आयकर कानून में क्या है सेक्शन 115BAC? हर करदाता के लिए जानना क्यों जरूरी
सेक्शन 115BAC को बजट 2020 में पहली बार लाया गया था और यह वित्त वर्ष 2020-21 (आकलन वर्ष 2021-22) से प्रभावी हुआ.
इस वक्त देश में दो तरह की आयकर व्यवस्थाएं (Income Tax Regime) मौजूद हैं. पुरानी आयकर व्यवस्था और नई आयकर व्यवस्था. करदाता इन दोनों व्यवस्थाओं में से चुनाव कर सकता है कि वह किस व्यवस्था के साथ जाना चाहता है. जो कर व्यवस्था करदाता चुनता है, उसी के स्लैब्स के आधार पर उस पर इनकम टैक्स देनदारी का निर्धारण होता है. बजट 2023 में घोषणा की गई कि वित्त वर्ष 2023—24 से नई आयकर व्यवस्था ही डिफॉल्टेड टैक्स व्यवस्था होगी. यानी अगर करदाता अपनी तरफ से कर व्यवस्था का चुनाव नहीं करेगा तो यह मान लिया जाएगा कि वह नई आयकर व्यवस्था के साथ जाना चाहता है.
ऐसे में नई आयकर व्यवस्था और आयकर कानून, 1961 के सेक्शन 115BAC के बारे में हर करदाता को अच्छे से पता होना चाहिए. सेक्शन 115BAC को बजट 2020 में पहली बार लाया गया था और यह वित्त वर्ष 2020-21 (आकलन वर्ष 2021-22) से प्रभावी हुआ.
आखिर क्यों लाया गया सेक्शन 115BAC
दरअसल सेक्शन 115BAC ही वह सेक्शन है, जिसे आयकर कानून में जोड़कर नई आयकर व्यवस्था को पेश किया गया. सरकार की ओर से 1 अप्रैल 2020 से नई आयकर व्यवस्था (New Income Tax Regime) प्रभावी की गई और इसे लाने का ऐलान सेक्शन 115BAC के माध्यम से बजट 2020 में किया गया था. अभी तक नई आयकर व्यवस्था वैकल्पिक है और पुरानी व्यवस्था डिफॉल्टेड टैक्स व्यवस्था है. लेकिन 1 अप्रैल 2023 से ऐसा नहीं रहेगा, जैसा कि बताया जा चुका है. इस तरह कह सकते हैं कि सेक्शन 115BAC को ही आम तौर पर नई आयकर व्यवस्था के नाम से जाना जाता है.
सेक्शन 115BAC में नई टैक्स व्यवस्था का विकल्प कौन चुन सकता है?
सेक्शन 115BAC के लिए पात्रता की स्थिति को बजट 2023 में संशोधित किया गया है. वित्त वर्ष 2023 तक, एक व्यक्ति या हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) आयकर अधिनियम के सेक्शन 115BAC के तहत नई टैक्स व्यवस्था का विकल्प चुन सकता है. अब इस एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया में विस्तार किया गया है. 1 अप्रैल 2023 से, व्यक्तियों और एचयूएफ के साथ-साथ; को-ऑपरेटिव सोसाइटी से इतर एसोसिएशन ऑफ पर्सन्स (एओपी), व्यक्तियों का निकाय और आर्टिफीशियल ज्यूडिशियल व्यक्ति भी नई टैक्स व्यवस्था का विकल्प चुन सकते हैं.
नई व्यवस्था में कुछ डिडक्शंस का ही फायदा
अगर करदाता वित्त वर्ष की शुरुआत में नई आयकर व्यवस्था के टैक्स स्लैब्स के साथ जाने का विकल्प चुनता है तो उसे आयकर रिटर्न दाखिल करते समय सेक्शन 115BAC का चयन करना होता है. इस सेक्शन के तहत आयकर की दरें, पुराने टैक्स स्लैब्स की तुलना में थोड़ी कम हैं. लेकिन नई आयकर व्यवस्था में लगभग 70 टैक्स डिडक्शंस नहीं मिलते हैं. इस व्यवस्था में आयकर कानून के चैप्टर VIA के तहत आने वाले केवल सेक्शन 80CCD (2), स्टैंडर्ड डिडक्शन और अग्निवीर कॉर्पस फंड में योगदान पर डिडक्शन का ही फायदा है. बजट 2023 में ऐलान किया गया कि अब सैलरीड क्लास और पेंशनर करदाता, वित्त वर्ष 2023-24 से नई टैक्स व्यवस्था में भी 50000 रुपये के स्टैंडर्ड डिडक्शन का फायदा ले सकेंगे.
ये हैं टैक्स स्लैब्स
बजट 2023 पेश करते हुए बजट भाषण के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने व्यक्तिगत आयकर को लेकर जो अहम घोषणाएं कीं, उनमें से एक घोषणा नई कर व्यवस्था के तहत टैक्स स्लैब्स में बदलाव की भी रही. 1 अप्रैल 2023 से शुरू होने वाले वित्त वर्ष 2023-24 से नई व्यवस्था में टैक्स स्लैब्स इस तरह होंगे...
0 से 3 लाख रुपये- निल
3 से 6 लाख रुपये- 5%
6 से 9 लाख रुपये- 10%
9 से 12 लाख रुपये- 15%
12 से 15 लाख रुपये- 20%
15 लाख से ऊपर- 30%
बजट में व्यक्तिगत आयकर से जुड़े ये ऐलान भी हुए
- नई आयकर व्यवस्था के तहत रिबेट के साथ 7 लाख रुपये तक की टैक्सेबल इनकम पर कोई टैक्स नहीं देना होगा.
- नई टैक्स व्यवस्था के तहत अब हाइएस्ट सरचार्ज रेट को 37 प्रतिशत से घटाकर 25 प्रतिशत किया गया है.
- गैर-सरकारी सैलरीड इंप्लॉइज के रिटायरमेंट के मामले में लीव इनकैशमेंट पर टैक्स एग्जेंप्शन की लिमिट को बढ़ाकर 25 लाख रुपये किया जाएगा.