गर्भवती महिला के शराब पीने से भ्रूण पर पड़ने वाले प्रभाव की पहचान करेगा ये सॉफ्टवेयर
फीटल अल्कोहॉल स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (FASDs) मां के प्रेगनेंसी के दौरान शराब का सेवन करने से होता है। प्लैसेंटा में जा कर यह शराब फीटस के ग्रोथ को कई तरीकों से नुकसान पहुंचा सकता है। सबसे ज्यादा, बच्चे का चेहरा, सिर और दिमाग पर असर होता है।
शराब-संबंधी और न्यूरोलॉजिकल विकार, जिनकी पहचान पहले काफी मुश्किल थी, उन्हें अब कम्प्यूटर के ज़रिये सिर्फ चेहरे के विश्लेषण से आसान बनाया जा सकता है।
FACE2GENE नाम के सॉफ्टवेयर के सहारे बच्चों के चेहरों की 2-डी तस्वीरें निकाली गईं और अलग-अगल एंगलों, लंबाई और चौड़ाई के हिसाब से स्टडी किया गया। यह तरीका बेहद महत्वपूर्ण साबित हुआ। नतीजे बिल्कुल डिसमोरफोलॉजिस्ट की जांच जैसे सटीक आए।
उन शराब-संबंधी और न्यूरोलॉजिकल विकार, जिनकी पहचान पहले काफी मुश्किल थी, उन्हें अब कम्प्यूटर के ज़रिये सिर्फ चेहरे के विश्लेषण से आसान बनाया जा सकता है। फीटल अल्कोहॉल स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (FASDs) मां के प्रेगनेंसी के दौरान शराब का सेवन करने से होता है। प्लैसेंटा में जा कर यह शराब फीटस के ग्रोथ को कई तरीकों से नुकसान पहुंचा सकता है। सबसे ज्यादा, बच्चे का चेहरा, सिर और दिमाग पर असर होता है। FASDs के अलावा फीटल एल्कोहॉल सिन्ड्रोम(FAS), पार्शियल फीटल एल्कोहॉल सिन्ड्रोम( pFAS) और एल्कोहॉल रिलेटेड न्यूरोलॉजिकल सिन्ड्रोम (ARNDs) के रूप में भी सामने आता है।
FAS और pFAS को पहचानने के लिये कुछ तय मापदंड हैं, जैसे चेहरे के विकार, सिर का छोटा आकार, कम ग्रोथ, न्यूरोसाइकोलॉजिकल विकार। इन सब की पहचान बिना इस बात को जाने भी हो सकती है, कि मां ने प्रेगनेंसी के दौरान शराब का सेवन किया था या नहीं। हालांकि ARNDs की पहचान करना अब भी मुश्किल है। यह पूरी तरह डॉक्टर पर निर्भर करता है कि वो कैसे इस बात की तस्दीक करें कि फीटस शराब से कितना प्रभावित है। इससे कुछ बच्चों में चेहरे पर असर दिख सकता है, पर वो बहुत कम या ना के बराबर हो सकता है।
शुरुआती पहचान के लिये, दिमागी तौर पर कमज़ोर या व्यवहार में अंतर देखने को मिल सकता है। कुछ टेस्ट भी होते हैं ARNDs की पहचान के लिये, पर उन्हें काफी भरोसेमंद नहीं पाया गया है। ARNDs को कई बार लंबे समय तक नहीं समझा जा सका है, तो मराज़ को मदद की ज़रूरत पड़ती रह जाती है, जैसे स्कूल में परेशानी, शराब का सेवन या मानसिक असंतुलन के रूप में। FAS के मुकाबले में ARND में चेहरे पर असर बहुत ही कम देखने को मिलता है। पहले चेहरे की अंतरों को समझने के लिये कमप्यूटर से किया गया विश्लेषण सिर्फ सबक्लिनिकल फीचर को ही दिखा पाते थे। साथ ही काफी महंगे 3-डी कैमरों का उपयोग भी करना पड़ता था।
इसके बाद साउथ अफ्रिका, द यूनाइटेड स्टेट्स, और इटली के 5-9 साल तक के बच्चों के अलावा FAS से पीड़ित 36 लोग, 31 PFAS के और 22 ARND के लोगों पर फीटल अल्कोहॉल सिन्ड्रोम एपिडेमियोलॉजी रिसर्च के डेटाबेस निकाले गए। FASD से पीड़ित 50 लोगों पर भी ये टेस्ट किये गए। हर प्रतिभागी को कमप्यूटर सिस्टम के हिसाब से और एक्पर्ट्स की जांच के दायरे में रखा गया, जिन्हें बच्चों के पहले के डायगनोसिस के बारे में कुछ पता नहीं था। FACE2GENE नाम के सॉफ्टवेयर के सहारे बच्चों के चेहरों की 2-डी तस्वीरें निकाली गईं और अलग-अगल एंगलों, लंबाई और चौड़ाई के हिसाब से स्टडी किया गया। यह तरीका बेहद महत्वपूर्ण साबित हुआ। नतीजे बिल्कुल डिसमोरफोलॉजिस्ट की जांच जैसे सटीक आए।
हालांकि लोगों की जांच से ज्यादा कम्प्यूटर के नतीजे सटीक मिले। यह नतीजे बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि FASDs ज्यादातर पकड़ में नहीं आते, या गलत डायगनोज़ होते हैं। ऐसे में अब अगर इस खास जांच से बिमारी जल्दी पकड़ में आ जाती हैं, तो इलाज के लिये कदम भी जल्दी उठाए जा सकेंगे। हालांकि ज्यादा परफेक्शन के लिये अभी कुछ और ट्रायल लिये जा रहे हैं ताकि सिर्फ FASDS ही नहीं और भी दूसरे जांच, न 2-डी और 3-डी कमप्यूटर के ज़रिये किया जा सकें, और बेहतर इलाज वक्त पर बच्चों को दिया जा सके।
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