालांकि इसे बनाना इतना आसान भी नहीं था। इसमें काफी मुश्किलें आईं। सिद्धार्थ बताते हैं कि बनाने के दौरान अनगिनत समस्याएं झेलनी पड़ती थीं। कई बार तो दोस्तों ने मदद करना बंद कर दिया। प्रोटोटाइप ही 17 बार फेल हो गया। इतना ही नहीं कई बार करेंट भी झेलना पड़ा। एक बार तो उनके दोस्त अभिषेक की नाक से खून तक निकलने लगा।
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लेकिन सिद्धार्थ ने हार नहीं मानी। जितने बार उन्हें निराशा मिलती उतने बार वह अपने पसंदीदा वैज्ञानिक थॉमस एडिसन के बारे में सोचते जिन्होंने बिजली के बल्ब का अविष्कार करने में 1000 बार से ज्यादा असफलता का सामना किया था। वह लगे रहे और दो साल में एक ऐसा प्रोटोटाइप तैयार किया जो सही से काम करता है। जैसे ही सिद्धार्थ की मेहनत रंग लाई वह अपने आप को सुपरहीरो जैसा फील करने लगे। उन्हें लगा कि अगर यह प्रयोग कामयाब हुआ तो उनकी वजह से न जाने कितनी जिंदगियां बच जाएंगी। सिद्धार्थ की इस मेहनत और प्रयास से खुश होकर तेलंगाना के शिक्षा मंत्री कादियम श्रीहरि ने उनकी तारीफ की और एक प्रशस्ति पत्र भी दिया।
इस अविष्कार के साथ ही सिद्धार्थ ऐक्टिविस्ट भी बन गए। उन्होंने एक एनजीओ बनाया जिसका नाम है- कॉग्निजेंस वेलफेयर इनीशिएटिव। यह एनजीओ रेप को रोकने के लिए समाज में जागरूकता फैलाने का काम करता है। वह सरकारी स्कूलों में जाकर बच्चों को माइक्रो कंट्रोलर बनाने के बारे में बताते हैं। उनकी टीम में लगभग 30 लोग हैं। इतना ही नहीं वह सरकारी स्कूलों में गरीब बच्चों को कॉपी, कलम और किताबें बांटते हैं। इसके साथ ही उन्हें अमेरिकी ऑर्गनाइजेशन एम्पॉवर&एक्सेल के साथ काम करने का मौका मिला और अब वह इंडिया की तरफ से टीम लीडर के तौर पर काम करते हैं।
एक रेप कांड के बाद पूरे देश में भड़के गुस्से ने एक बच्चे को इतने बडे़ काम के लिए प्रेरित कर दिया। हमारे देश के किसी न किसी हिस्से में हर रोज रेप होते हैं। अगर हम उनसे थोड़ा सा भी सबक लें और लोगों को जागरूक करने का काम करें तो शायद रेप की घटनाओं में कुछ तो कमी आएगी। क्योंकि सरकारें तो सिर्फ कानून बना सकती हैं, आरोपी को सजा दिला सकती हैं लेकिन मानसिकता नहीं बदल सकतीं। इसके लिए सिद्धार्थ एक नजीर है कि हमी को आगे आना पड़ेगा तब जाकर समाज में कुछ बदलाव आ पाएगा।