इंसान करना चाहे तो क्या नहीं कर सकता, ज़रूरत सिर्फ हिम्मत की होती है। उस शख्स ने अपनी कंपनी को आसमान की बुलंदियों पर पहुंचा दिया और इसके पीछे कोई जादू नहीं था, उसकी हिम्मत थी।
28 साल की उम्र में जब धीरज सी राजाराम ने म्यू सिग्मा की शुरुआत की थी तो उन्हें खुद अंदाजा नहीं रहा होगा कि वो एक क्रान्ति की इबारत लिखने जा रहे हैं और वो भी सुनहरे अक्षरों में।म्यू सिग्मा ने अभी तक काफी तारीफें जमा की हैं और खूब वाहवाही बटोरी है। लोग कहते हैं कि ये अपने क्षेत्र में सबसे बढ़िया है लेकिन धीरज ने कभी बिजनेस के बारे में सोचा तक नहीं था।वो बिजनेसमैन कैसे बन गए उन्हें खुद नहीं पता और बाकी तो सब जानते ही हैं कि ये इतिहास सुनहरे अक्षरों से लिखा हुआ है।
'कभी नहीं सोचा था बिजनेसमैन बनने के बारे में'
धीरज बताते हैं कि उन्होंने बिजनेसमैन बनने के बारे में कभी नहीं सोचा था। बकौल धीरज,"मैंने कभी कोई कंपनी शुरु करने या बिजनेस के बारे में नहीं सोचा था। मैं जो कर रहा था उसमें खुश था। बस दिमाग में कुछ चल रहा था जिसने कंपनी शुरु करने के लिए मुझे प्रेरित किया।"
अब जबकि धीरज खुश थे तो उन्होंने बिजनेस शुरु किया ही क्यों? जवाब साधारण है- वो कुछ नया और अलग करना चाहते थे जो उनके सीखने की भूख को शांत कर सके।
2004 में बहुत सारे सपनों के साथ धीरज सी राजाराम ने इस कंपनी को शुरु किया था और आज ये मल्टी मिलियन डॉलर कंपनी में बदल चुकी है। धीरज ने जब डेटा एनालिटिक्स के क्षेत्र में कदम रखा तो उनका रास्ता रोकने के लिए आईबीएम, एसेन्चर जैसे महारथी मौजूद थे पर कोई उनका रास्ता रोक नहीं पाया।
बाकी कंपनियों के पास प्रोग्रामिंग और बिजनेस एनालिसिस के लिए अलग अलग लोग थे जबकि म्यू सिग्मा ने ऐसे लोगों को मौका देने के बारे में विचार किया जो मैथमिटिशियन, प्रोफेशनल एनालिस्ट और प्रोग्रामर, तीनों के गुण रखते हों।
धीरज ने बताया,"मैंने अपनी पत्नी से कहा कि मेरे पास एक शानदार आइडिया है। मैंने उससे कहा कि हम अपना घर बेच देते हैं और पैसे को कंपनी में लगा देते हैं। उसने तुरंत हां बोल दिया। मैं चौंक गया और उससे पूछा कि वो इतनी आसानी से कैसे मान गई? उसने कहा कि जब तुम एक बार निश्चय कर चुके हो तो तुम्हारे साथ बहस करके कोई फायदा नहीं हैं।"
'प्लीज़ मेरी कंपनी में आ जाओ'
धीरज बताते हैं,"शुरुआती सालों में लोगों को हायर करना बड़ी चुनौती थी। मैं लोगों से गुजारिश करता था कि मेरी कंपनी ज्वाइन कर लो।" वो याद करते हैं कि उन दिनों को और बताते हैं कि सही लोगों को चुनना बहुत ज़रूरी है।
"जब आपको ग्राहक मिलने लगते हैं तो लोग आपकी क्षमताओं को पहचानने लगते हैं। मैं जब शिकागो के अपने दोस्तों और इंडस्ट्री के लोगों से बात करता था तो वो जानते थे कि हम क्या कर रहे हैं।"
धीरज के मुताबिक एक नई कंपनी को ज्वाइन करने के लिए दिल भी मैटर करता है। लोगों को खुद से जोड़ने के लिए काफी मेहनत करनी होती है, कई बार तो उनके परिवार से भी बात करनी पड़ती है। वे बताते हैं,"मुझे एक बात ध्यान है कि मुझे एक लड़के की मां से बात करनी पड़ी थी उन्हें ये समझाने के लिए कि उसे मेरी कंपनी क्यों ज्वाइन करनी चाहिए।"
पैसे का रखना पड़ता है ख्याल
धीरज बताते हैं,"बिजनेस में मेरा 80% पैसा लगा था, ये आसान नहीं होता क्योंकि बिजनेस में नुकसान होने का मतलब था मुझे नुकसान होना। जब बिजनेस में हमारा पैसा शामिल होता है तो हम बहुत दिल लगा कर काम करते हैं। वक्त काफी कुछ सिखाता है।"
धीरज बताते हैं,"जब हमारा खुद का पैसा दांव पर होता है तो चीजों को देखने का, समझने का तरीका बदल जाता है, हम चीजों को गंभीरता से लेने लगते हैं। हमें पता होता है कि हमारी गलती की कीमत क्या हो सकती है।"
2004 में शुरु हुई इस कंपनी में 2008 में एफटीवी वेन्चर्स ने 30 मिलियन डॉलर्स का इन्वेस्टमेंट किया। फिर 2011 में सिकोइया कैपिटल ने 25 मिलियन डॉलर्स का इनवेस्टमेंट किया। जनरल अटलांटिक और सिकोइया कैपिटल ने तीसरे राउंड में 108 मिलियन डॉलर का इनवेस्टमेंट किया।
'गलतियों पर भी दें ध्यान'
एक बड़ी कंपनी बनने की प्रक्रिया में कई मर्तबा गलतियां भी हो जाती हैं। क्या धीरज से भी कोई गलती हुई है? इस सवाल ते जवाब में धीरज कहते हैं," जब आप लोगों को अपनी टीम में चुनते हैं तो कई चीजों पर विचार करना होता है। मेरी कंपनी कभी तरक्की नहीं कर पाती अगर काबिल लोग मुझे नहीं मिलते। और जब मैं काबिल कहता हूं तो सिर्फ काम ही महत्वपूर्ण नहीं होता बल्कि इंसान का व्यक्तित्व भी महत्वपूर्ण होता है।"
"हमने जिन लोगों का चुनाव किया वे मेरे अच्छे दोस्त हैं, कुछ अभी भी हमारे साथ कंपनी का हिस्सा हैं और बहुत अच्छा काम कर रहे हैं।"
वे बताते हैं,"ये बहुत जरूरी है कि आप अपनी गलतियों को वक्त रहते पहचान लें और सुधार लें। कंपनी की शुरुआत में सही निर्णय लेने होते हैं। हमने कुछ गलत लोगों को भी मौका दे दिया था लेकिन जल्द ही हमने गलतियों को सुधार लिया। ये बहुत ज़रूरी है कि आप अपनी गलतियों को जल्द से जल्द ठीक कर लें।"
दो तरह के बिजनेसमैन
धीरज बताते हैं कि म्यू सिग्मा के इस सफर में कई बार निराशा का दौर भी आया। वे बताते हैं,"हम शुरुआत से काफी सक्सेसफुल रहे। कई बड़ी कंपनियां हमें खरीदना चाहती थीं, काफी लालच आया पर यहीं हम खुद को परखते हैं, जब मैं ये सोचता था कि बेच देने से हमारा वह आइडिया मर जाएगा जिसे लेकर हमने कंपनी शुरु की थी तो मुझे दुख होता था।"
वे बताते हैं,"एक आइडिया की कीमत मुझसे ज्यादा है, अंत में हम सिर्फ इस बहुत बड़ी दुनिया का बहुत छोटा सा हिस्सा हैं।"
"इस दुनिया में दो तरह के बिजनेसमैन होते हैं- अरेन्ज्ड मैरिज बिजनेसमैन और लव मैरिज बिजनेसमैन। अरेन्ज्ड मैरिज बिजनेसमैन वह होते हैं जो बिजनेस में ही आना चाहते थे, और ऐसे लोगों की कहानियां अधिकतर अरेन्ज मैरिज की तरह की खूबसूरत होती हैं। वहीं दूसरी ओर लव मैरिज बिजनेसमैन वह होते हैं जो अपने आइडिया को लड़की की तरह प्यार करने लगते हैं और उसी के साथ जीना चाहते हैं। मैं बिजनेसमैन बना क्योंकि मैं उसा आइडिया के साथ जीना चाहता था।"