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डॉ सोनाली ने दिखाई 6 हजार बेटियों को जीने की राह

6 हजार लड़कियों को पढ़ा-लिखा कर आत्मनिर्भर बनाने वाली महिला...

डॉ सोनाली ने दिखाई 6 हजार बेटियों को जीने की राह

Friday March 23, 2018 , 6 min Read

राज्य में गिरते जनसंख्या घनत्व और बढ़ती आपराधिक ज्यादतियों के बावजूद हरियाणा की बेटियां शिक्षा, मनोरंजन, खेल आदि विभिन्न क्षेत्रों में चौतरफा पुरुष वर्चस्व को लगातार मात दे रही हैं। ऐसी ही एक शख्सियत हैं, हरियाणा की ही बेटी डॉ. सोनाली चौधरी, जो अब तक छह हजार बेटियों को पढ़ा-लिखाकर आत्मनिर्भर बना चुकी हैं, साथ ही वह लड़कियों को स्वयं की सुरक्षा के लिए भी शिक्षित-दीक्षित करने में जुटी हैं।

डॉ. सोनाली चौधरी, फोटो साभार: सोशल मीडिया

डॉ. सोनाली चौधरी, फोटो साभार: सोशल मीडिया


लिंगानुपात की दृष्टि से एक रिपोर्ट के अनुसार हरियाणा में बेटियों की पैदाइश में गिरावट दर्ज हुई है। यद्यपि यहां के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर कहते हैं कि इतिहास में पहली बार राज्य में लिंगानुपात ने 950 का आंकड़ा छुआ है। यह अनुपात प्रति हजार लड़कों पर 950 बेटियों का हैं।

देश में हरियाणा अपने ढंग का ऐसा अलग तरह का राज्य है, जहां की शख्सियतों ने विश्व पटल पर अपने घर-परिवार ही नहीं, अपने प्रदेश का भी खूब नाम रोशन किया है। खासतौर से यहां की बेटियां आज भी देश-दुनिया में नाम कमा रही हैं, वह खेल का क्षेत्र हो, मनोरंजन का, अथवा शिक्षा का। सबको पता है कि अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला, मौजूदा विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, मिस वर्ल्ड का खिताब हासिल करने वाली मानुषी छिल्लर, रियो ओलंपिक में कांस्य पदक हासिल कर इतिहास रचने वाली साक्षी मलिक, विश्व स्वर्ण पदक विजेता फोगाट बहनें, हॉकी की गोल्डन गर्ल ममता खर्ब, बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल, अर्जुन अवॉर्डेड ममता खरब, दो बार माउंट एवरेस्ट पहुंच चुकीं संतोष यादव, अभिनेत्री जुही चावला, परिणीति चोपड़ा, मल्लिका शेरावत आदि हरियाणा की ही बेटियां हैं। आज हम बात कर रहे हैं हरियाणा की एक ऐसी बेटी डॉ. सोनाली चौधरी की, जिन्होंने दो, चार, दस नहीं बल्कि छह हजार बेटियों को पढ़ा-लिखाकर आत्मनिर्भर बनाया है। ऐसे में हमारी निगाह हरियाणा की अच्छी-खराब, दोनों तरह की पहचान पर जाती है। इनमें एक है बेटियों का जनसंख्या अनुपात और दूसरी, राज्य में उनके साथ हो रहीं वारदातों का आकड़ा। 

लिंगानुपात की दृष्टि से एक रिपोर्ट के अनुसार हरियाणा में बेटियों की पैदाइश में गिरावट दर्ज हुई है। यद्यपि यहां के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर कहते हैं कि इतिहास में पहली बार राज्य में लिंगानुपात ने 950 का आंकड़ा छुआ है। यह अनुपात प्रति हजार लड़कों पर 950 बेटियों का हैं। दूसरी तरफ राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की एक रिपोर्ट के मुताबिक हरियाणा में दुष्कर्म के दर्ज करीब एक हजार से अधिक मामलों में अठारह साल से कम आयु वर्ग की लगभग 47 फीसदी बेटियां दुराचार की जद में पाई गई हैं। हरियाणा की धाकड़ बेटियां जहां विश्व में नाम कमा रही हैं, पुरुष वर्चस्व अपनी हरकतों से आज भी अठारवीं सदी की लज्जाजनक सामंती करतूतों की यादें ताजा कर रहा है।

अब आइए, हरियाणा के कैथल शहर के प्रतिष्ठित चौधरी परिवार की बेटी डॉ. सोनाली चौधरी की बात करते हैं, जिन्होंने हजारों बेटियों का भविष्य रचा है, रचती जा रही हैं। वह कहती हैं, आज की बेटियां ही हमारे देश के आने वाले कल का हो सकती हैं। बेटा-बेटी के बीच उनके भी बचपन में भेदभाव हुआ है। उसी पीड़ा ने उन्हें भविष्य की कामयाब बेटियों की राह बनाने की दिशा में मोड़ा। कॉलेज की पढ़ाई और पीएचडी के बाद अधिवक्ता पिता कमलेश चौधरी की इकलौती संतान डॉ सोनाली चौधरी ने लड़कियों के लिए 'वूमैन्स ट्रस्ट' के माध्यम से 'उड़ान' शक्ति केंद्र पर पहली बार बेटियों का भविष्य संवारना शुरू किया। 'उड़ान' शक्ति केंद्र में ब्यूटीशियन, कंप्यूटर, सिलाई-कढ़ाई का मशीन एवं हाथ की कढ़ाई का प्रशिक्षण दिया जाता है। यहां छह माह का डिप्लोमा, एक साल की डिग्री या फिर दो साल का एडवांस कोर्स किया जा सकता है। 

महत्वपूर्ण बात ये है कि इसके लिए कोई फीस नहीं ली जाती है। डॉ चौधरी ने लगभग दो दशक पहले ही बेटियों की तकदीर संवारने को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया था। आज 'उड़ान' शक्ति केंद्र में रोजाना सैकड़ों लड़कियां मुफ्त व्यावसायिक प्रशिक्षण ले रही हैं। डॉ. चौधरी बताती हैं कि वर्ष 1998 में उन्होंने कैथल में महिला शिक्षा पर पीएचडी की थी। रिसर्च के दौरान उन्हें पता चला कि यहां मात्र 27 प्रतिशत लड़कियां ही शिक्षित हो पा रही हैं। उनमें भी अधिकतर केवल पांचवीं तक पढ़ पाती हैं। रिसर्च के बाद उन्होंने निर्णय लिया कि वे महिला शिक्षा के क्षेत्र में अवश्य कुछ बड़ा कर दिखाएंगी। वर्ष 2003 से वह बेटियों की मदद में जुट गईं। शुरुआत में उन्हें 10 हजार रुपये से पुस्तकें, वर्दियां, स्वेटर और जूते- जुराबें बांटने लगीं। कुछ समय तक यह सिलसिला चला। फिर उन्हें लगा कि यह कोई स्थायी लाभ पहुंचाने वाली योजना नहीं है। तब उन्होंने 2009 में किराए के भवन में 'उड़ान' शक्ति केंद्र की शुरुआत की। इसमें लड़कियों को मुफ्त तकनीकी शिक्षा दी जाने लगी। 

आज 'उड़ान' शक्ति केंद्र के पास खुद का चार मंजिला भवन है। इसमें बेटियां अलग-अलग शिफ्ट में प्रशिक्षण ले रही हैं। इस संस्थान से प्रशिक्षण लेकर अब तक छह हजार से अधिक बेटियां आत्मनिर्भर बन चुकी हैं। अब तो संस्थान के पास अनुभवी वैतनिक स्टॉफ भी है। इन बेटियों के लिए प्रशिक्षण के नाम पर खानापूरी नहीं की जाती है। शक्ति केंद्र अब वाई-फाई इंटरनेट सुविधा से भी लैस है। केंद्र पर लगभग दर्जन भर महिला प्रशिक्षक अत्याधुनिक मशीनों के माध्यम से बेटियों को शिक्षित कर रही हैं।

आज डा. सोनाली चौधरी के इस अनोखे प्रशिक्षण केंद्र की पूरे उत्तर भारत में चर्चा रहती है। केवल बेटियों को समर्पित रचनात्मक कौशल शुदा इस संस्थान में तरह-तरह के व्यावसायिक पाठ्यक्रमों का अध्ययन कराया जाता है। डॉ. चौधरी बताती हैं कि राज्य में बेटियों के खिलाफ अपराध बढ़ने पर भी उनकी निगाह रहती है। बेटियों को उत्पीड़न से बचाने के लिए उनके संस्थान में स्वयं की सुरक्षा के गुर सिखाए जाते हैं। वह हरियाणा की बेटियों को अधिक से अधिक वर्दी में होने का सपना भी देख रही हैं। जैसाकि गौरतलब है, अब हरियाणा के गांव-गांव में चल रहे अखाड़ों और अकादमियों में बेटियां दिग्‍गजों को धूल चटा रही हैं। गीता और बबीता फोगाट ही नहीं, सोनिका कालीरमण, किरण सिहाग, नेहा राठी ने कुश्ती विजेता के रूप में बेटियों की राह प्रशस्त की है। 

इस राह के पहले स्वप्नदर्शी रहे हैं मशहूर पद्मश्री पहलवान मास्टर चंदगीराम। वह हिसार के गांव सिसाय के थे। प्रदेश में महिला कुश्ती को बढ़ावा देने में उनकी सबसे प्रमुख भूमिका रही। उन्होंने खुद की बेटी सोनिका कालीरमण को अखाड़े में उतार दिया था। आगे चलकर वह चैंपियन महिला पहलवान बनीं। वह कई बार राष्ट्रीय चैंपियन रहीं। वही प्रथम महिला भारत केसरी रहीं और रुस्तम-ए-हिंद जैसे खिताब से उन्हें नवाजा गया। कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में उन्होंने देश का प्रतिनिधित्व किया। इसी तरह झज्‍जर के अर्जुन पुरस्कार विजेता जगरूप राठी की पुत्री नेहा अंतरराष्ट्रीय पहलवान के रूप में कॉमन वेल्थ में रजत पदक जीत चुकी हैं। 

हिसार की ही गीतिका जाखड़ एथलीट के बाद दंगल में उतर गईं और मात्र पंद्रह साल की उम्र में ही राष्ट्रीय चैंपियन बन गईं। हिसार की ही निर्मला भी अंतरराष्ट्रीय चैंपियन रहीं। इसी तरह रोहतक की पहलवान रेखा, रीतू मलिक, भिवानी की अनीता पूरे विश्व में हरियाणा का नाम रोशन करने वाली बेटियों में शुमार हैं। इस तरह हरियाणा की बेटियां शिक्षा, मनोरंजन, खेल आदि चौतरफा विभिन्न क्षेत्रों में पुरुष वर्चस्व को लगातार मात दे रही हैं।

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