पाकिस्तान के 133 हिंदू तीर्थयात्रियों ने जगन्नाथ मंदिर में किये दर्शन, 27 दिसंबर को पाकिस्तान से रवाना हुए थे
देश में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लेकर फैली अशांति के बीच पाकिस्तान से आए 133 हिंदू तीर्थयात्रियों ने शनिवार को ओडिशा के श्री जगन्नाथ मंदिर के दर्शन किए। तीर्थयात्रियों में 70 पुरुष, 50 महिलाएं और 13 बच्चे शामिल थे। उनका समूह शुक्रवार रात को यहां पहुंचा। उन्होंने श्री जगन्नाथ मंदिर में पूजा अर्चना की।
यह समूह रविवार को वाराणसी के लिए रवाना होगा। समूह के एक सदस्य ने कहा कि वे 27 दिसंबर को पाकिस्तान से रवाना हुए थे और यहां पहुंचने से पहले मथुरा गए थे।
पाकिस्तान से आए एक भक्त ने कहा,
"भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने की इच्छा लंबे समय से थी। हमें वीजा बहुत मुश्किल से मिला। हम इसके लिए भारत सरकार को धन्यवाद देते हैं।"
एक अन्य महिला तीर्थ यात्री ने कहा,
"मैंने प्रभु के सामने प्रार्थना की कि भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध सामान्य हो जाएं ताकि हमें पुरी आने और देवताओं के दर्शन करने के लिए आसानी से वीजा मिल जाए।"
सीएए में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले शरणार्थियों में मुस्लिम व यहूदियों को छोड़कर अन्य सभी को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है। इसे लेकर तमाम संगठन एतराज जताते हुए प्रदर्शन कर रहे हैं, जिनमें से कई प्रदर्शन हिंसक भी रहे हैं।
श्री जगन्नाथ मंदिर का इतिहास
पुरी का श्री जगन्नाथ मंदिर एक हिन्दू मंदिर है, जो भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण) को समर्पित है। यह भारत के ओडिशा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित है। जगन्नाथ शब्द का अर्थ जगत के स्वामी होता है। इनकी नगरी ही जगन्नाथपुरी या पुरी कहलाती है।इस मंदिर को हिन्दुओं के चार धाम में से एक गिना जाता है। यह वैष्णव सम्प्रदाय का मंदिर है, जो भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है।
इस मंदिर का वार्षिक रथ यात्रा उत्सव प्रसिद्ध है। इसमें मंदिर के तीनों मुख्य देवता, भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भ्राता बलभद्र और भगिनी सुभद्रा तीनों, तीन अलग-अलग भव्य और सुसज्जित रथों में विराजमान होकर नगर की यात्रा को निकलते हैं। श्री जगन्नथपुरी पहले नील माघव के नाम से पुजे जाते थे। जो भील सरदार विश्वासु के आराध्य देव थे।
अब से लगभग हजारों वर्ष पुर्व भील सरदार विष्वासु नील पर्वत की गुफा के अंदर नील माघव जी की पुजा किया करते थे। मध्य-काल से ही यह उत्सव अतीव हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इसके साथ ही यह उत्सव भारत के ढेरों वैष्णव कृष्ण मंदिरों में मनाया जाता है, एवं यात्रा निकाली जाती है।
यह मंदिर वैष्णव परंपराओं और संत रामानंद से जुड़ा हुआ है। यह गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय के लिये खास महत्व रखता है। इस पंथ के संस्थापक श्री चैतन्य महाप्रभु भगवान की ओर आकर्षित हुए थे और कई वर्षों तक पुरी में रहे भी थे
(Edited by रविकांत पारीक )