दृष्टिहीन छात्र ने 13 गोल्ड मेडल के साथ हासिल की रोड्स स्कॉलरशिप
अनोखी मिसाल पेश कर रहा है ये दृष्टिहीन छात्र...
कुछ लोग शारीरिक रूप से स्वस्थ्य होने के बावजूद भी जिंदगी में कुछ हासिल नहीं कर पाते, वहीं कुछ लोग इस दुनिया में ऐसे भी हैं जो बिना आंखों के बहुत कुछ हासिल कर लेते हैं। ऐसे ही एक युवा हैं राहुल बजाज। राहुल ने सभी बाधाओं को पीछे छोड़ते हुए मिसाल पेश की है। दृष्टिहीन होने बावजूद राहुल कर रहे हैं वो काम, जो अच्छे-अच्छों को लिए करना इतना भी आसान नहीं।
डॉ अंबेडकर कॉलेज, दीक्षभूमि में कानून का एक आंशिक रूप से दृष्टिहीन एलएलबी छात्र राहुल बजाज ने पिछले दिनों 'राष्ट्रसंत तुकादोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय (RTMNU)' के 105वें दीक्षांत समारोह में 13 स्वर्ण पदक सहित लगभग 20 पुरस्कार जीते।
किसी ने सच ही कहा है "मंजिलें उन्हीं को मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती है। पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है।" लोग पूरी तरह शारीरिक रूप से स्वस्थ होने के बावजूद जिंदगी में कुछ हासिल नहीं कर पाते तो कुछ लोग इस दुनिया में ऐसे भी हैं जो बिना आंखों के बहुत कुछ हासिल कर लेते हैं। लोकप्रिय विकलांगता कार्यकर्ता निक वुजिसिक ने एक बार कहा था, "जब आप अपने सपनों को छोड़ने की तरह महसूस करें तो आपको दूसरे दिन कड़ी मेहनत करनी चाहिए। एक और सप्ताह, एक वर्ष। आप आश्चर्यचकित होंगे जब आप हार नहीं मानेंगे।" आज हम आपको एक ऐसे ही छात्र के मिलवा रहे हैं जिसने सभी बाधाओं को पीछे छोड़ते हुए मिसाल पेश की है। ये छात्र है राहुल बजाज। यहां हम बजाज ग्रुप के चेयरमैन राहुल बजाज की बात नहीं कर रहे हैं बल्कि एक ऐसे छात्र की बात कर रहे हैं जो बुलंदियों को छू रहा है।
डॉ अंबेडकर कॉलेज, दीक्षभूमि में कानून का एक आंशिक रूप से दृष्टिहीन एलएलबी छात्र राहुल बजाज ने पिछले दिनों 'राष्ट्रसंत तुकादोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय (RTMNU)' के 105वें दीक्षांत समारोह में 13 स्वर्ण पदक सहित लगभग 20 पुरस्कार जीते।
सम्मानित ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से सिविल लॉ और एम. फिल की पढ़ाई करने के लिए राहुल बजाज शायद भारत के पहले विकलांग छात्र हैं, जो कि रोड्स स्कॉलरशिप के लिए चुने गये हैं। पूरे RTMNU में सभी स्ट्रीम के छात्रों को पछाड़ने वाले राहुल को एक समारोह में तमिलनाडु के गवर्नर बन्निरिलाल पुरोहित द्वारा पदक से सम्मानित किया जा चुका है। प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) से बात करते हुए उन्होंने कहा कि ये पुरस्कार उनके पाठ्यक्रम में पांच वर्षों में किए गए प्रयासों की पहचान है। राहुल के लिए मोटिवेशन किसी एक जगह से नहीं आया है। बल्कि कई ऐसे कारण हैं जो उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं।
राहुल से जब पूछा गया कि ऐसा क्या है जो उन्हें कानून में कैरियर बनाने के लिए प्रेरित करता है? तो वे कहते हैं कि तीन से चार फैक्टर हैं जो उन्हें लॉ अर्थात कानून की पढ़ाई करने के लिए प्रेरित करते हैं। राहुल कहते हैं कि सामाजिक अध्ययन और अंग्रेजी (जो कि एक वकील के लिए सेंट्रल टूल होती है) में रुचि होने के अलावा, खुद को तार्कित मानता हूं। वे तर्क देते हैं लेकिन रचनात्मक रूप से। और वह अपने दृष्टिकोण को प्रेरक तरीके से प्रस्तुत करने की क्षमता रखते हैं।
अपने फैसले को प्रभावित करने वाले एक और महत्वपूर्ण फैक्टर पर बल देते हुए राहुल कहते हैं कि, "विकलांग व्यक्ति के रूप में, मुझे लगता है कि कानून के लिए आवश्यक कौशल और अधिक व्यावहारिक होना होता है। क्योंकि यह शारीरिक या विजुअल होने के बजाय मानसिक और बौद्धिक होता है।" राहुल ने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों के साथ इंटर्नशिप की है। जिससे वे खुद को नेशनल लेवल पर प्रतियोगिता में भाग लेने योग्य बना पाए। रोड्स स्कॉलरशिप की बात करें तो ये राहुल के अब तक के जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है। क्योंकि इस स्कॉलरशिप को केवल उन छात्रों को दिया जाता है, जो अकेडमिक रूप से उत्कृष्ट होने के साथ-साथ एक संपूर्ण और अच्छी प्रोफाइल वाले होते हैं।
ऑक्सफोर्ड से पढ़ाई पूरी करने के बाद राहुल काफी काम करना चाहते हैं। वे कहते हैं कि ऑक्सफोर्ड में बीसीएल और एम. फिल को पूरा करने के बाद बौद्धिक संपदा अधिकारों और संवैधानिक कानून जैसी धाराओं पर शोध करना चाहते हैं। राहुल के लिए अब तक की यात्रा आसान नहीं रही। हालांकि इस बीच टेक्नॉलोजी ने उनकी बहुत हेल्प की है। राहुल बताते हैं कि कैसे स्क्रीन रीडर सॉफ्टवेयर ने उनकी अकेडमिक्स में उन्हें मदद की। यद्यपि उन्हें भरोसा है कि प्रौद्योगिकी पहले से कहीं अधिक, विकलांगता रखने वाले लोगों की सहायता कर रही है। लेकिन फिर भी इसे एक लंबा सफर तय है।
पीटीआई से बात करते हुए राहुल बताते हैं कि टेक्नॉलोजी ने संभावनाओं की एक नई दुनिया खोली है। राहुल कहते हैं कि अब वे इंटरनेट और पुस्तकों का उपयोग कर सकते हैं। इसी तरह, लेखकों की सेवा भी ले सकते हैं जोकि पहले समन्वय और संगतता के संबंध में भी एक चुनौती थी। कानून के छात्र राहुल इस समय दिल्ली की टॉप कानून फर्म में काम कर रहे हैं। इससे पहले उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के अधीन भी काम किया है। राहुल अपनी सफलता का श्रेय सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश यूयू ललित को भी देते हैं। जिन्होंने राहुल की काफी मदद की। वह अपने बाल रोग विशेषज्ञ पिता सुनील, मां काजल जोकि एक गृहिणी हैं और बहन जोकि एक स्त्री रोग विशेषज्ञ है, को भी अपनी सफलता का श्रेय देती हैं।
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