पिछले 5 महीने में दिल्ली से लापता हो गए 1,500 बच्चे
लापता बच्चों में से अधिकतर गरीब वर्ग से संबंधित 6 से 15 साल के बच्चे होते हैं। संदेह जताया जाता है कि मानव तस्कर, मानव अंगों के व्यापारी और बाल मजदूरी करवाने वाले गिरोहों के सदस्य इन्हें अपना निशाना बना रहे हैं।
पिछले पांच महीनों में दिल्ली से लगभग 1,500 बच्चे लापता हो गए। इनमें से अधिकतर की उम्र छह से 15 साल के बीच है। गुमशुदा बच्चों के नए आंकड़े और भयावह हैं। आईएएनएस की रिपोर्ट के मुताबिक सड़कों पर सीसीटीवी कैमरों और दिल्ली की हाईटेक पुलिस की निगरानी के बावजूद यहां इतनी बड़ी संख्या में बच्चों का लापता होना और उनमें से अधिकतर का पता न लगा पाना दिल्ली पुलिस की कार्यक्षमता पर प्रश्रचिन्ह लगाता है।
एक अनुमान के अनुसार राजधानी दिल्ली में प्रतिदिन 20 के लगभग बच्चे लापता हो रहे हैं। इनमें से मात्र 30 प्रतिशत बच्चे ही अपने माता-पिता से मिल पाते हैं। अधिकांश बच्चे तो एक बार घर से जाने के बाद वापस नहीं लौटते और उनके माता-पिता उनका इंतजार ही करते रह जाते हैं।
देश की राजधानी होने के नाते यह उम्मीद की जाती है, कि दिल्ली भारत का सबसे सुरक्षित महानगर होगा और इसी कारण बेशक विश्व समुदाय का एक बड़ा वर्ग दिल्ली को हिंदुस्तान के दिल के रूप में देखता हो, लेकिन हकीकत ऐसी नहीं है। लगातार बढ़ रहे अपराधों, अपहरणों, बलात्कारों, लूटपाट, डकैती और हत्याओं आदि के चलते आज यह शहर खतरों का शहर बन कर रह गया है। एक अनुमान के अनुसार राजधानी दिल्ली में प्रतिदिन 20 के लगभग बच्चे लापता हो रहे हैं। इनमें से मात्र 30 प्रतिशत बच्चे ही अपने माता-पिता से मिल पाते हैं। अधिकांश बच्चे तो एक बार घर से जाने के बाद वापस नहीं लौटते और उनके माता-पिता उनका इंतजार ही करते रह जाते हैं।
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क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलेगा कि हर साल दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और अन्य राज्यों में बच्चों के लापता होने के मामलों में 15 से 18 प्रतिशत तक की वृद्धि हो रही है। इससे भी बुरी बात यह है कि घरों से लापता होने वाले हर 10 बच्चों में 6 लड़कियां होती हैं और इनकी संख्या में भी बीते 5 वर्षों से हर वर्ष लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। इसका परिणाम यह है कि आज दिल्ली महानगर चाइल्ड ट्रैफिकिंग का केंद्र बन कर रह गया है।
दिल्ली में बच्चे तस्करी और अपहरण करके दूसरे राज्यों से भी लाए और दूसरे राज्यों को भेजे भी जाते हैं। पुरानी दिल्ली और बाहरी दिल्ली के इलाके से सबसे ज्यादा बच्चे लापता होते हैं। लापता बच्चों में से अधिकतर गरीब वर्ग से संबंधित 6 से 15 साल के बच्चे होते हैं। संदेह जताया जाता है कि मानव तस्कर, मानव अंगों के व्यापारी और बाल मजदूरी करवाने वाले गिरोहों के सदस्य इन्हें अपना निशाना बना रहे हैं। मात्र पिछले 5 महीनों में ही दिल्ली में 1500 से अधिक बच्चे लापता हो चुके हैं। मानव तस्कर कुछ बच्चों को तो स्थानीय घरों या दुकानों आदि में बाल मजदूरी के लिए दलालों को सौंप देते हैं या अंग-भंग करके इन्हें भीख मांगने, बाल मजदूरी या किसी अपराधों में धकेल देते हैं। गुमशुदा बच्चियों को ज्यादातर वेश्यावृत्ति के पेशे में धकेला जाता है। इनमें से काफी बच्चियों को कम लिंगानुपात वाले गांवों में भेज कर इनसे दोगुनी-तिगुनी आयु के मर्दों से ब्याह कर दिया जाता है।
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बचपन बचाओ आंदोलन और यूनीसेफ के साथ ही बाल आयोग के आंकड़ों के मुताबिक राजधानी दिल्ली में हर छह मिनट में एक बच्चा गायब होता है। बच्चों के लापता होने के साथ ही उसके बाल मजदूर बनने की कहानी शुरू हो जाती है। हाल ही में कुछ निजी एजेंसियों ने सर्वे किया है, जिसमें दिल्ली-एनसीआर व अन्य राज्यों में करीब 15 से 18 फीसद बच्चों के लापता होने के मामलों में भी बढ़ोत्तरी हुई है। अधिकतर लापता होने वाली बच्चियां देह व्यापार में धकेल दी जाती हैं। बच्चों के गायब होने के पीछे एक प्रमुख कारण सस्ते श्रमिक उपलब्ध कराना भी है।
राजधानी दिल्ली में सुनियोजित ढंग से काम करने वाले बाल तस्करों का मासूम जिंदगियों से खिलवाड़ करने का घिनौना खेल केवल अपने देश तक ही सीमित नहीं है बल्कि ये खाड़ी के देशों में भी बंधुआ मजदूरों और यौन गुलामों के रूप में काम करवाने के लिए बच्चों को भेजते हैं।
क्राइम रिकॉर्ड ऑफिस (दिल्ली) के डीसीपी राजन भगत के अनुसार, 'क्योंकि राजधानी में दूसरे राज्यों से रोजी-रोटी कमाने के लिए बड़ी संख्या में आने वाले लोग गरीब होते हैं, इसलिए इनमें से अधिकतर लोगों के पास तो अपने बच्चों का फोटो तक नहीं होता।'
ऐसे बच्चों में से सिर्फ 60 प्रतिशत ही अपने घरों को लौटते हैं। इनमें से भी अधिकांश बच्चे पुलिस की मुस्तैदी के कारण नहीं बल्कि अपने तौर पर वापस आते हैं। साइबर टेक्नोलॉजी की मदद से लापता बच्चों का पता लगाने के मामले में दिल्ली पुलिस का रिकार्ड ज्यादा अच्छा नहीं है। बेशक हमारी सरकारें दिल्ली को वर्ल्ड क्लास की मेट्रो सिटी बताते हों, लेकिन यहां लगातार बढ़ रहे बाल और यौन अपराध, हत्या-डकैती और ऐसी ही अन्य घटनाएं हमारे शासकों के इस दावे को झुठलाती हैं और मांग करती हैं कि राजधानी को वास्तव में क्राइम रहित बनाने के लिए आपराधिक घटनाओं से मुक्ति दिलाना जरूरी है।