महिला क्रिकेट की मिरकल मिताली राज, बल्ले से जिनके रन नहीं रिकॉर्ड बोलते हैं.
आलसीपन और सुस्त-मिज़ाज को दूर भगाने पिता ने थमाया था बल्ला...पहले नृत्यांगना बनना चाहती थीं मिताली, लेकिन एक बार जब क्रिकेट से मोहब्बत हुई तो सब भूल गयीं...क्रिकेट को ही अपना जीवन और जीवन को ही क्रिकेट माना है मिताली ने...कप्तान ने माना कि महिला क्रिकेट में भी होती है राजनीति और इसका शिकार हुई हैं कई खिलाड़ी..खुद को इतना मजबूत कर लिया है कि मिताली अब आलोचना और राजनीति से बिलकुल नहीं घबरातीं..
उस लड़की के पिता वायु-सेना में काम कर चुके थे। अनुशासन घर का स्वाभाविक अंग था। और जब अनुशासन घर का स्वाभाविक और अभिन्न अंग था तो फिर घर के लोगों का इससे इतर जाने का कोई मतलब भी नहीं था। लड़की की माँ और उसका भाई भी अनुशासन-बद्ध थे। लेकिन, लड़की घर में सबके विपरीत थी। वो सुस्त और आलसी थी। स्कूल की पहली घंटी का समय साढ़े आठ बजे का होता तो लड़की आठ बजे उठती थी। यानी घर में सबसे देर से।जब पिता अपनी बेटी के आलसीपन और सुस्त-मिज़ाज से तंग आ गए तब उन्होंने एक फैसला लिया। पिता ने अपनी बेटी को क्रिकेटर बनाने की ठानी। वे उसे क्रिकेट अकादमी ले जाने लगे। इस क्रिकेट अकादमी में लड़की का भाई रोज़ प्रैक्टिस किया करता था। भाई स्कूल-स्तर के क्रिकेट टूर्नामेंट भी खेलता था। शुरू में तो लड़की ने क्रिकेट अकादमी जाकर अपने स्कूल का "होम-वर्क" किया, लेकिन पिता के कहने पर अपने भाई की देखा-देखी क्रिकेट का बल्ला भी थाम लिया और नेट्स पर प्रैक्टिस शुरू की । अब हर रोज़ पिता अपनी स्कूटर पर बेटा और बेटी को क्रिकेट अकादमी ले जाते। भाई की तरह ही बहन भी नेट्स पर खूब पसीना बहाने लगी। फिर धीरे-धीरे मेहनत रंग लाने लगी। क्रिकेट लड़की का पहला प्यार बन गया। और, लड़की ने भी कुछ इस तरह क्रिकेट से मोहब्बत की कि क्रिकेट को ही अपना जीवन और जीवन को ही क्रिकेट मान लिया। चूँकि मेहनत और लगन थी, साथ में काबिलियत भी, लड़की क्रिकेट के मैदान पर अपना अलग रंग जमाने लगी। उसने ऐसा रंग जमाया कि कई लोग उसके दीवाने हो गए। अपनी प्रतिभा और मेहनत के बल पर इस लड़की ने मैदान पर कई रिकॉर्ड अपने नाम किये। अपने देश को कई ऐतिहासिक जीत दिलवाई। अपने देश में महिला क्रिकेट को लोकप्रिय बनाया। इनकी काबिलियत और कामयाबियों की वजह से दुनिया में इन्हें "महिला क्रिकेट का तेंदुलकर" कहा जाने लगा। हमने यहां जिस लड़की की बात कही है वे भारतीय महिला क्रिकेट की "सुपरस्टार खिलाड़ी" मिताली राज हैं।
भरतनाट्यम डांसर से क्रिकेटर बनने का सफर
मिताली राज न सिर्फ भारत की अब तक की सबसे कामयाब महिला क्रिकेटर हैं बल्कि उनकी गिनती दुनिया के श्रेष्ठ बल्लेबाज़ों में होती है।मिताली से जुडी एक और दिलचस्प कहानी है। बचपन में क्रिकेट का बल्ला थामने से पहले मिताली 'भरतनाट्यम' सीख रही थीं। वो नृत्यांगना बनना चाहती थीं। देश-विदेश में अलग-अलग जगह अपनी नृत्य-कला का प्रदर्शन कर लोगों को अपना दीवाना बनाना चाहतीं थीं।मिताली ने छोटी उम्र से ही स्टेज पर डांस-परफॉरमेंस देने शुरू कर दिए थे। मंच पर उनका नृत्य बहुत आकर्षक होता। लय में और वो भी शास्त्रीय पद्धति में मंच पर मिताली नृत्य करतीं तो सभी दर्शकों का मन जीत लेतीं। लेकिन जब से मिताली ने क्रिकेट का बल्ला थामा तब से वे धीरे-धीरे नृत्य से दूर होने लगीं। लेकिन, किसी तरह समय निकालकर वे नृत्य का अभ्यास कर लेतीं। मगर, जब वे क्रिकेट टूर्नामेंट खेलने लगीं और उन्हें यात्राएं करनी पड़ीं, वो भी लम्बी, तब नृत्य का अभ्यास लगभग न के बराबर हो गया। मिताली का नृत्य अभ्यास छूटता देखकर एक दिन उनकी गुरु ने उनके सामने एक बड़ा प्रश्न खड़ा कर दिया। गुरु ने मिताली से क्रिकेट या फिर नृत्य दोनों में से एक को चुनने को कहा। काफी सोचने के बाद मिताली ने नृत्य-कला और मंच को छोड़कर क्रिकेट और मैदान को ही अपनी ज़िंदगी बनाने का फैसला किया। उस फैसले वाली घड़ी को याद करते हुए मिताली कहती हैं,
"फैसला कठिन था, लेकिन मैं क्रिकेट से इस तरह जुड़ चुकी थी कि क्रिकेट को छोड़कर कुछ और करना मेरे बस के बाहर की बात हो गयी थी।"
ये पूछे जाने पर कि अगर वो क्रिकेटर न होतीं तो क्या नृत्यांगना ही होतीं, मिताली ने कहा,
"बिलकुल सही। मैं क्रिकेट न खेल रही होती तो मंच पर नृत्य ही कर होती। मैं डांसर ही होती। जब मैंने नृत्य के बजाय क्रिकेट को चुना तब मैं अपने 'अरमग्रेटम'(शास्त्रीय नृत्य के औपचारिक प्रशिक्षण की समाप्ति के बाद मंच पर किया जाने वाल नृत्य-प्रदर्शन) से सिर्फ दो चरण दूर थी।"
भले ही मिताली नृत्यांगना न बन पाई हों ,लेकिन वे अपनी शानदार बल्लेबाज़ी से क्रिकेट के मैदान पर गेंदबाज़ों और फील्डर्स को खूब नाच नाचती आ रही हैं।
उपलब्धियों का श्रेय डैड को
क्रिकेट के मैदान पर मिताली की उपलब्धियां कुछ इतनी बड़ी हैं कि भारत की कोई दूसरी महिला क्रिकेटर उनकी बराबरी करती भी नहीं दिखाई देती । एक महत्वपूर्ण बात ये भी है कि मिताली आज भी अपनी कामयाबी का श्रेय अपने पिता दोरई राज को ही देती हैं। मिताली के मुताबिक, उनके पिता चाहते थे कि वे काफी कम उम्र में ही भारतीय महिला क्रिकेट टीम में अपनी जगह बना लें। मिताली को क्रिकेटर बनाने के लिए पिता ने काफी मेहनत की थी। पिता और बेटी की साँझा मेहनत का ही नतीजा था कि मिताली जब सिर्फ 14 साल की थीं, उन्हें भारतीय टीम के लिए "स्टैंडबाई" खिलाड़ी बन दिया गया था । 16 साल की उम्र में ही मिताली ने अपना पहला अंतर्राष्ट्रीय मैच खेला। 26 जून, 1999 को मिल्टन कीनेस के कैम्पबेल पार्क में खेले गए इस मैच में मिताली राज ने रेशमा गांधी के साथ पारी की शुरुआत की थी। इस मैच में मिताली ने नाबाद 114 रन बनाए। रेशमा ने भी 104 रन की शानदार शतकीय पारी खेली। भारतीय टीम ये मैच 161 रन से जीत गयी। और इस मैच से भारत को एक नया सितारा खिलाड़ी मिल गया। आगे चलकर मिताली महिला क्रिकेट के वन-डे फॉर्मेट में 5000 रन बनाने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। अब तक सिर्फ दो ही खिलाड़ी महिला वन -डे क्रिकेट में पांच हज़ार से ज्यादा रन बना पायी हैं। मिताली ने अपना पहला टेस्ट मैच 2002 में खेला। 14 से 17 जनवरी के बीच लखनऊ में खेले गए इस मैच में मिताली शून्य पर आउट हो गयीं। लेकिन आगे चलकर वो महिला टेस्ट क्रिकेट में दोहरा शतक लगाने वाली पहली क्रिकेटर बनीं। ऐसे एक नहीं बल्कि कई रिकार्ड मिताली के नाम हैं।
महिला क्रिकेट और सच्चाई
ऐसा भी बिलकुल नहीं है कि मिताली राज का सफर एक दम आसान, चिंता-रहित और तनाव-मुक्त रहा है। मिताली ने जब क्रिकेट खेलना शुरू किया था उन दिनों बहुत ही कम लोग जानते थे कि महिलाएँ भी क्रिकेट खेलतीं हैं। एक और जहाँ देश में क्रिकेट की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही थी, क्रिकेट का जादू लोगों के सर चढ़कर बोल रहा था, कई लोगों ने तो क्रिकेट को ही अपना धर्म मान लिया वहीं दूसरी और कई सारे लोग ऐसे भी थे जिनके लिए ये यकीन करना मुश्किल था कि महिलाएँ भी क्रिकेट खेलती हैं। और महिलाओं और पुरुषों का खेल बिलकुल एक जैसा है। नियम सारे एक हैं। मैदान वहीं हैं। वही चुनौतियां हैं और वही तगड़ी गला-काट प्रतिस्पर्धा। मिताली बताती हैं कि जब उन्होंने भारतीय टीम में जगह बनाई तब भी उन्हें खुद ये पता नहीं था कि भारत की बड़ी महिला क्रिकेटर कौन हैं? वो कैसी दिखती हैं ?कैसा खेलती हैं। उनके नाम क्या-क्या रिकार्ड हैं। सीनियर टीम में जगह मिलने के बाद ही मिताली को उस समय की महान महिला क्रिकेटरों - शांता रंगास्वामी, डायना एडुलजी के बारे में जानने का मौका मिला। ये वही समय था जब भारत में लगभग हर घर में लगभग सभी लोग भारतीय पुरुष क्रिकेट टीम के हर नए-पुराने खिलाड़ी के बारे में जानते थे। मिताली ने बताया कि उन दिनों महिला क्रिकेट को उतना प्रोत्साहन भी नहीं मिलता था जितना अब मिल रहा है। उन दिनों जब क्रिकेटर ट्रेन में सफर करते थे तो लोग इन खिलाडियों के बड़े किट बैग देखकर उनसे पूँछते थे कि क्या वे हॉकी खेलने जा रही हैं ? जब इन लोगों को जवाब मिलता कि वे क्रिकेटर हैं और क्रिकेट खेलने जा रही हैं तो लोग आश्चर्यचकित रह जाते। इतना ही नहीं लोग महिला क्रिकेटरों से अजीब-अजीब सवाल पूछते थे , मसलन - क्या लडकियां भी क्रिकेट खेलती हैं ? क्या महिलाएं टेनिस बॉल से क्रिकेट खेलती हैं ? महिलाओं के लिए क्या नियम अलग हैं ?
मिताली को अब भी वो दिन अच्छी तरह से याद हैं जब वो लड़कों के साथ प्रैक्टिस करने जातीं तो लड़के काफ़ी कठोर और मन को चुभने वाली टिप्पणियां करते। लड़के अक्सर कहते, "अरे ! लड़की है धीरे से गेंद फ़ेंक वरना उसे चोट लग जाएगी।" ऐसी विपरीत और कठिन परिस्थियों में मिताली ने क्रिकेट को चुना। अपनी अब तक की यात्रा में कभी भी धैर्य नहीं खोया। हिम्मत नहीं हारी। हर चुनौती का सामना किया। विपरीत परिस्थितियों को अनुकूल बनाया। अपनी काबिलियत और कामयाबियों से महिला क्रिकेट को भारत में सम्मानजनक बनाने में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
लक्ष्य अच्छा खेलना
मिताली ने जब क्रिकेट खेलना शुरू किया था तब उन्होंने अपने लिए कोई बड़ा लक्ष्य नहीं रखा था। उनका इरादा भारतीय क्रिकेट टीम में जगह बनना था। जगह बनाने के बाद उनका अगला इरादा उस जगह को पक्का करना था। जगह पक्की करने के बाद उनका लक्ष्य टीम का "मुख्य खिलाड़ी" बनना था।मिताली ने टीम का सबसे बड़ा और मुख्य खिलाड़ी बनने के लिए जी-जान लगा दिया। वे जानती थीं कि अगर उन्हें टीम में बने रहना है और वो भी मुख्य खिलाड़ी की तरह तो उन्हें लगातार अच्छा खेलना होगा। हर बार टीम को जीत दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। मिताली का रुतबा इतना बढ़ गया कि उन्हें भारतीय महिला टीम का कप्तान भी बनाया गया। मिताली का कहना है कि कप्तानी हर किसी को नहीं मिलती और जो लोग किस्मतवाले होते हैं उन्हें ही कप्तान बनने का मौका मिलता है। मिताली ने कहा, “मैं धीरे-धीरे, कदम दर कदम आगे बढ़ी हूँ। और जैसे-जैसे मैं आगे बढ़ी वैसे- वैसे मेरी ज़िम्मेदारियाँ बढ़ीं और मुझसे टीम की और खेल-प्रेमियों की अपेक्षाएँ और उम्मीदें भी बढ़ीं। खेल-जीवन के अलग-अलग चरणों में अलग-अलग लक्ष्य भी रहे। अपने खेल का स्तर उन्नत बनाए रखने की चुनौती हमेशा मेरे साथ रही।"
3 मई, 2016 को हुई एक ख़ास मुलाकात में मिताली राज ने अपने जीवन के कई महत्वपूर्ण और अनछुए पहलुओं के बारे में बताया। कई मुद्दों पर खुलकर अपनी राय जाहिर की। उस क्रिकेट अकादमी में जहाँ मिताली राज ने क्रिकेट खेलना शुरू किया था वहीं हुई इस ख़ास मुलाकात के दौरान की बातचीत में सामने आये अन्य मुख्य अंश यहाँ प्रस्तुत हैं :-
प्रेरणा : मिताली को आज भी अपने पिता दोरई राज से ही प्रेरणा मिलती है। वे बताती हैं, " डैड की वजह से ही मैंने क्रिकेट खेलना शुरू किया था। वो चाहते थे कि कम उम्र में ही भारत के लिए खेलूँ। जब कभी मैं अच्छा स्कोर बनाती हूँ तो डैड को फोन कर बताती हूँ। डैड बहुत खुश होते हैं। डैड की यही खुशी मेरे लिए प्रेरणा है। डैड को खुश कर सकूं इसी ख़्याल से मुझे प्रेरणा मिलती है।"
संकटमोचक हैं माँ : मिताली की माँ को क्रिकेट की उतनी समझ नहीं है जितनी कि पिता को। लेकिन, माँ ने भी मिताली का करियर बनाने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। माँ ने मिताली के लिए कई त्याग किये हैं। जीवन के सभी बड़े फैसले मिताली ने माँ की सलाह पर ही लिए हैं। मिताली बताती हैं कि जब कभी वो मानसिक रूप से परेशान होती हैं तो माँ की सलाह लेती हैं और सलाह मानने से ही उनकी परेशानी दूर होती है । मिताली जहाँ कहीं क्यों न हों समस्या के समाधान के लिए वे अपनी माँ को फोन करना नहीं भूलतीं।
आलोचना : 2013 में जब मिताली के नेतृत्व वाली भारतीय महिला क्रिकेट टीम "सुपर सिक्स" के लिए भी क्वालिफाई नहीं कर पायी थी, तब दोरई राज का गुस्सा सातवें आसमान पर था। उन्होंने मिताली की जमकर आलोचना की थी और कुछ कटु शब्द भी कहे थे। पिता ने खुद मिताली से कप्तानी छीनने की मांग की थी। कुछ लोगों ने तो मिताली को क्रिकेट से संन्यास लेने की सलाह तक दे डाली थी। इस वाकये के बारे में पूछे जाने पर मिताली ने बताया कि उनके पिता उनके सबसे बड़े आलोचक भी हैं। वे कहती हैं, "और ये ज़रूरी नहीं कि हर कोई उनकी तारीफ़ ही करे। मैंने अपने पिता की आलोचना में भी सकारात्मक चीज़ों को ही लिया और आगे बढ़ी।" मिताली मानती हैं कि एक बड़ा खिलाड़ी बनने के बाद आलोचकों का आसपास होना बहुत ज़रूरी होता है। आलोचकों के ना होने की स्थिति में प्लेयर के लापरवाह और बेपरवाह होने का खतरा बन जाता है। मिताली ने आगे कहा, " अकारण आलोचना करने वाले लोग भी होते हैं। आप हर किसी को मजबूर नहीं कर सकते कि वे आपके खेल को पसंद करें । हर किसी को खुश भी हमेशा नहीं किया जा सकता है। "
महिला क्रिकेट में राजनीति : मिताली बेहिचक और बेबाक होकर ये कहती हैं कि भारतीय महिला क्रिकेट में भी राजनीति होती है। जिस तरह की राजनीति अन्य क्षेत्रों में है वैसी ही राजनीति महिला क्रिकेट में भी होती है। चूँकि मीडिया महिला क्रिकेट में ज्यादा दिलचस्पी नहीं ले रहा है, इस वजह से राजनीति की ख़बरें बाहर नहीं आ रही हैं। मिताली ने ये सनसनीखेज खुलासा भी किया कि गन्दी राजनीति की वजह से ही कई अच्छी महिला खिलाड़ी भारतीय टीम में जगह नहीं बना पाईं। मिताली के मुताबिक, जो खिलाड़ी मानसिक रूप से मजबूत होते हैं वे राजनीति का शिकार होने से खुद को बचा लेते हैं , लेकिन जो कमज़ोर होते हैं वे इसका शिकार हो जाते हैं। वे सलाह देती हैं कि हर व्यक्ति, ख़ास तौर पर खिलाड़ियों, को मानसिक रूप से खुद तो इतना सक्षम बना लेना चाहिए कि राजनीति का उनपर कोई असर न पड़े।
कामयाबी के मायने : मिताली की नज़र में कठोर परिस्थियों में स्थिर और शांत रहकर लक्ष्य हासिल करना ही कामयाबी है। बतौर खिलाड़ी वे मानती हैं कि मुश्किल हालत से टीम को उभारना कामयाबी है। वे कहती हैं, " कप्तान के तौर पर अगर मेरा निजी प्रदर्शन खराब भी रहा और तब भी मैं अगर दूसरी खिलाड़ियों को प्रोत्साहित कर उनसे अच्छा प्रदर्शन करवा सकती हूँ हो कप्तान के तौर पर मैं इसे मैं अपनी सबसे बड़ी कामयाबी मानूंगी।"
अब तक की सबसे बड़ी कामयाबी : "कन्सिस्टन्सी" ही मेरी सबसे बड़ी कामयाबी हैं। मैंने वन-डे फॉर्मेट में अगर 49 के औसत से पांच हज़ार से ज्यादा रन बनाए हैं तो ये "कन्सिस्टन्सी" का ही नतीजा है।
सचिन तेंदुलकर से तुलना पर : मिताली कहती हैं, "जब लोग मुझे महिला क्रिकेट का तेंदुलकर कहते हैं तो बहुत ख़ुशी होती है।क्रिकेट को तेंदुलकर का योगदान बहुत बड़ा है। उनकी उपलब्धियां बहुत बड़ी हैं और वो महान खिलाड़ी हैं। ऐसे बड़े खिलाड़ी से तुलना करने पर खुशी होती ही है। लेकिन, मैं चाहती हूँ कि लोग मुझे मेरे नाम से जाने। लोग मुझे मेरे योगदान और मेरी उपलब्धियों की वजह से पहचाने।"
कामयाबी का मन्त्र : मेहनत के बगैर कामयाबी नहीं मिलती। अगर लड़कियों को भारतीय महिला क्रिकेट टीम में जगह बनानी है तो सालों साल मेहनत करनी पड़ेगी। कामयाबी के लिए अपनी प्राथमिकता तय करना भी बेहद ज़रूरी है। मिताली के अनुसार, कई लोग अपनी प्राथमिकता तय नहीं कर पाते। वे सलाह देती हैं कि लोगों को अपनी प्राथमिकताएं तय करने के बाद सिर्फ और सिर्फ अपने लक्ष्य पर फोकस करना चाहिए।
सबसे पसंदीदा पुरुष क्रिकेटर : मिताली के मुताबिक,राहुल द्रविड़ और सचिन तेंदुलकर की मानसिक ताकत और मैच के लिए तैयारी से प्रेरणा मिलती हैं।
सबसे पसंदीदा महिला क्रिकेटर : नीतू डेविड से मिताली बहुत ज्यादा प्रभावित हूँ। नीतू डेविड मिताली की आल टाइम फेवरिट खिलाड़ी हैं। नीतू डेविड लेफ्ट आर्म स्पिनर हैं और उन्होंने कई साल तक भारत के लिए क्रिकेट खेली है। मिताली ने बताया कि बतौर कप्तान जब कभी वे टीम को मुसीबत में पातीं तो उनकी नज़र नीतू डेविड पर ही जाकर टिकतीं। नीतू ने अपनी शानदार गेंदबाज़ी से टीम को संकट से उबारा है।
जिस खिलाड़ी का सामना से डर लगता है : मिताली ने बताया कि जब उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट खेलना शुरू किया था तब लूसी पीयरसन नाम की तेज़ गेंदबाज़ इंग्लैंड की तरफ से खेलती थीं। करीब छह फुट लम्बी इस खिलाड़ी की गेंद काफी खतरनाक होती थी।मिताली को लूसी से डर भी लगता था। चेहरे पर मुस्कराहट के साथ मिताली कहती हैं, "मैं खुशनसीब थी कि लूसी ने ज्यादा दिन तक क्रिकेट नहीं खेली और जल्दी रिटायरमेंट ले ली । "
जीवन का सबसे बड़ा सपना : बतौर खिलाड़ी या फिर कप्तान विश्व कप जीतने वाली भारतीय टीम का हिस्सा होना।
जीवन की सबसे बड़ी खुशी : इंग्लैंड में इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट मैच जीतना। मिताली बताती हैं कि वे कप्तान थीं और उनकी टीम में 11 में से 8 ऐसे खिलाड़ी थे जो पहली बार टेस्ट मैच खेल रहे थे। इंग्लैंड एक तगड़ी टीम थी और ऑस्ट्रेलिया को हराकर एशेज सीरीज़ पर कब्ज़ा जमाकर उसके हौसले बुलंद थे। लेकिन, भारत ने इंग्लैंड को हरा दिया। मिताली के लिए बतौर कप्तान ये बहुत बड़ी कामयाबी थी।
सबसे निराश पल : वन-डे और 20-20 फॉर्मेट में अच्छी टीम होने के बावजूद वर्ल्ड कप से बाहर हो जाने वाले दिन सबसे बुरे दिन थे।
सबसे खराब दौर : मिताली ने बताया कि 2007 में जब वो लगातार 7 पारियों में नाकाम रहीं और 30 का आंकड़ा भी नहीं छू पाईं तब उन्हें बहुत निराशा हुई। ऐसा ही एक और दौर 2012 में आया जब वे ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ लगातार 5 पारियों में कुछ ख़ास नहीं कर पाईं।
निराश होने पर क्या करती हैं ? : मिताली मानती हैं कि नकारात्मकता हर जगह होती हैं। हर परिस्थिति में धैर्य और शांति बनाए रखना ज़रूरी होता है। मिताली के मुताबिक, वे धैर्य और शांति बनाए रखने की हर मुमकिन कोशिश करती हैं। और इसी कोशिश में निराशा दूर होती है।
जीवन का सबसे बड़ा डर : मिताली को इस बात का डर सताता है कि वो कही बेपरवाह और लापरवाह न हो जाएँ। ऐसे होने से उनकी कंसिस्टेंसी ख़त्म हो जाएगी। एक और डर है- क्रिकेट से जो प्यार है , क्रिकेट के प्रति जो पैशन है वो कहीं ख़त्म न हो जाए। दिलचस्प बात ये भी है कि अपने डर को भगाने के लिए मिथाली एक अनोखा तरीक़ा अपनाती हैं। जब मैच खेलने नहीं होते हैं तब वे क्रिकेट के बल्ले को नहीं छूतीं। ऐसा करते हुए वे देखने और जानने की कोशिश करती हैं कि वे अपने आप को कितनी देर तक बल्ले और क्रिकेट से दूर रख पाती हैं। लेकिन क्रिकेट से प्यार ही कुछ ऐसा है कि मिताली अपने आप को क्रिकेट के मैदान से ज्यादा दूर नहीं रख पाती हैं।
मिताली राज के बारे में कुछ अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां
मिताली राज का जन्म 3 दिसम्बर, 1982 को राजस्थान के जोधपुर में हुआ।
परिवार हैदराबाद शिफ्ट कर गया तो मिताली भी हैदराबाद की ही हो गयीं।
पिता ने पहले वायु-सेना में काम किया फिर बैंक-अधिकारी हो गए।
मिताली के करियर के लिए माँ ने नौकरी छोड़ दी और घर-परिवार की ज़िम्मेदारी उठा ली। बचपन से ही मिताली ने अपने भाई और दूसरे लड़कों के साथ प्रैक्टिस की। मिताली जब सिर्फ 14 साल की थीं, उन्हें भारतीय टीम के लिए "स्टैंडबाई" खिलाड़ी बन दिया गया था ।
16 साल की उम्र में ही मिताली ने अपना पहला अंतर्राष्ट्रीय मैच खेला। 26 जून, 1999 को मिल्टन कीनेस के कैम्पबेल पार्क में खेले गए इस मैच में मिताली राज ने रेशमा गांधी के साथ पारी की शुरुआत की थी। इस मैच में मिताली ने नाबाद 114 रन बनाए। रेशमा ने भी 104 रन की शानदार शतकीय पारी खेली। भारतीय टीम ये मैच 161 रन से जीत गयी।
मिताली महिला क्रिकेट के वन-डे फॉर्मेट में 5000 रन बनाने वाली पहली भारतीय महिला हैं । अब तक सिर्फ दो ही खिलाड़ी महिला वन -डे क्रिकेट में 5000 से ज्यादा रन बना पायी हैं। मिताली से पहले सीएम एडवर्ड्स ने वन-डे में 5000 रन पूरे किये थे।
मिताली ने अपना पहला टेस्ट मैच 2002 में खेला। 14 से 17 जनवरी के बीच लखनऊ में खेले गए इस मैच में मिताली शून्य पर आउट हो गयीं। लेकिन आगे चलकर वो महिला टेस्ट क्रिकेट में दोहरा शतक लगाने वाली पहली क्रिकेटर बनीं।
2010 ,2011 और 2012 यानी तीन लगातार साल मिताली आईसीसी वर्ल्ड रैंकिंग में प्रथम स्थान पर रहीं। ऐसा करने वाली भी वे पहली भारतीय महिला हैं।
मिताली ने बतौर कप्तान भी बेहद शानदार प्रदर्शन किया है। कई बार भारत को ऐतिहासिक जीत दिलाई है।
मिताली ने सिर्फ भारत की सबसे सफल बल्लेबाज़ हैं बल्कि सबसे सफल कप्तान भी हैं।
मिताली ने टेस्ट, वन -डे और 20-20 यानी तीनों फॉर्मेट में भारतीय महिला क्रिकेट टीम कप्तानी की है।
मिताली को उनकी कामयाबियों और क्रिकेट में योगदान के लिए "अर्जुन पुरस्कार" और "पद्मश्री" से भी सम्मानित कर चुकी है भारत सरकार।
मिताली महिलाओं की ताकत की प्रतीक बन चुकी हैं और उनकी कामयाबी की जो कहानी है वो कईयों के लिए प्रेरणा और प्रोत्साहन का स्रोत है।
इन नज़र अब तक के उनके आंकड़ों पर
( 3 मई 2016 तक)
मिताली ने 164 एक दिवसीय मैच खेले हैं। इनमें 149 पारियों में 49 की औसत से 5301 रन बनाए हैं। वे 42 बार नाबाद रही हैं , जो कि अपने आप में एक विश्व रिकार्ड है। मिताली ने वन-डे फॉर्मेट में 5 शतक भी बनाए हैं।
मिताली ने 59 '20-20' मैच खेले हैं और 34.6 की औसत से 1488 रन बनाए हैं।
मिताली ने 10 टेस्ट मैच खेले और 51 की औसत से 16 पारियों में 663 रन बनाए। उनका सर्वाधिक स्कोर 214 है।
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