बंधनों को तोड़कर वरुण खुल्लर बने भारत के पहले दिव्यांग डीजे
वरुण कहते हैं कि जिस समाज में हम रहते हैं वहां लोग नए प्रयोग करने में काफी घबराते हैं और कभी रिस्क नहीं लेना चाहते, लेकिन वरुण समाज के इन नियमों को तोड़कर आगे बढ़ने वालों में से हैं...
हादसे के बाद तीन सालों तक वरुण को बिस्तर पर ही पड़े रहना पड़ा, लेकिन उनके भीतर अपने सपने को पूरा करने का जज्बा था और ढाई साल बाद उन्होंने म्यूजिक की बारीकियां सीखनी शुरू कर दीं।
वरुण ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से फॉरेन ट्रेड और इंटरनेशनल प्रैक्टिस में ग्रैजुएशन किया है और अभी मार्केटिंग एग्जिक्यूटिव के तौर पर नौकरी भी कर रहे हैं। इसके अलावा उन्होंने एमिटी यूनिवर्सिटी से मास कम्यूनिकेशन और जर्नलिज्म में मास्टर्स भी किया है।
भारत के पहले और दुनिया के दूसरे दिव्यांग डीजे 26 साल के वरुण खुल्लर डीजे आमिश के नाम से लोकप्रिय हैं। वरुण उन तमाम लोगों के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं जो अपने सपनों को किन्हीं कारणों से पूरा नहीं कर पाते हैं। दिल्ली की इंजिनियर फैमिली में पैदा हुए म्यूजिक प्रोड्यूसर और डिस्क जॉकी न केवल समाज के बने बनाए बंधनों को तोड़ रहे हैं बल्कि म्यूजिक की दुनिया में अपना मुकाम भी बना रहे हैं। वरुण बचपन से दिव्यांग नहीं थे बल्कि कुछ साल पहले हादसे में उनके पैर खराब हो गए।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए वरुण ने बताया, 'परिवार के तमाम दबाव के बावजूद मैं बचपन से ही डीजे बनना चाहता था। लेकिन परिवार वालों ने शुरू में मेरे सपने को नहीं समझा इसके लिए मैं उन्हें दोष नहीं देना चाहता। दरअसल वे चाहते थे कि मैं अपनी पढ़ाई पूरी करूं।' वरुण कहते हैं कि जिस समाज में हम रहते हैं वहां लोग नए प्रयोग करने में काफी घबराते हैं और इसीलिए कभी रिस्क नहीं लेना चाहते। लेकिन वरुण ने समाज के इन नियमों को तोड़कर आगे बढ़े। वह इस बात में यकीन रखते हैं कि अगर इंसान कुछ सोच ले तो उसे पूरा भी कर सकता है, बशर्ते कि उसमें पूरी लगन और मेहनत करने की हिम्मत भी होनी चाहिए।
वरुण कहते हैं, 'मुझे डीजे और म्यूजिक प्रॉडक्शन का काम काफी भाता है और मैं जानता हूं कि इस काम में कभी ऊबूंगा नहीं। यह मेरे पैशन है जिसे मैं जिंदगी भर करते रहना चाहता हूं।' वरुण ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से फॉरेन ट्रेड और इंटरनेशनल प्रैक्टिस में ग्रैजुएशन किया है और अभी मार्केटिंग एग्जिक्यूटिव के तौर पर नौकरी भी कर रहे हैं। इसके अलावा उन्होंने एमिटी यूनिवर्सिटी से मास कम्यूनिकेशन और जर्नलिज्म में मास्टर्स भी किया है। 2014 के पहले वे पूरी तरह से सामान्य जिंदगी जी रहे थे, लेकिन मनाली में हुए एक हादसे में उनके पैर खराब हो गए और वे व्हीलचेयर पर आ गए।
हादसे के बाद तीन सालों तक वरुण को बिस्तर पर ही रहना पड़े रहे। लेकिन उनके भीतर अपने सपने को पूरा करने का जज्बा था। ढाई साल बाद उन्होंने म्यूजिक की बारीकियां सीखनी शुरू कर दीं। वे यूट्यूब पर विडियो देखते रहे, म्यूजिक आर्टिस्टों के बारे में पढ़ते रहे। वह अपने म्यूजिक पर काफी ध्यान लगाकर काम करते रहे जो कि बहुत जल्द ही लॉन्च होने वाला है। उन्होंने लंदन के पॉइंट ब्लैक म्यूजिक स्कूल से म्यूजिक के बारे में ऑनलाइन पढ़ाई की उसके बाद आईएलएम अकैडमी गुड़गांव को जॉइन किया। वह कहते हैं, 'ज्यादातर संगीत के बारे में खुद से सीखने के बावजूद मैंने ये क्लासेज कीं क्योंकि मैं देखना चाहता था कि जो कुछ मैंने सीखा है वो सही है या नहीं। इन स्कूलों की फैकल्टी संगीत के मामले में काफी जानी-मानी है इसलिए उन्होंने मुझे सही से गाइड किया।'
हालांकि वरुम के रास्ते काफी कठिन थे क्योंकि उन्हें कई बार रिजेक्शन का सामना करना पड़ा। मुश्किलों से लड़ते-लड़ते वरुण की आंखों में आंसू आ गए, लेकिन वरुम पूरी बहादुरी से इन सबसे लड़ते रहे। दुर्घटना के बाद वे आईसीयू में भर्ती थे। वहां से बाहर निकलने के बाद जब वे डॉक्टरों से मुखातिब हुए तो उन्होंने बताया कि वे अब कभी अपने पैरों पर खड़े नहीं हो सकेंगे। उनके पिता का देहांत कुछ ही दिनों पहले हुआ था। इस हालत में अपने बेटे को देखकर उनकी मां काफी व्यथित थीं, लेकिन उन्होंने अपनी मां से बड़ी बहादुरी से कहा कि वे सब संभाल लेंगे। वरुण अंदर से टूटकर रोते थे, लेकिन उन्होंने अपनी मां के सामने बहादुरी से कहा कि वे अपने सपने को पूरा करना चाहते हैं। वह नहीं चाहते थे कि लोग उन्हें किसी भी तरह से अक्षम मानें।
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