युवाओं में तेजी से बढ़ रही हाथ-पैर कांपने वाली बुजुर्गों की बीमारी
आंकड़ों के अनुसार दुनियाभर में इस वक्त लगभग 70 लाख से 1 करोड़ लोग पार्किंसंस बीमारी से प्रभावित हैं। आजकल की तनाव भरी जिंदगी, अनिद्रा की वजह से कम उम्र के लोग भी इस अजीब बीमारी की चपेट में आ रहे हैं।
न्यूयार्क में हुए एक शोध रिपोर्ट के अनुसार, युवाओं में पार्किंसंस रोग तेजी से फैल रहा है जिससे इसके मनोवैज्ञानिक दुष्प्रभाव पड़ रहे हैं। सामान्य तौर पर पार्किंसन उम्रदराज लोगों की बीमारी है, जो कि अमूमन पचास की उम्र के बाद देखने को मिलती है, लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार लगभग 10 प्रतिशत युवाओं में भी अब पार्किंसंस की समस्या देखने को मिल रही है...
पार्किंसंस यानि कि हाथ-पैर कांपते रहना, शरीर जड़ हो जाना, दिमाग मद्धिम हो जाना। आमतौर पर यह बीमारी बुजुर्गों को होती है लेकिन ये मर्ज अब युवाओं में भी तेजी से बढ़ रहा है।
आंकड़ों के अनुसार दुनियाभर में इस वक्त लगभग 70 लाख से 1 करोड़ लोग पार्किंसंस बीमारी से प्रभावित हैं। आजकल की तनाव भरी जिंदगी, अनिद्रा की वजह से कम उम्र के लोग भी इस अजीब बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। इन सबके बीच अच्छी बात ये है कि इस बीमारी का इलाज संभव है।
अमेरिका में हाल ही में हुए एक शोध से पता चला है कि पार्किंसंस बीमारी का कारण बनने वाले बैक्टीरिया संभावित रूप से आंतों में रहते हैं। ब्रिटिश प्रसारण संस्था की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिकी वैज्ञानिकों द्वारा चूहों पर किए गए शोध के परिणाम वैज्ञानिक पत्रिका ‘सेल’ में प्रकाशित हुए, जिसके अनुसार विशेषज्ञों को यह बात मालूम हुई है, कि मानसिक बीमारी पार्किंसंस का कारण बनने वाले बैक्टीरिया आंतों मे फलता फूलता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस नई शोध से इस बीमारी के इलाज की ओर महत्वपूर्ण प्रगति हो सकती है और इन जीवाणुओं को नष्ट करने के लिए दवा की तैयारी के लिए मार्ग प्रशस्त हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि नए शोध से पार्किंसंस के बारे में अधिक जानने के लिए नए और रोमांचक अध्याय की वृद्धि हुई है। पार्किंसंस एक लाइलाज मानसिक बीमारी है जो मानव मस्तिष्क को प्रभावित करती है और चलने फिरने में परेशानी पैदा करती है।
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क्या होता है इस बीमारी में
2016 में आई एक रिसर्च के मुताबिक, एक जीन के कारण पार्किंसन रोग होता है। शोध के मुताबिक, टीएमईएम 230 नामक जीन में म्यूटेशन से पार्किंसन रोग होता है। इस रोग में सेंट्रल नर्वस सिस्टम में विकार पैदा होता है, जिससे व्यक्ति की शारीरिक गतिविधियां प्रभावित होती हैं। इस रोग में अक्सर झटके भी आते हैं। यानि जीन में बदलाव ही पार्किंसन रोग का मुख्य कारण है। रिसर्च के मुताबिक, यह जीन एक प्रोटीन का उत्पादन करता है, जो न्यूरॉन्स में न्यूरोट्रांसमीटर डोपेमाइन के पैकेजिंग में शामिल है। पार्किंसन रोग में डोपोमाइन का उत्पादन करने वाले न्यूरॉन्स की संख्या घट जाती है। आमतौर पर ये बीमारी 60 साल से अधिक उम्र के लोगों को अपनी चपेट में लेती है। ये बीमारी लाइलाज नहीं है इससे निपटा जा सकता है। डॉक्टर्स के मुताबिक, व्यायाम पार्किंसन बीमारी को ठीक करने में अहम भूमिका निभाता है। अगर थोड़ी एक्सरसाइज, थेरेपी और काउंसलिंग की जाए तो पार्किंसन बीमारी को मात दी जा सकती है। पार्किंसन बीमारी की वजह से शरीर में अकड़न आ जाती है। कई बार शरीर को हिलाना भी मुश्किल होता है।
मरीज का पार्किंसन रोग में हाथ-पैरों की कंपन पर कंट्रोल नहीं होता। पार्किंसन में शरीर के अन्य हिस्सों में हलचल की गति धीमी हो जाती है। इस पर हुए शोध के अनुसार सिरकैडियन रिद्म की गड़बड़ी, मोटर और सीखने की क्षमता को प्रभावित करती है। यहां पर मोटर से मतलब तंत्रिका तंत्र के उस भाग से है जो गतिविधियों के क्रियातंत्र से संबंधित होता है। इस सिरकैडियन रिद्म को आम भाषा में बायोलॉजिकल या बॉडी क्लॉक भी कहा जाता है। अमेरिका की लुईस काट्ज ऑफ मेडिसिन संस्थान से संबद्ध डोमेनिको प्रैक्टिको का कहना है कि कई अध्ययन बताते हैं कि नींद की कमी भी पार्किंसंस रोग का एक दूसरा प्रमुख कारण है, लेकिन बॉडी क्लॉक की बाधाएं पार्किंसंस रोग की शुरुआत की पहले ही जानकारी दे देती हैं, जिसके बाद इसे एक प्रमुख जोखिम माना जा सकता है।
युवाओं में पार्किंसन
वर्तमान में युवाओं में पार्किंसंस बीमारी के मामले बढ़ रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार लगभग 10 प्रतिशत युवाओं में पार्किंसंस की समस्या देखने को मिल रही है। कई युवाओं को ये 30 की उम्र में हो रहा है तो कई लोग किशोरावस्था में ही इसकी चपेट में आ रहे हैं। अधिकतर युवा इसके लक्षणों को शुरुआत में गंभीरता से नहीं लेते जिससे इसकी परेशानी बढ़ जाती है। युवाओं को जब खुद की पार्किंसन बीमारी के बारे में पता चलता है तो उन्हें लगता है कि उनकी जिंदगी खत्म हो गई है। ऐसी स्थिति में यह जरूरी हो जाता है कि लोगों को इस बीमारी की जानकारी हो और इलाज के विकल्पों के बारे में भी। इस बीमारी का निदान ढूंढ़ना काफी मुश्किल है, क्योंकि इसकी कोई भी ऐसी जांच नहीं है जो इसके कारण के बारे में बता सके। आमतौर पर डॉक्टर इसके लक्षण और रोगी की हालत देखकर इसके बारे में पता लगाते हैं।
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क्या है इलाज?
पार्किन्संस की पहचान करना आसान नहीं है। इसके लिए कोई भी प्रयोगशाला परीक्षण नहीं होते। आमतौर पर डॉक्टर इसके लक्षण और रोगी की हालत देखकर ही इस रोग के बारे में बताते हैं। न्यूरोफिजीशियन अपने पूर्व अनुभवों के आधार पर और रोगी के परिजनों से बात कर इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि व्यक्ति पार्किंसन्स से पीड़ित है या नहीं।
पार्किन्संस बीमारी का कारण अनुवांशिक भी हो सकता है। इसी तरह पर्यावरण से संबंधित कारण, उम्र बढऩा और अस्वस्थ जीवनशैली भी इस रोग को बुलावा दे सकते हैं। महिलाओं की तुलना में पुरुषों में यह बीमारी कहीं ज्यादा होती है। पार्किन्संस रोग का उपचार न्यूरो फिजीशियन करते हैं। इस रोग के विभिन्न लक्षणों के लिए विभिन्न प्रकार की दवाएं दी जाती हैं।
कुछ समय के बाद रोगी पर किसी दवा का असर नहीं भी हो सकता है। दवा के इस्तेमाल से रोगी में जो लक्षण खत्म हो जाते हैं, वे धीरे- धीरे बढ़ने लगते हैं। इस कारण कुछ रोगियों में दवा की खुराक में लगातार वृद्धि करनी पड़ सकती है।
जिन रोगियों पर दवा का असर नहीं होता है या दवा का अधिक दुष्प्रभाव होता है, उनके लिए सर्जरी उपयुक्त है। पार्किन्संस का इलाज करने के लिए डीप ब्रेन स्टीमुलेशन सबसे मुख्य सर्जरी है। इस सर्जरी से शरीर की विविध गतिविधियों से संबंधित लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। डीबीएस के तहत मस्तिष्क में गहराई में इलेक्ट्रोड के साथ बहुत बारीक तारों को प्रत्यारोपित किया जाता है।
इलेक्ट्रोड और तारों को सही जगह पर प्रत्यारोपित किया जा रहा है या नहीं, इसे सुनिश्चित करने के लिए मस्तिष्क की एमआरआई और न्यूरोफिजियोलॉजिकल मैपिंग की जाती है। इलेक्ट्रोड और तारों को एक एक्सटेंशन से जोड़ दिया जाता है। यह एक्सटेंशन कान के पीछे और गर्दन के नीचे होता है। इलेक्ट्रोड और तार एक पल्स जनरेटर से जुड़े होते हैं, जिसे सीने या पेट के क्षेत्र के आसपास त्वचा के नीचे रखा जाता है। जब डिवाइस को ऑन किया जाता है, तो इलेक्ट्रोड लक्षित क्षेत्र के लिए उच्च आवृत्ति का स्टीमुलेशन भेजता है। यह स्टीमुलेशन पार्किन्संस के लक्षणों वाले व्यक्ति के मस्तिष्क में कुछ इलेक्ट्रिक सिग्नल को परिवर्तित करता है।
-प्रज्ञा श्रीवास्तव