‘गिफ्टेरी’, ऑनलाइन गिफ्ट भेजना का सबसे आसान तरीका...
जाह्नवी पारिख मुंबई के वीजेटीआई से इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर हैं और उन्होंने साउथ कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में एमएस भी की है। कुछ दिनों के काम के अनुभव के बाद उन्होंने INSEAD से एमबीए करने का फैसला किया। इसके बाद उन्होंने स्टार्टअप की दुनिया में कदम रखा। इस क्षेत्र में उन्होंने पहला कदम अपने सह-संस्थापक भविन बधेका के साथ उठाया और इंस्टैंट पॉडकास्ट टूल ‘ऑरालिटी’ तैयार किया। शुरुआत में कंपनी को अच्छा रेस्पॉन्स मिला और यहां तक कि ब्लूम वेंचर्स, श्रीजन कैपिटल, गूगल के राजन आनंदन समेत कई जगहों से इसमें फंडिंग भी हुई।
टीम ने कई अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों में अपना डेमो किया, लेकिन शुरुआती दौर में ही इसका विकास स्थिर हो गया। करीब एक साल तक चलाने के बाद उन्हें अपने इस प्रोडक्ट को नवंबर, 2012 में बंद कर देना पड़ा। टीम ने थोड़ा रुक कर अपनी रणनीति पर दोबारा विचार करने का फैसला किया। सह-संस्थापक धीरे-धीरे अलग हो गए और ‘ऑरालिटी’ को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी जाह्नवी ने खुद अपने कंधे पर उठाई। इसी दौरान जाह्नवी ने सोशल गिफ्टिंग पर अपनी नजरें गड़ाई और इस तरह ‘गिफ्टेरी’ की शुरुआत हुई।
गिफ्टेरी की शुरुआत सोशल गिफ्टिंग के आइडिया से हुई जहां साइट पर आने वाले यूजर्स को इसके पार्टनर ब्रांड्स के वाउचर्स अपने चाहने वालों को भेजने का मौका दिया जाता है। गिफ्टेरी साइट पर लोगों को गिफ्टेरी वाउचर्स मिलते हैं। ये अलग-अलग रकम के वाउचर्स होते हैं और वाउचर्स पाने वाले अपनी मर्जी से इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। वाउचर्स देने वाले चाहें तो इसमें अपना पर्सनल टच दे सकते हैं, लेकिन इसे खर्च करने का आखिरी फैसला इसे पाने वाला का ही होता है।
जाह्नवी के गिफ्टिंग स्पेस में प्रवेश के पीछे एक निजी वजह भी थी। वो बताती हैं, “पहले जब भी उन्हें किसी को गिफ्ट भेजना होता था, तो सबसे बड़ी दिक्कत होती थी कि आखिर उसे क्या भेजा जाए। मुझे लगता है कि गिफ्ट देने को वाउचर्स बेहद आसान बना देते हैं।” कुछ महीनों के बाद इन्हें भी समझ आने लगा कि गिफ्टिंग एक बेहद ही निजी मामला है। जाह्नवी के मुताबिक, “उदाहरण के लिए यदि कोई बच्चा मदर्स डे पर अपनी मां को कोई तोहफा देना चाहता है, तो हमारे पास इसका अनुभव है कि ऐसे मौके पर कौन सा तोहफा बेहतर होगा।”
टशकी और पॉशवाइन जैसे गिफ्टिंग स्टार्टअप्स पर भी यही बात लागू होती है, जो पूरी तरह से अनुभव पर ही निर्भर है। जाह्नवी कहती हैं कि गिफ्टेरी महीने दर महीने अच्छी गति से आगे बढ़ रही है।
जाह्नवी गिफ्टिंग स्पेस को दो वर्गों में बांटती हैं:
1) औपचारिक तोहफे – जैसे, कर्मचारियों के लिए कारपोरेट तोहफे और ऐसे दोस्त या रिश्तेदारों के लिए तोहफे जो बहुत करीब नहीं हैं। इस तरह के औपचारिक तोहफे में अब वाउचर्स या गिफ्टेरी की ओर से जारी होने वाले ओपन एंडेड वाउचर्स का चलन बढ़ने लगा है। इसकी वजह ये है कि जहां ये देने वाले के लिए बेहद आसान होता है, वहीं पाने वाले के पास अपनी पसंद की चीज खरीदने का विकल्प होता है।
2) निजी तोहफे – निजी तोहफे देने के लिए देने वाले को काफी मेहनत करनी पड़ती है और ये आमतौर पर किसी खास मौकों, मसलन, शादी, बच्चे की पैदाइश इत्यादि पर इसकी जरूरत होती है। ये अपने जीवनसाथी या फिर अपने बेहद करीबी रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए होता है। इस तरह के तोहफे देने के समय लोग अब खास तरह के सामान या बेहद ही महंगे सामान देना पसंद करते हैं।
इस क्षेत्र में कई दूसरी वेबसाइट्स भी हैं, जैसे गिवटर, गिफ्टीज, गिफ्टोलॉजी (जो अब बंद हो चुकी है) इत्यादि। वैसे तो ये काफी भीड़-भाड़ वाला सेक्टर है, लेकिन गौर से देखें तो आपको पता चलेगा कि इस क्षेत्र का अब तक उतना दोहन नहीं हुआ जितना कि होना चाहिए था। गिवटर ने शुरुआत पूरी तरह से खेल के सामान बेचने से की थी लेकिन बाद में ये रोपोसो से जुड़ गई जो कि मुख्य रूप से रिकमेंड करने वाली कंपनी है।
जाह्नवी इस क्षेत्र को लेकर काफी आशावादी हैं और वो इस बात को लेकर काफी उत्साहित रहती हैं कि आज दादा-दादी और नाना-नानी भी ऑनलाइन अपने नाती-पोतों के लिए तोहफे खरीदने लगे हैं। ये इस बात का सबूत है कि लोग ऑनलाइन खरीदारी करने में बढ़-चढ़ कर दिलचस्पी लेने लगे हैं।
गिफ्टेरी मुंबई के बाहर के चार लोगों की एक टीम है और जो अभी इस काम को तेजी से आगे बढ़ाने के उपायों को तलाश रही है। निवेशक अभी भी इनके साथ हैं और इनका समर्थन कर रहे हैं। राजन आनंदन कहते हैं, “जब आप एक अच्छे संस्थापक का समर्थन करते हैं, तो वो तेजी से बढ़ता है और एक बड़े कारोबार बनाने के रास्ते तलाश लेता है।”